Saturday 26 September 2015

पढने की बेचैनी




बिहार विधानसभा का चुनाव जबकि सर पर है, सभी प्रमुख और छोटे दाल विकास के नाम पर जातिगत समीकरण बनाने में पसीना बहा रहे हैं | मुद्दे के नाम पर इन नेताओं और दलों के पास जिंदाबाद-मुर्दाबाद, तू-तू-मैं-मैं, एक दूसरे को अनाप-शनाप गाली और आरोप के तौफे देने और चुनावी जुमलेबाजी के शिवाय कुछ है नहीं | और ऐसा शायद इस लिए है की जनता इनको वास्तविक मुद्दों पर घेरना ही नहीं चाहती है, चाहे वो फेसबुक-ट्विटर पर हों या वास्तविक धरातल पर ! 
मैं बिहार का वोटर नहीं हूँ, किन्तु बिहार मेरा गृह राज्य है इस नाते बिहार के विकास और इससे जुड़े मुद्दों के प्रति मैं उत्सुक भी रहता हूँ और उत्साहित भी | मेरी नजर में धरातलीय कई मुद्दे हैं जिन्हे बिहार के विकास के सम्बन्ध में अमल में लाया जाना चाहिए | इनमे से एक प्रमुख मुद्दा शिक्षा तथा शैक्षणिक संस्थानों के विकास का है | 

इस मुद्दे पर मैंने २००९-१० के समय भी नीतिश कुमार के कार्य से असंतुष्टि जताई थी और उसकी आलोचना की थी जिस वक्त आज नीतिश को गाली देनेवाले और उन्हें आतंकवादी का साथी तक करार देनेवाले भाजपाई भक्त ने सर पर बिठा रखा था | और आज भी इस दिशा में उल्लेखनीय परिणाम नहीं दीखता है | 


२३ सितम्बर के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में इस मुद्दे पर सुपर ३० के आनंद सर और अभयानंद सर के हवाले से छपी एक खबर को पढने के बाद मैं एकबार फिर इस मुद्दे को उत्साह से देख रहा हूँ |


वर्ष २००० में झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार के हिस्से में बाढ़ और सुखार के अलावा कुछ ख़ास नहीं आया, खासकर के उत्तर बिहार (मिथिला) के क्षेत्र में | इस क्षेत्र का एक मात्र संसाधन शिक्षा है | आज भी इस क्षेत्र के सुदूर इलाकों में आप ८-१० बच्चों को एक ही लालटेन या बल्ब के रौशनी में बैठकर पढ़ते देख सकते है | अत: बिहार के विकास के लिए आवश्यक है की राज्य में अधिक से अधिक स्मार्ट विद्यालयों का विकास हो | यद्यपि इस मामले में यह तर्क दिया जा सकता है कि नीतिश कुमार के पिछले ९-१० वर्षों के शासन काल में बहुत से विद्यालयों का निर्माण एवं शिक्षकों की भर्ती हुई है | किन्तु स्मार्ट विद्यालय उसे नहीं कहा जा सकता है जहां मध्याह्न भोजन, कुछ कल्याणकारी योजना और शिक्षकों का संख्या बल हो | स्मार्ट विद्यालय बनाता है स्मार्ट शिक्षकों से जिनमे पढ़ाने की काबिलियत और जज्बा दोनों हो | लालू-राबड़ी और उनके पूर्ववर्ती कालों में जहां शिक्षा एवं शिक्षण संस्थान ध्वस्त होते गए थे वहीँ नीतिश कुमार के शासन काल में इन्हे मजबूत करने के प्रयास तो हुए किन्तु ये प्रयास परिणामोन्मुखी न होकर लीपा-पोती ज्यादा रहे | शिक्षकों के भर्ती का पैमाना पढ़ाने के प्रति उनकी क्षमता और लगन को न बनाकर भिन्न-भिन्न कालखंडों में उनकेद्वारा प्राप्त डिग्री एवं अंक(मार्क्स) को बनाया गया | परिणामस्वरूप शिक्षकों के नाम पर गदहों की फ़ौज ठेल दिया गया इन विद्यालयों में (क्षमा करें यही शब्द मिला मुझे इनके सम्बोधन के लिए) | यही कारण हुआ की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए इन विद्यालयों में नामांकन में तो लगातार वृद्धि हुई किन्तु यहाँ पंजीकृत आर्थिक रूप से सक्षम छात्र जहां निजी विद्यालयों में शिक्षा ले रहे हैं वहीँ कामजोर वर्ग के छात्र इन अक्षम शिक्षकों से अतिनिम्नस्तरीय शिक्षा लेने को अभिशप्त है और परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए इन्हे कदाचार का सहारा लेना पर रहा है | 

वर्ष २०१३ में दस हजार से अधिक शिक्षामित्र राज्य सरकार द्वारा लिए गए योग्यता परीक्षा में असफल रहे थे | सफल रहे शिक्षकों में भी एक बड़ी संख्या नक़ल और जुगाड़ से सफल रहे लोगों की रही होगी इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है | 

तब इस समस्या का हल क्या हो ? इसका हल यह हो सकता है सरकार इन शिक्षकों को समय-समय पर और व्यापक रूप से प्रशिक्षण दे एवं इनके समुचित वेतन की व्यवस्था करे| अच्छे शिक्षकों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया जाना चाहिए |  यद्यपि इनके वेतन को नियमित कर के सरकार ने एक हल तो दे ही दिया है | अत: सरकार से अब व्यापक स्टार पर यह मांग होनी चाहिए की इन शिक्षकों को शिक्षण तकनीक एवं जिम्मेदारी की पेशेवर समझ स्थापित करने के लिए व्यापक स्टार पर प्रशिक्षित किया जाए | इसके लिए राज्य सरकार केंद्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति, विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षण संगठनो आदि से सहयोग मांग सकती है | एक अन्य समस्या इन शिक्षकों के चुनाव, सर्वे, पंचायत एवं प्रखंड स्तरीय कार्यों में लगाने तथा इनमेसे बहुतों का अपने निजी व्यवसाय में जुड़े होने से है | अत: इस सम्बन्ध में आनेवाली सरकार से उम्मीद करनी चाहिए की वो इन शिक्षकों को शिक्षण के अलावा अन्य कार्यों में काम से काम लगाएगी तथा विद्यालय में इनके समुचित उपस्थिति को सुनिश्चित करेगी और इस सम्बन्ध में कठोर कार्यवाही करने से नहीं चूकेगी | 

दूसरा मुद्दा उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का है | बिहार में जहां आनंद सर और अभयानंद सर जैसे शिक्षक उपस्थित हैं जिनके सुपर ३० के ३० के ३० छात्र आईआईटी या अन्य बड़े अभियांत्रिकी संस्थानों में हर साल प्रवेश पा रहे हैं, बिहार, जहां के एक ही गाॉव से १८ बच्चे आईआईटी जी (एडवांस) उत्तीर्ण कर लेते हैं, जहां के बच्चे कर्नाटक, तमिलनाडु, बंगाल, उड़ीसा, एमपी, यूपी हर जगह के इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों की शोभा बढ़ा रहे हैं वहां उच्च गुणवत्ता वाले उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों का सुखा पड़ा है | नीतिश कुमार के १० वर्षों के शासन काल को इस कसौटी पर भी कसना चाहिए |, जिस समयावधि में मेरे जानकारी में राज्य सरकार ने कोई बड़ा इंजीनियरिंग/मैडिकल या प्रबंधकीय संस्थान स्थापित नहीं किया है | इस दौरान राज्य में निजी संस्थानों की स्थापना भी कोई उल्लेखनीय नहीं रहा है | न ही इस सम्बन्ध में मैंने कभी राज्य सरकार को कोई उत्साहवर्धक कार्य का घोषणा करते देखा-सुना है | 

अत: जनता यदि विकास को सचमुच में मुद्दा बना रही है तो इन पार्टियों/उम्मीदवारों से यह आस्वासन अवश्य ही मांगनी चाहिए कि आनेवाली सरकार इन मुद्दो को प्राथमिकता देगी और अधिक से अधिक स्मार्ट विद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों के विकास के लिए साकारात्मक एवं परिनामोनमुखी प्रयास करेगी ताकि बिहार के अधिक से अधिक छात्रों के "पढने की बेचैनी" मिट सके और उनका मेहनत पर विशवास कायम रह सके | यदि ऐसा होता है तो बिहार का समृद्ध मानव संसाधन निश्चित ही बिहार को विकास के पटरी पर दूर तक ले के जाएगा | बाँकी तो जो है सो हैए है | 
नमस्कार

Thursday 10 September 2015

कागज़ को जलते देखा है ।

बस स्टॉप के कोने में
कूड़े की एक ढेर पर
कागज़ को जलते देखा है |

जीवन के आपाधापी में
खबरें बनते हैं खो जाते हैं
ऐसे ही कुछ खबरों को
कागज़ संग जलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ कर्ज में डूबे किसान नए हैं
आरक्षण के मांग नए हैं
कार्यकर्ता संग नेताओं को
धरने पर बैठे देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ विज्ञापन के शान नए हैं
थाली में सजे पकवान नए हैं
पर ऐसे भी कुछ बच्चे हैं जिन्हे
रोटी को मचलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां माया भी हैं, आध्यात्म भी हैं
उपहारों की सौगात भी हैं
झूठी दौलत शोहरत के लिए
रिश्तों को मरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहां खेल भी हैं, व्यापार भी हैं
पेज-३ के कागज़ चार भी हैं
भावनाहीन बाजार तो हैं
पर शेयर के कुछ भाव भी हैं
सोने-चाँदी के कीमत को
चढ़ाते और गिरते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

शहर गाँव गली घुमा
हर ओर नजर को फेर लिया
इनकी तस्वीर नहीं बदली पर
बड़े रंगीन विज्ञापन में, मंत्री के
तस्वीरों को बदलते देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |

यहाँ रिक्तियां हैं, निविदा भी हैं
विज्ञापन की सुविधा भी हैं
महाजनो के साक्षात्कार भी हैं
पाठकों के कुछ सवाल भी हैं
प्रतिदिन कुछ नौनिहालों को
सूरज सा चढ़ता देखा हैं
कागज़ को जलते देखा है |
10.09.2015

Sunday 23 August 2015

सदाचार क तावीज (मैथिली लघु नाटिका)

पात्र: 
१. राजा (भानु प्रताप सकरवार)
२. सूचना एवं प्रसारण मंत्री (महिला)
३.वित्त मंत्री 
४. गृह मंत्री 
5. महामंत्री 
6. विशेषज्ञ (खट्टर झा)
7. शिष्य विशेषज्ञ-१
8. शिष्य विशेषज्ञ-२
9. साधू 
१०. शिष्य साधू -१
११. शिष्य साधू -२
12. कर्मचारी 

दृश्य - १
पृष्ठभूमि : (निगम देश में हल्ला मचल छल जे भ्रष्टाचार अनहद रुपे पसरि गेल अछि | ) राजा दरबार में चिंता के माहौल अछि |

राजा(भानु प्रताप सकरवार) मंत्रीगण सं : हे हमर मंत्री रत्न गण ! प्रजा बहुत हरबिर्रो मचा रहल अछि जे पूरा चौहद्दी में भ्रष्टाचार पसैर गेल अछि ! मुदा हम त आई धरि ई वस्तु के नै देखलहुँ अछि | यदि अहाँ सब के कतौ देखना में आयल होय त बतायल जाउ |

सूचना प्रसारण मंत्री : महाराज ! भ्रष्टाचार जखन हुजूरे के नजैर में  नै आयल, त हमारा लोकैन के कोना क देखयात ?

राजा(गदगद भाव सं): ईह ! एहन कोनो बात नै अछि, सूचना मंत्रीजी ! कखनो काल जे हमारा नजैर में नै आबैत हेतै ओहो त अहाँ सभ के देखना में आबैत होयत की ने | जेना मानि लिय जे हमरा त खराप सपना कखनो नै देख में आबै अछि , मुदा अहाँ सब त खरापो सपना देखैत हेबै !

वित्त मंत्री : जी देखैत छी महाराज | मुदा ओ त स्वप्न के बात अछि की ने | 

राजा : से बुझलौं, तथापि अहाँ सब सगरो राज्य में खोज पर निकलु आ पता करू जे कतौ भ्रष्टाचार त नै अछि | जौं कतौ भेट जाय त हमरा देख लेल नमूना नेने आयब | हमहुँ त देखी की आखिर ई भ्रष्टाचार होइ केहन अछि !

गृह मंत्री (चाटुकार अंदाज में) : हुजूर ओ हमरा सभ के नै देखा सके अछि | सुनबा  में आयल अछि जे ओ बड्ड महीन होइ अछि | हमरा सब के नजैर के त अहाँक विराटता देख के एतेक अभ्यास भ गेल अछि जे महीन वस्तु हमरा सब के देखाइते नै अछि |

राजा (गंभीर होइत) : तखन फेर की करल जाय ?

महामंत्री : महाराज ! अपनेक राज्य में एकटा जाति रहै अछि जिनका विशेषज्ञ कहल जाइ अछि | एहि जाति वर्ग के लग किछु एहन ऐनक होइ अछि जकरा अपन आइङ्ख पर लगा क ओ सब सूक्ष्म सं सूक्ष्म वस्तु के भी देख लैत अछि | अस्तु, सरकार सं ई निवेदन अछि जे ई विशेषज्ञ जातिए  के कोनो लोक के हुजूर ई भ्रष्टाचार के खोजय के काज सौंपैथ | 

राजा (हुक्म देइत) : बेस त ठीक अछि | विशेषज्ञ जाति के एकटा समिति गठित करल जाय आ हुनका राज दरबार में उपस्थित होय के आज्ञा देल जाय | 



दृश्य - २

द्वारपाल : महाराज के जय होय ! महाराज ! विशेषज्ञ खट्टर झा अपन समिति सदस्य सहित महाराज के दर्शन के अभिलाषी छैथ |

राजा (प्रशन्न होइत) : हुनका सभ के ससम्मान उपस्थित कैल जाय | 

(द्वारपाल चल जाइ अछि | खट्टर झा  के चेला सहित प्रवेश )

खट्टर झा (चेला सहित) : प्रणाम महाराज !

राजा : प्रणाम महोदय ! महोदय, जनता हरबिर्रो मचेने अछि जे राज्य में चौतरफा भ्रष्टाचार पसरल अछि | अस्तु हम जानै चाहै छी जे ई भ्रष्टाचार केहन होइ अछि ? की अहाँ के कतौ भ्रष्टाचार भेंटल अछि? 

खट्टर झा : जी महाराज कतेको रास भेंटल अछि |

राजा (हाथ बढबैत) : अच्छा ! त लाउ देखाबू त | देखी त केहन होइ अछि ई भ्रष्टाचार ?

खट्टर झा : सरकार, ओ हाथ के पकड़ में आब वाला नै अछि | ओ स्थूल नै अछि परंच सूक्ष्म अछि, अगोचर अछि | मुदा ओ सर्वत्र अछि | ओकरा देखल नै जा सकै अछि, बस अनुभवे टा कैल जा सकै अछि | 

राजा (सोच में पड़ैत) : मुदा महोदय ! सूक्ष्म , अगोचर आ सर्वव्यापी भेनाइ त ईश्वरक गुण अछि ! त की भ्रष्टाचार ईश्वर अछि ?

चेला १ : जी हं महाराज ! बेस कहलौँ  आब भ्रष्टाचार बुझू त ईश्वरे भ गेल अछि | 

सूचना एवं प्रसारण मंत्री : मुदा ओ अछि कत ? आ ओकर अनुभव कोना क कैल जाय ?

खट्टर झा (झौंक में) : ओ सर्वत्र अछि | एहि भवन में अछि | महाराज के सिंहासन में अछि ....

राजा (सिंहासन सं उछलैत्त ): सिंहासन में अछि .....!

चेला २ : जी हाँ महाराज, अहाँक सिंहासन में | पिछला महीना में एहि सिंहासन में रंग-रोगन करय के लेल जे बिल के भुगतान कैल गेल छल ओहि में सं आधा त अहाँक मंत्री सभ के ख़ास लोक सब खा गेल अछि |

खट्टर झा (बीचमे चेला के बिगड़ैत) : दूर बूड़ी ! तोरा बीच में बजनाइ जरुरी छौह |

(विशेषज्ञ के बात सुन के बाद राजा बड्ड चिंतित भ गेलाह  आ संगहि मंत्री सब के कान सेहो ठाढ़ भ गेल )

राजा : ई त बड्ड पैघ चिंता के गप्प अछि ! खट्टर महोदय, हम ई भ्रष्टाचार के बिलकुल जैड़ सं मेटाब चाहै छी | की अहाँ सब एकरा मेटाब के कोनो उपाय बता सकै छी जे ई कोना क मेटायत  ? 

खट्टर झा : जी हाँ महाराज | ऐ के लेल अपनेक एकटा योजना तैयार कर के होयत | भ्रष्टाचार मेटाब के लेल महाराज के व्यवस्था में  आमूलचूल परिवर्तन कर के पड़त | कोन कोन एहन कारण सब अछि जै खातिर मनुष्य भ्रष्टाचार में लिप्त रहै अछि ई सब विचार कर पड़त |

राजा : बेस, त ठीक अछि | अहाँ अपन योजना आ विचार सब के एकटा रिपोर्ट बना क अगिला तीस दिन के भीतर प्रस्तुत करू | 

खट्टर झा : जे महाराज के आज्ञा | ((चेला सहित प्रस्थान करै छथि ) 

दृश्य - ३ 

(दरबार में  दरबारी सब बैसल छैथ |)

राजा: महामंत्री जी | की भेल, आई तीस दिन पुरल जा रहल अछि मुदा एखन धरि विशेषज्ञ खट्टर झा समिति अपन रिपोर्ट नै प्रस्तुत केलाह  अछि ?

(तखने खट्टर झा के चेला समेत प्रवेश)

खट्टर झा : बंदा हाजिर अछि सरकार | ई लिय महाराज, ११०१ पृष्ठक ई रिपोर्ट |

राजा (आश्चर्य सं चकित होइत) : एत्तेक मोट रिपोर्ट !

खट्टर झा : जी महाराज | हमर समिति दिन रात्रि मेहनत आ रिसर्च क क ई रिपोर्ट तैयार केलक अछि | महाराज, समिति भ्रष्टाचार के कारण, तरीका आ निवारण के व्रिस्तृत अध्ययन आ शोध क क ई रिपोर्ट तैयार केलक अछि | भ्रष्टाचार के बहुत रास दृश्य आ अगोचर कारण सभ अछि |

राजा : जेना किछु दृष्टान्त दिय | 

खट्टर झा : जेना में की बेसिर पैरक विज्ञापन सब के बाढ़ि आबि गेल अछि जेकरा हम-अहाँ उपभोक्ता संस्कृति के नाम द देने छी मुदा एहि में भ्रष्टाचार के बीज सेहो छुपल अछि |

राजा : उपभोक्ता संस्कृत्ति ! से कोना ?

खट्टर : सरकार, उदहारण के लेल एकटा विज्ञापन लेल जाउ जाहि में देखबै अछि जे अमुक ब्राँडक कपड़ा पहिराला सं मुर्ख आ उदंड टाइप छौंड़ा के छोड़ी सब घेरने ठाढ़ अछि आ बगल में साधारण कपड़ा पहिरने एकटा सीधा-सदा युवक हीन भावना सं ग्रसित भ रहल अछि | कखनो विज्ञापन में ई नै देखना में आयल अछि जे फलाना ब्रांड के कपड़ा पहिरला सं बालक कतेक चरित्रवान बनि गेल अछि | आ की बुधन कक्षा में प्रथम आबै अछि कियेकी ओ फलाना ब्रांड के जूता पहिरै अछि | 

महाराज, एहि तरहक विज्ञापन सब साधारण परिवार के बच्चा सब में कुंठा उत्पन्न क रहल अछि आ ओकरा सभ के भ्रष्टाचार के तरफ आकर्षित कय रहल अछि | 

महाराज, एकटा सज्जन हमरा कहै छलैथ जे की हुनकर बालक गाड़ी के लेल जिद्द केने छैथ | मना केला पर की अपन ओकाइत नै अछि ओ उत्तर देलैथ जे भुटकुन के बाबू ओकरा कोना गाड़ी दिएलखिन | उत्तर में जखन सज्जन कहलखिन जे भुटकुन के बाप त घूसखोर अछि  त बालक पलैट क जवाब देलखिन जे - अहाँक ईमानदारी के फायदे की जखन अहाँ बाइको नै दिया सकै छी !

आई-काल्हि के बालक-बालिका सब के ईमानदार बाप निकम्मा लाग लागल अछि हुजूर |

राजा (गंभीर मुद्रा में) : हूँ | दोसर कारण |

खट्टर झा : एकटा अन्य कारण शिक्षा के व्यवसायीकरण अछि महाराज |

राजा : से कोना ?

खट्टर : महाराज आई काल्हि इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, लॉ आदि के पढ़ाई के लेल निजी क्षेत्र में जे संस्थान सब खुजि रहल अछि ओहि में स अधिकतर के एकमात्र ध्येय व्यावसायिक लाभ कमेनाइये रहि गेल अछि | एहि संस्थान सब में छात्र सभ सं पैघ रकम डोनेशन के नाम पर ल क प्रवेश देल जाइ अछि | आब घूस के बीया सं त बैमानी आ भ्रष्टाचारे  के फसल ने तैयार हेतै यौ सरकार ! 

राजा : हुंह | बेस कहलौँ तथापि शिक्षा के विकास के लेल त निजी शिक्षा संस्थान आवश्यक सेहो अछि |

खट्टर झा ; अरे सरकार, आशय एत शिक्षा के शुद्ध लाभक व्यवसाय बनाब से अछि | प्राथमिक सं ल क उच्च शिक्षा तक बच्चा सब के केवल लाभ कमब के ट्रेनिंग देल जा रहल अछि | शिक्षा में नैतिक सामाजिक आध्यात्मिक मूल्य के नितांत अभाव प्राथमिक स्तर सं देखना जाइ अछि आ उच्च शिक्षा में त ई विलुप्ते बुझू | 

राजा : हुंह | अन्य कारण ?

खट्टर : एकटा अन्य पैघ कारण अछि भ्रष्टाचारी सभ के सामाजिक स्वीकार्यता आ प्रतिष्ठा सरकार |

राजा (विष्मय से) : अर्थात ?

खट्टर: हुजूर अपने जे राज्य के जनता के भलाई के लेल, ख़ास क क वंचित वर्ग के लेल जे मिड डे  मिल, ए.एन.एम, आशा, आंगनवाड़ी, मनरेगा आदि सामाजिक आ आर्थिक भलाई के योजना सब शुरू केलौ अछि, एहि सब में कार्यरत भ्रष्ट कर्मी सब जे अछि  से सब एहि योजना के राशि सं बड़का कोठा, गाडी आ सम्पइत ठाढ़ क लेलक अछि ओहि सम्पइत के वजह सं हिनकर सब के समाज में इज्जत आ प्रतिष्ठा बैढ़ जाइ अछि  | ईमानदारी से पढ़ाबय बला मास्टर सब के कोनो पूछ नै अछि  मुदा जे मास्टर इस्कूलक मुंह देखने बिना दरमाहा हठबाई अछि  आ पंचायत-प्रखंड में जा क नेतागिरी आ वन टू  का  फॉर करै  छथि हुनकर बड्ड नाम भ  रहल अछि | एतबे नै सरकार कतेको कुप्रथा सब सेहो एहने लोक सब के कारण प्रतिष्ठा के विषय बनि गेल अछि | जे जतेक बेसी तिलक-दहेज़  देइत-लैत अछि  समाज में ओकर ओत्तेक बेसी मान-प्रतिष्ठा होइ अछि | स्वाइत लोक सब विवाह-दान, दहेज़-लेन-देन आदि के लेल भ्रष्ट तरीका सं बेसी सं बेसी धन कमब में प्रवित्त भेल अछि | 

ई सब  सुनैत सुनैत राजा साहब के माथ दुखाय लगलन (ओ माथ पर हाथ धरैत बीच में बात काटैत बजलाह : ठीक अछि  महोदय अहाँ अपन रिपोर्ट देने जाउ । मंत्री मंडल एकर अध्ययन क उचित कार्यवाही करता । 
(खट्टर झा रिपोर्ट सौंप क ओतय सं विदा होयत छैथ )

दृश्य ४

राजा (चिंतित मुद्रा में )

सूचना एवं प्रसारण मंत्री : चिंता के कारण अहाँक स्वास्थ्य दिनोदिन खराब भेल जा रहल अछि महाराज | ओ विशेषज्ञ सरबा सब अहाँके अनेरे झंझट में फंसा देलक |

राजा : हाँ, आइकाल्हि हमरा राति-राति धैर चिंता के मारल निन्न नै आबै अछि | की करी ना करी किछु फुरा नै रहल अछि |

वित्त मंत्री : मार बाढ़ैन ध क | एहन रिपोर्ट के त आइग लगा देब के चाही जेकरा चलते महाराज के नींद में खलल पड़ै |

राजा : लेकिन करी की ? अहों सब त रिपोर्ट के अध्ययन केलहुँ अछि | अहाँ सब के की राय-विचार अछि ? की ऐ रिपोर्ट के अमल में लाब के चाहि ? 

गृह मंत्री : ई योजना की अछि एकटा मुसीबत अछि सरकार | एकरा जों लागू करै के चेष्टा करी त सबटा व्यवस्थे में उलट फेर भ जायत | अपने सब के किछु एहन कर के आवश्यकता अछि जाहि सं व्यवस्था में बिना किछु उलट फेर केनेहे भ्रष्टाचार समाप्त भ जाय |

राजा : हमहुँ त इहे चाहै छी | मुदा से संभव कोना के होय ! हमर परबाबा के त जादूओ टोना आबै छलैन मुदा हमरा त ओहो नै आबै अछि |

(तखने महामंत्री के एकटा साधू समेत प्रवेश )

महामंत्री (हर्षित मुद्रा में) : महाराज अहाँ चिंता जुनि करू | अहाँक समस्या के समाधान हम ल क एलहुँ अछि |

राजा : से की यौ ? जल्दी बाजू | हमारा सब्र नै अछि एही मामिला में |

महामंत्री : सरकार हम अपना संगे ई महान साधक के जोहने एलहुँ अछि जे कइएक वर्ष धरि  खोज आ तपस्या के पश्चात सदाचारक तावीज बनौलैथ अछि जे मन्त्र सं सिद्ध कैल गेल अछि आ जेकरा बांधला सं मनुष्य स्वत: सदाचारी भ जाइ अछि | 

(साधू अपन झोरा  सं तावीज निकालि क राजा के दैत अछि | )


राजा: हे महात्माजी एहि तावीज के विषय में हमरा विस्तार से बुझाउ |

साधू (दार्शनिक अंदाज में ) : हे राजा, भ्रष्टाचार आ सदाचार मनुष्य के आत्मा में वास करै अछि ; विधाता मनुष्य गढ़ई काल में आत्मा में एकटा यंत्र फिट क दैत छैथ जाहि में सं ईमान अथवा बैमानी के स्वर निकलै अछि , जेकरा आत्मा के पुकार कहल जाइ अछि | 

त प्रश्न ई उठै अछि जे जिनका आत्मा सं बैमानी के स्वर उठै अछि ओकरा दबा क ईमान के स्वर कोना निकालल जाय ? एहि विषय पर कइएक वर्ष धरि शोध आ तपस्या के पश्चात हम ई तावीज बनेबा में सफल भेलौ महाराज | जै मनुष्य के बाँहि पर ई बान्हल रहत ओ सदाचारी बैन जायत | 

राजा : मुदा एकर की गारंटी ?

साधू: महाराज ई तावीज टेस्टेड अछि | हम एकर प्रयोग बिलाड़ियो पर क क देखने छी | ई तावीज बन्हला सं बिलाड़ियो रोटी नै चोरबई अछि | येह ई तावीज के खासियत अछि महाराज | 

(दरबारी सब उठी उठी क तावीजक तजबीज कर लागै छैथ )

राजा (प्रसन्न मुद्रा में हाथ जोड़ैत ) : हम अपनेक बड्ड आभारी छी महात्मन | अपने हमरा घोर संकट सं उबारलहुँ अछि | हम सर्वव्यापी भ्रष्टाचार सं बड्ड परेशान छलहुँ आ एकरा रोक में असमर्थ भेल छलहुँ| मुदा हमरा एकटा नै अपितु करोड़ो तावीज चाहि | हम राज्य के तरफ सं तावीजक कारखाना खुलबा दैत छी आ अहाँ के ओकर सी.ई.ओ बना दैत छी | की औ मंत्रीगण ई प्रस्ताव पारित होय की ने ?

वित्त मंत्री : मुदा एकर की आवश्यकता सरकार ! राज्य एतेक झमेला में किये परौ ! किएक नै एकरा लेल टेंडर निकालल जाय आ चुनिंदा एजेंसी सब के एकर ठेका द देल जाय | आ साधू महाराज सं ई फार्मूला के पेटेंट अधिकार राज्य के तरफ स अधिगृहीत क के ओहि कंपनी सब के द देल जाय | एहि सं अतिशीघ्र तावीज उत्पादन के कार्य संभव भ जायत आ राजदरबार एहि झंझट से सेहो उबरल रहत | 

राजा: ठीक अछि | साधू महाराज के उचित सत्कार कय के विदाय कैल जाय | आ हिनकर बौद्धिक सम्पदा ई तावीज  फार्मूला के जनहित में राज्य के तरफ सं अधिगृहीत कैल जाय | आ यथाशीघ्र टेंडर के कार्य पूरा क के तावीज के उत्पादन शुरू कैल जाय |

(अगिला दिनक  अखबार के खबर - "सदाचार क तावीज के खोज | जल्दीये तावीज बनाब के फैक्ट्री खुजत आ जनता के तावीज मुफ्त उपलब्ध करैल जायत तथा नागरीय सुविधा लेब लेल तावीज पहिरनाई अनिवार्य कैल जायत ")

(पटाक्षेप )

दृश्य - ५

राजा अपना आप सं : - सदाचार के तावीज त बनि गेल | आब एकदिन भेष बदैल क देखबाक चाहि जे ई ठीक ढंग सं काज करै अछि की नै |

(फेर राजा भेष बदैल क एकटा कार्यालय पहुँचैत अछि )

ओतय एकटा कर्मचारी सं राजा : नमस्कार बड़ा बाबू |

कर्मचारी : नमस्कार | कहु की सेवा कैल जाय |

राजा : हुजूर हमर एकटा टेंडर पास होबय के अछि अहाँ एत सं | 

कर्मचारी : ठीक छै, टेंडर अखन प्रक्रिया में अछि | अगिला हफ्ता परिणाम आबि जायत | जे सबसँ योग्य उम्मीदवार हेथिन हुनका नाम सं टेंडर खुजत |

राजा (5०० के नोट दैत ) : हे ई लिय हुजूर बच्चा सब के लेल मिठाई खातिर राखि लिय | नाचीज के बनवारी लाल कहल जाइ अछि बस एतेक ख्याल राखब |

कर्मचारी ( डाँटे के मुद्रा में ) : बेशर्म ! लाज नै होय छह  घुस दैत | भागै छह एतय सं की बजाबी पुलिस के |

(राजा लंक ल क पराई छैथ | )

(किछु दिन बाद एक दिन फेर राजा ओहि कर्मचारी लग जाय अछि )

राजा (फेर से ५०० के नोट पकराबैत ) : हुजूर ई बाल-बच्चा के मिठाई खातिर राइख़ लिय | बस हमर टेंडर के ध्यान राखब | 

(एहि बेर कर्मचारी नोट राइख ले अछि )

राजा (क्रोधित होइत ) : हम अहाँक राजा छी | अहाँ घूस लैत रांगल हाथ पकड़ल गेलहुँ अछि | अहाँ घूस कोना क लेलहुँ ? की अहाँ सदाचारक तावीज नै बंधने छी ? 

कर्मचारी (डरे कँपैत स्वर में ) बांधने छी महाराज | ई देख लिय (देखबै अछि ) |

(राजा आश्चर्य सं तावीज में कान लगबै अछि ) 

तावीज सं आवाज आबै अछि : "आई त ३० तारीख छै आई त ल ले नै त फेर आई कनियाँ आ बाल-बच्चा सब अपन अपन मांग ल क  बेज्जत आ गंजन करतौ | 

ई सुनैत राता के तावीज के उत्पादन में गड़बड़ी के भान भ जाइ अछि आ ओ अपन माँथ पीट ले अछि | 

(पटाक्षेप )

(ई नाटिका हरिशंकर परसाई जी क एकटा निबंध सं प्रेरित अछि )

Thursday 28 May 2015

अंबर

“Mr. Jha, your leave has been sanctioned. You can proceed for leave. Have a great journey.” इ ई-मेल पढैते सुमनजी के मोन खुशी से मयुर सन नाच लागल । सुमनजी नोयडा क एकटा इंजिनियरिंग कालेज में बीटेक(ईसीई) प्रथम सेमेस्टर के छात्र छलाह । दुइए मास पहिने त हिनकर एडमिशन एत भेल छलैन, किंतु ओ अपन क्षेत्र सं पहिल बेर बाहर आयल छलैथ आ इंजिनियरिंग में प्रवेश के बाद इ पहिल दूर्गापूजा ! गाम कोना नै जायब ! आ गामों में त मां-बाबू-बहिन, दोस्त-महिम सेहो सब त आंखि पाथने अछि हिनका देख लेल । ई सब सोचैत-सोचैत सुमनजी के पुरना गप्प सब मोन पर लगलैन ।
बचपने सं ओ एकटा औशत मेधा के छात्र छलाह । साधारण परिवार के बालक, आ घर में पढ में सभसं बेस होसगर । स्वाइत परिवार आ सर-कुटुमैति में लोक सब हिनका में बाबू-इंजिनियर आदि बन के आश लगाब लागल । जखन इ मैट्रीक क परीक्षा प्रथम श्रेणी में निक नंबर सं उत्तीर्ण केलैथ त ओ आश के बल भेटल आ हिनका सीएम साईंस कालेज में इंटर(गाणित) संकाय में प्रवेश भेट गेलैन । इंटर क पढाई के दौरान हिनका में इंजिनियरिंग कर के महत्वाकांक्षा बलवंत होइत गेल । ओ दरिभंगा में एकटा कोचिंग सेहो पकैर लेलैथ आ १२वी के परीक्षा संगे जेईई(मेन) के परीक्षा में सेहो बैसलाह । किंतु औशत छात्र के विडंबना होई अछि कि ओ नै आरे होइ अछि आ नै पारे ! जेईई(मेन) में ठीक ठाक कहल जाइ बला रैंक भेटक छलैन्ह किन्तु एतेको निक नै जे जेईई(एड्वांस) के लेल उत्तीर्ण कहल जाय अथवा एन.आई.टी अथवा कोनो अन्य टाप इंजिनियरिंग कालेज में प्रवेश भेटैन्ह । अत: हिनको लग वैह विकल्प छल जे बहुत पाछां रैंक बला सब के लेल सेहो खुजल छल, अर्थात अन्य प्राईवेट इंजिनियरिंग कालेज ।
यद्यपि हिनका इहो देखना गेलैन जे हिनका सं बहुत पाछु रह बला एसी/एसटी कोटा के क्षात्र सब के एन.आईटी में प्रवेश भेट रहल छल। इ बात हिनका दूध में मांछी सन बुझना गेल छल । हिनकर मोन कुंठित होमय लागल छल । ताहिपर सं परिवार-समाज क प्रश्नवाचक द×ष्टी हिनका आर बेसी विचलित करय लगलैन । किछु गोटे राय देलखिन जे एहि बेर छोड़ आ पटना/दिल्ली जा क तैयारी कर ग, अगिला बेर आईआईटी/एन.आईटी में एडमिशन भैये जेत । सुमनजी के मोन एहि उहापोह में छल ताहि बीच हुनका यार कक्का सं भेट भ गेलैन जे छुट्टी में गाम आयल छलैथ । ओ हिनका बुझेलखिन जे हौ, तोहर जे स्थिति छ: ताहि में कोन गारंटी जे अगिला बेर तोरा आईआईटी/एन.आईटी में एडमिशन भैये जेत ? आ जौं नै भेटल त इंजिनियरिंग कर के सपनो पर कुठाराघात भ सकै छ: । ताहि सं निक अछि जे तोहर रैंक निक छ: आ कोनो नीक प्राईवेट इंजिनियरिंग कालेज में ईसीई/सीएस आदि संकाय में प्रवेश भेट जेत। आ एहन ठाम प्रवेश भेला पर एजुकेशन लोन भेटबा में कोनो भांगट नै रहत। आ ओहि सलाह के परिणामस्वरूप आई सुमनजी एत बीटेक क रहल छैथ । इ सब सोचैत सोचैत सुमनजी के पता नै कखन आंखि लागि गेलैन ।

नियत समय पर सुमनजी गाम पहूंचला । गाम में यार-दोस्त, मां-बाबू-बहिन-पितियाइन सभ सं भेंट कय क मोन हर्षित भेलैन । यार दोस्त में कनि हवा-पाईन सेहो छोड़लैथ किंतु एन.आई.टी में प्रवेश नै भेटै के कुंठा अखनों धरि कहीं हिनका मोन में अटकल छल जे कखनो क हिनका मोन के विचलित क देइत छलैन ।
सतमी के सांझ में ओ दुर्गास्थान मेला में गेलैथ त अचानक हिनकर नजैर एकटा श्यामवर्णीय ६ फ़िट के छौंरा पर गेल जे फ़ुकना-पिपही बेच रहल छल । ’अंबर’ यैह नाम छल ओकर । अचानक ओकरा एहि अवस्था में देख सुमनजी के ह×दय द्रवित आ ग्लानित होमय लागल । ओ ओकरा सं नजैर चोरा क एम्हर आम्हर घुमय लगला किन्तु ध्यान हिनकर ओकरे पर टांगल छल । पुन: किछु पुरान गप्प मोन पड़ लगलैन ।
ओ स्कूल में हिनके संगे पढै छल, किन्तु १०वी के बाद कहियो भेंट नै भेल छल । भगवान जनैथ मैट्रीक पासो केने छल कि नै ! ओ बचपने सं लंबा छल, पैघ-पैघ केस राखै छल, श्यामवर्णीय छल आ देख में खास नै छल, किन्तु तैयो स्कूल में ओ अपना के अमिताभ बच्चन कहै छल, आ स्वाईत आनो बच्चा सब ओकरा व्यंगात्मक रूप सं या डरे अमिताभ बच्चन कहै छल । ओहो Schedule Cast छल आ पढै में बज्र भुसकौल (शायद अपन परिवेश के कारण अथवा शायद भगवान ओकरा ओहने बनेने छलखिन) । तथापि ओकरा stipend भेटनाई ओहि समय में हिनका समझ में नै आबै छल । आइ ओकरा ऐ स्थिति में देख क सुमनजी के मोन में होमय लागल जे कदाचित एकर कोनो मजबूरिए हेतै जे इ पढ के बयस में इ छोट छिन धंधा क क जीविका कमेबाक प्रयास क रहल अछि ! दू-चारि दिन बाद बाजार जैबा क क्रम में ओ फ़ेर सुमनजी सं टकरा गेल । सुमनजी कन्नी काटि क निकैल जाय चाहय छलखिन किन्तु अंबरे हिनका टोकलक : - “की दोस कि हाल चाल?” फ़ेर कुशल-क्षेम के बाद गप्प क क्रम में ओ बतेलक जे “कि बताबियौ दोस, पढ में त हम कहियो ठीक छलियौ नै। कहुना थर्ड डीविजन से मैट्रीक पास केलौं तै के बाद बाबू सुशील डाक्टर साहब लग काज पर लगा देलकौ ओत्तै साफ़-सफ़ाई के काज करै छी आ कंपाउंडरी सेहो सीख रहल छी । तों त आब मस्त इंजीनियरिंग क रहल छैं, आ करौ किए नै, बचपने सं पढै बला बच्चा छलैं” इत्यादि । गप्पक क्रम में सुमनजी के मन:स्थिति सामान्य होइत गेलैन आ अंतत: ओ ओकरा सं फ़ुकना बेचै बाली बात पुछिए लेलैथ। ओ उत्तर देलक: “देखही दोस, हम भेलौं मुर्ख गरीबहा लोक, ई मेले-ठेले में त दू टा उपरी आमदनी कमाय के मौका होई अछि से मौका कोना क गंवाबी । आ बात जहां धरि इन्जोय कर के अछी त मेला में उपस्थितिए इन्जोय के गवाही बनि जाय अछि । किछु लोक मेला में खरीद क इन्जोय करै अछि, हमरा सन लोक बेच क ।
अंबर सं बात केला उत्तर आ ओकर खुशगवार मिजाज देख के पश्चात सुमनजी के आत्मग्लानी समाप्त भ गेल छल । ओ सोचै लागल जे अंबरा के परिस्थिति जे भी देलकै अछि ओकरा ओ अपन मौका बुझि सहर्ष स्वीकार केलक अछि आ आनंदपूर्वक अपन कर्म क रहल अछि । त परिस्थिति हमरा त एकरा सं बड्ड निक मौका देने अछि अपन कर्म कर लेल आ अपना आ समाज के बहुत किछु देब लेल । आब सुमनजी के आत्मा सं आईआईटी/एन.आई.टी में प्रवेश नै भेट के बोझ सेहो उतरि गेल छल । ओ प्रण केलैथ जे ओ बीटेक के पढाई परम लगन सं करता आ अपना के पैघ सं पैघ मुकाम पर स्थापित कर के प्रयत्न में कोनो भांगट नै रह देथिन । संगहि एससी/एसटी के प्रति वैमनस्य के भावनों समाप्त भ गेल छल । सुमनजी के आब इ एहसास भ गेल छल जे ’अंबर’ सन कतेको अछि जे परिवेश के मारल अछि आ एहन लोक के किछु विशेष सुविधा भेट में कोनो अतिस्योक्ति नै अछि । आब हिनकर मोन ओहिना शांत आ ताजा भ गेल छल जेना बवंडर के बाद मेघ पड़ला उत्तर सब साफ़ आ ताजा भ जाई अछि ।
०४.०५.२०१५

Tuesday 5 May 2015

अकांड तांडव

हे महादेव इ केहन अन्हेर !
अकांड तांडव प्रत्यक्ष भेल
भूमि डोलल अछि बेर बेर
दुखिया सब के आब लियौ टेर।


अछि हाहाकर उठल चंहुओर
भ अनाथ, बालक मारे किल्कोर
अछि भवन मंदिर सब खाक भेल
जनै कतेक के प्राण गेल ?

अभिनव मानव हम ब्रह्मा क  कृति
हारि मानव नै अछि अपन वृत्ति
बढा क सकल हाथ आब त्राण करब
मिल-जुलि क नव निर्माण करब
छि मनुज, मनुजता जानै छी
मानवता के मूल्य पहचानै छी।

बस एतेक गुहार सुनु बाबा
आब और प्रहार नै चुनु बाबा
पीडीत सब के कनटेर लियौ
दु:ख काटि सकै ओ धैर्य दियौ।

दु:ख क पहाड के पार करैथ
नवद्वीप प्रसन्नता में पहूंचैथ
क सकैथ फ़ेर आनंदघोष
हर हर महादेव के उद्घोष।
०४.०५.२०१५

Saturday 11 April 2015

अपन अपन धर्म (संस्मरण)

 वाकया अछि 15 जनवरी 2014 के जखन हम अपन माँ-पप्पा संगे गंगा सागर (सागर आइलैंडसे तिलासंक्रान्ति के बाद घुरै छलौं | जखन हम सब मिनीबस में बैसल जेटी घाट दिस जाइत रही तखने किछु नवतुरिया छौरा-छौरी सब हमर सब के गाडी के रोकलक | एतय हम  बता देब चाहे छी के मकर संक्रांति मेलाके समय पर सागर द्धीप  पर यातायात अव्यवस्था के असुविधे देखय के लेल भेंटल छल | तीर्थयात्री  सब के रेलमपेल पड़ल छल | एहन में  एक झुण्ड नवतुरिया के अचानक गाडी रोकैत देख मोन आशंकित भेलजे की बात अछि  ! मुदा हमारा  देख आश्चर्य भेल जे एहन बीहड़ में एतेक असुविधा के बीच  हिन्दू तीर्थस्थलपर  नवतुरिया छौरा-छौरी के झुण्ड क्रिस्चैनिटी के प्रचार करै लेल आयल छल | पहिने  हमारा आश्चर्य भेलकिन्तु पाछाँ हम अंदाज केलौं जे एहेन शायद  लेल अछि किएक  एहि दुर्गम अनमार्केटाइज्ड  अनब्रांडेड तीर्थस्थल पर अधिकांशतमध्यमवर्गीय एवं निम्नवर्गीय तीर्थयात्री सब आबैत जाइ अछि जे एकर सब के मुख्य टारगेटेट वर्ग होइ अछि कन्वर्जन के लेल | खैरहम  कहै छलहुँ जे  छौरा-छौरी सब एकटा डायरीनुमा किताब बाँटै छल ओहो फ्री में जे हिंदी अंग्रेजी  बांगला में उपलब्ध छल | हम र माँ के बुझना गेलै जे कोनो धार्मिक किताब बैंट रहल अछि तहि सं ओहो एकटा  लेलक | अपना देश में यदि कोनो वस्तु फ्री भेंटै  ओकरा प्राप्त कर से केयौ चूक नै चाहै अछि, स्वाइत पप्पो एकटा  लेलैथ | आगा बढ़ला पर माँ के पुछला पर हम हुनका बतेलिएन जे  क्रिस्चैनिटी (दोसर धर्मके धर्म ग्रन्थ अछि    छौंड़ा-छौंरी सब एहि किताब के मार्फ़त अपनधर्म के प्रचार करै छल | एहि पर पप्पा कहलैथ जे तखन   किताब के फेंक देब के चाहि |  पर हमर माँ जे पढ़ल-लिखल नै अछि  एकटा धार्मिक मैथिल ब्राम्हण महिला अछि  कहलक जे "नै  एकटा धार्मिक ग्रन्थअछि (भले आने धर्म के किए नै होयताहि लेल एकरा एम्हर-आम्हार फेँकनाई उचित नै अछि ,  ताहि लेल एकरा अपना सब रास्ता में गंगाजी में भँसा देब (जेना की अपने सब अपन धार्मिक अवशेष संग सेहो करै छी ) |" आगा हम सब ओहि किताब के गंगाजी में भँसा देने छलिये | 

उपरोक्त  घटना के बाद हम सोचै लागलौ जे हमर माँओ के एकटा धर्म अछि जे सनातन अछि जे अपना में आके सास्वत राखैतो सब धर्म के सम्मान केनाइ सिखबै अछि (जेना की गीता में स्वयं गोविन्द सेहो कहै छैथ ) 

दोसर तरफ  नवतुरिया छौंड़ा-छौंरी के भी अपन धर्म अछि जे ओकरा सब के अपन मेहनत  ढौआ खर्च  अपन धर्म के प्रचार कर के लेल प्रेरित करै अछि |  देश-दुनिया में किछु एहनो समूह अछि जे धर्म के नाम पर अलगाववाद  आतंकवाद सं घृणित काज के अंजाम दैत अछि  अपने धर्म  कौम के बदनाम करै अछि किछु लोक एहनो अछि जे जबरदस्ती अपन-अपन धर्म के ठेकेदार बैन जाइ अछि जिनका लेल धर्म केर  एकमात्र अर्थ दोसर धर्म के लोक सब के निंदा केनाइ  ओकरा सब के प्रति घृणा फैलेनाइ अछि | एहन लोकसब या  धर्म के ठेकेदारी  एकर धंधा करै अछि या एहन गोरखधंधा करै बला सब के चंगुल में फँसल दिक्भ्रमित लोक सब होइ अछि | हम इहो सोचै लागलौं जे अपने सब के ओइ नवतुरिया सब से प्रेरणो लेबै केचाहि की अपने सब के धर्मसमाजभाषा आदि के निक बात सब के अपन मेहनत  व्यवहार द्वारा देश दुनिया के सामने राखै के चाहि | प्रेरणा  एत  हमर माँओ के अवधारणा  व्यवहार सं भेटै अछि ...फिलहाल त बस एतबे ...फेर भेंटइ छी बाद में.....नमस्कार 
(नोट: ई लेख पूर्व में एहि ब्लॉग पर  हिंदी भाषा में प्रकाशित भ चुकल अछि |)