Monday 12 May 2014

thank God for giving us mother

thank God! for giving us mother
bless us that we live together
never we'll become alone
Mmaa is my life's backbone
without backbone, body is useless
she puts us into her arms
and gives us Paradise love
sometimes we do guilt
she punishes us, and,
we think something wrong for her
but never attend on her sorrow
and never see tears in her eyes
which had sheded into night
when she be alone
I think those guys are unlucky
who has never beaten by mmaa
because mmaa's abuse is like blessings
and she beats to make us perfect
like the statute of a sculpture
thank God for giving us mother
(07 July 2005)

Tuesday 6 May 2014

एकटा भगवती गीत (भाष:तेरे बिन नै लगदा दिल मेरा ढोलना)




















माँ भगवती .....सुनु दीनक विनती
एना जुनि बिसरू अहाँ माँ ..

अम्बे माँ ........दुर्गा माँ........-2
माँ त्रिलोचना अहाँ दर्शन दियौ माँ..
माँ अहाँ बिन
माँ अहाँ बिन हम्मर नै अछि कोनो गति-4

कि कहु माँ महिमा अहाँक
अहिं सं व्याप्त सगर जगत्
अहिं में लिप्त भेलै माँ-2

माँ रुसल छि किये, अहाँ बैसल छि कहाँ?
पुत्र हम छि अहींक जुनि बिसरियौ अहाँ
माँ अहाँ बिन
माँ अहाँ बिन हम्मर नै अछि कोनो गति-2

लाले लाले चुनैर ओढने
माथ मुकुट शोभा बढबै
नव नव शस्त्र धेने कर में-2

इ मनोरम छवि, लागै पूर्ण प्रकृति
माँ 'प्रणव' क रहल अछि अहींक स्तुति

माँ अहाँ बिन
माँ अहाँ बिन हम्मर नै अछि कोनो गति-2

अम्बे माँ ........दुर्गा माँ........-2
माँ त्रिलोचना अहाँ दर्शन दियौ माँ..
माँ अहाँ बिन
माँ अहाँ बिन हम्मर नै अछि कोनो गति-4
(6 मई 2005)

Friday 2 May 2014

मंगल आह्वान !

देकर तूने प्रणय का दान
बढाया मेरा कुछ अभिमान
सामाऊं फूले न हे देवी!
संग ले तेरे अपना नाम।

अकेले चला चलूँ जिस ओर
सुनकर कर्तव्य की पुकार
मिला बल मुझको पाकर आज
पारितोषिक तेरा अनमोल।

रहा चलता कब से पथ पर
अकेला सतकर्मों में लीन
उठी ये आंधी कैसी आज?
बजाया उर ने कैसा बीन!

गया सहसा किस रस में भीग
हृदय मेरा निश्छल रसहीन;
विकल-सी दौड़ दौड़ प्रतिकाल
सरित हो रही सिन्धु में लीन।

झुकी जाती पलकें निस्पंद
दिवस के श्रम का लेकर भार
बातें करूँ फिर भी तुझसे
मोहिनी! जान तेरा आभार।

निशा कर रही मधुर स्पर्श
संजोकर सपनों का संसार
ठहर कुछ पल रात्री अब शेष
कि करनी बातें हैं दो चार।

चाँदनी की छाया में बैठ
करूँ पुरे अपने अरमान
आह! कर दूँ कलियों में बंद
मधुर पीड़ाओं का वरदान।

है चलना हर पथ पर अब साथ
दिवस जीवन के जो हैं शेष
निछावर कर दूँ अपने प्राण!
स्वामिनी करो शीघ्र आदेश।

हुआ पाकर तुझको मैं धन्य
रहा न बांकी कुछ अरमान
प्रणव की किरणों सी हे देवी
किया तूने उज्जवल मेरा भाल।।
(12 सितंबर 2010)