Thursday 21 December 2017

फेसबुक केर चक्कर (मैथिली खिस्सा) - "Facebook ker chakkar" (Maithili Kahani)

कुशल जी, नोयडा के एकटा बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर छलाह। जहिना नाम कुशल तहिना ओ अपन पेशा आ बेक्तिगत जिनगी के सब कार्य में कुशल छलाह। समाजिकता सेहो छलैन्ह आ समाज सं जुडल रह के शौख सेहो। महानगरिय जिनगी के एकटा साईड इफ़ेक्ट इ अछि जे एतुका जिनगी के भागाभागी में अहां नहियो चाहैत समाज से कटि जायत छि!

आधुनिक काल में मनुक्खक जिनगीशैली मे तकनिकि के बड्ड योगदान अछि। एहि क्रम में तकनिकि, भागादौरी में व्यस्त मनुख के समाज सं जोडै में सेहो मददगार साबित भऽ रहल अछि । जतय एक तरफ़ नेता से लऽ के अभिनेता सब भरि दिन ट्वीटर पर टिटियाइत रहै अछि ओतै आनो आन लोक सभ फ़ेसबुक आ व्हाट्सएप के मदैद स अपन बिछुडल समाज-समांग आ संगी सब स̐ जुडल रह के नया प्रयोग में लागल छैथ। एहन लोक में कुशलजी के नाम अग्रणी श्रेणी मे राखल जा सकै अछि कियेक त हुनका फ़ेसबुकिया कीडा खुब कटलकैन अछि। दिन भरि में देखल जाय त २४ घंटा में ओ १८ घंटा त निश्चिते फ़ेसबुक पर ओनलाईन भेट जेताह। नाना प्रकार के पोस्ट करैत रहताह – राजनीति स ल के समाज तक आ फ़ूल-पत्ति से ल के जंगल-झाड तक । हुनका अंदर दिनोदिन ई फ़ेसबुकिया कीडा के संक्रमण बढैत जा रहल छलैन्ह जेकर परिणाम ई भेल छल जे हुनकर कनियाँ के आब ई आदैत से किछु असोकर्ज जेना होमय लागल छल । दोसर गप्प जे ई किछु समाजिक आ क्षेत्रिय समस्या पर सेहो अपन प्रतिक्रिया ठांय पर ठांय दैत छलाह, जे किछु गोटे के अनसोहाँत बुझना जाय छल। ऐ बातक शिकायत सेहो इनबोक्स में खूब भेटय छलैन्ह । चलु जे से मुदा दोसर गप्प के गैण बुझि पहिल गप्प के प्रमुख मानल जाय।

अहिना एक दिन घर में ऐ फ़ेसबुकिया रोग के ल के खुब महाभारत मचल। कनियाँ हिनका खुब सुनौली। विवाह स ल के आई धरि के जतेक उपराग छल सभटा मोन पारि पारि के ओय सभसं कनियाँ हिनका पुन: अलंक्रित केलिह।

उपरागक एहन दमसगर डोज स कुशलजी के मोन अजीर्णता के शिकार भ गेल। हुनका अतेक रास गप्प पचलैन नै। ओ अपन मोबाईल में से फ़ेसबुक के अनइंस्टल करै के कठोर फ़ैसला लेलाह। हुनका लेल ई फ़ैसला लेनाई नोटबंदी के फ़ैसला से कम कठोर नै छल मुदा जेना सरकार के नोटबंदी में देश कऽ हित बुझना गेल छल तहिना हिनको अखुनका परिस्थिति में फ़ेसबुक बंदी में अपन हित बुझना गेल छल । तथापि फ़ेसबुकिया कीडा के असर अतेक जल्दि कोना जा सकै छल से ओ फ़टाफ़ट अपन मोबाईल निकाललाह आ लगलाह अपन फ़ेसबुक स्टेसस अपडेट में – "पब्लिकक भारी डिमांड पर हम काल्हि सौं फ़ेसबुक छोडि रहल छी, ताहि लेल जिनका जे किछु कहबा-सुनबा के होइन से आई अधरतिया धरि कहि सकै छी ! "

तकरा बाद त अधरतिया तक पोस्टऽक जेना ’बाढि’ आबि गेल होय। आ तहिना ’गिदरऽक हुआ-हुआ’ जेना ओय पोस्ट सभ पर कमेंटऽक हुलकार होमय लागल छल। जौं जौं समय बितल जाय छल कुशल जी के मोन कोना दैन करय लागल छल । मुदा एहि बेर फ़ेसबुक बंद करय के प्रण ओ कदाचित भीष्म पितामह के साक्षी मानि के लेने छलाह आ कि कनियाँ के शब्द वाण हुनका तहिना घायल केने छलैन जेना अर्जुन के वाण कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह के । परिणाम ई भेल जे अंतत: ओ फ़ेसबुक बंद क देलाह।

मुदा ककरो एने-गेने की जिनगी क चक्र रूकल अछि! एहिना फ़ेसबुको के चक्र हिनका अनुपस्थितियों में अपन गति से चलिते रहल। यद्यपि किछु निकटवर्ती सर-समांग सब से वाया व्हाट्सएप विमर्श क सिलसिला चालुए छल। 

ऐ घटना के किछु दिन बितल हैत की एक दिन कुशलजी के एकटा फ़ोन आयल।  ’हेल्लो!’
"हें..हें…हें…मनेजर साहब यौ….नमस्कार"
"नमस्कार। अहां के?" प्रतिउत्तर में कुशल जी बजलाह।
" हें..हें…हें…नै चिन्हलौं? आह! चिन्ह्बो कोना के करब, पहिने कतौ भेंट भेल हैब तखन की ने। हम अहांक फ़ेसबंधु छी। नाम अछि पुष्पेन्द्रनाथ चौधरी। पुष्पेन्द्रनाथक अर्थ भेल पुष्प क राजा अर्थात कमल आ हुनकर नाथ अर्थात कमलपति भगवान विष्णु । हें..हें…हें…" अपन साहित्यिक परिचय दैत ओ फ़ेर स̐ बलह̐सी ह̐सय लगलाह ।

कुशलजी किछु याद करबाक चेष्टा करैत फ़ेर बजलाह "ओह। अच्छा। कहु की समाचार।"

" हें..हें…हें… हमहु अत्तै सोनीपत में रहै छी। अहाँक फ़ेसबुक पोस्ट सब स̐ बहुत प्रभावित छी। समाज में अहाँ सन लोक सब के बड्ड आवश्यकता अछि। अतएव अहाँके फ़ेसबुक छोडला से हम बहुत दुखित छी। अहाँ के अंतिम पोस्ट सब हम देखने छलहु । हम जनैत छी जे अहाँक बात सब किछु गोटे के लोंगिया मिर्चाई सन लगै छलैन । आ एहने लोक सब के धमकी के कारणे अहाँ फ़ेसबुक छोडलहु अछि। मुदा जहिया तक हमरा सन लोक जीवित अछि अहाँ के डराय के कोनो आवश्यकता नै अछि। एहि संबंध में हम अहाँ से भेंट क के विमर्श करै चाहै छि। बड्ड तिकरम से अहाँ के नंबर उपलब्ध भेल अछि। आई हम नोयडा आबि रहल छि आ अहाँ से भेंट करै के अभिलाषी छी ।"

"मुदा हम आफ़िस क काज में कनि व्यस्त छी" कुशल जी बजलाह

"आहि आहि आहि। बस किछु मिनट के भेंट चाहै छी। हम बस एक घंटा में पहुँच रहल छी।" ई बजैत उत्तर के प्रतिक्षा केने बिना ओम्हर से फ़ोन राखि देल गेल ।

फ़ोन राखि के कुशलजी पुन: अपन कार्य में व्यस्त भ गेलाह। करीब डेढ घंटा के बाद रिसेप्शन से फ़ोन आयल "सर कोई पुष्पेंद्रनाथ चौधरी आपसे मिलने आए हैं ।"
"ठीक है भेज दो" कहि कुशलजी फ़ेर अपन काज में व्यस्त भ गेल छलाह।
दू मिनट बाद अर्दली एकटा थुलथुल काय व्यक्ति के संग नेने हाजिर भेल। उजरा धोती, ताहि पर से घाम में लभरायल सिल्क के कुर्ता, लंबा टा चानन केने ई व्यक्तित्व भीडो में आराम स̐ चिन्ह में आबि सकै छैथ से इ कियौ मैथिल थिकाह।

"आउ बैसु" अतिथि के स्वागत करैत कुशलजी बजलाह।

आह मैनेजर साहेब आइ अहाँ स भेट भेने हमर जिनगी धन्य भ गेल। कहिया से नियारने छलहु, आइ जा के अहा पकड में एलहु अछि। अच्छा से सब जाय दिय, पहिने ई बताउ जे अहाँ फ़ेसबुक किये छोडलहु अछि? अहाँके भाषा बचाउ आन्दोलन बला किछ कहलक अछि आ कि शिथिला राज्य बला धमकेलक अछि, आ कि शिथिला हुरदंगिया सेना बला सब घुरकेलक अछि? अहाँ बस एक बेर नाँ लिय बाँकि हम देख लेब। हम सभटा बुझै छि एकर सब के खेल-बेल। यौ महराज हमहु बीस बरख स एम्हरे रहै छी आ दिल्ली के गोट-गोट कालोनी सब जै में मैथिल-बिहारी सब बसल अछि,में पैठ बनौने छि इलाका के छा̐टल बदमाश सब हमरा ना̐ से धोती…धोती त खैर पहिरैत नै जाय अछी धरि पैजामा में लघी क दैत अछि। एहि प्रकारे चौधरी जी आधा-पौना घंटा तक खूब हवा-बिहारि देलखिन ।

जखन हवा-बिहारि के क्रम किछु रुकले तखन गप्पक दिशा मोड़ैत चौधरीजी बजलाह: “हें..हें…हें… अहां भोजन त कैये नेने हैबैक?”

आब चरबजिया बेरा में एहन प्रश्न के की उत्तर देल जाय! अस्तु कुशलजी एहि प्रश्नक उत्तर एकटा प्रश्ने से देलाह "कि अहां भोजन नै केने छी की?"

"आह। हम त घरे सं भोजन क के विदा भेल रही। आब त जे हतै से नस्ते-पानी हेतै की। हमर घरनी त जलखै संगे बांन्है छलखिन । मुदा हम मना करैत कहलियैन जे मनेजर साहेब बिना नस्ता करेने मानथिन्ह थोरेक ने। से अनेरहे हमरा ई सब फ़ेर घुरा क नेने आबय परत।"

चौधरी जी के आशय बुझ में कुशलजी के कोनो भांगट नै रहैन। तथापि ओ मोने मोन किछ राहत अनुभव करैत सोचय लगलाह जे हाथ एहिना टाईट अछि, एहन में यदि जलखै भरि कराक हिनका स̐ पिंड छूटै त सौदा महरग नै अछि।

एहि निर्णय पर पहुँचैत ओ चौधरीजी से बजलाह। जे चलु तखन किछु जलपाने क लेल जाय। हुनका संग नेने कुशलजी बगल क एकटा रेस्टोरेंट में पहुँचलाह।

ओतय बैरा के बजाय ओकरा दू टा सिंहारा, दू टा लालमोहन आ दू टा चाह क आर्डर दैते छलाह आ की चौधरी जी बीच में कूदैत बजलाह " इह! एकटा जमाना छल जे एक प्लेट सिंहारा माने दू टा सिंहारा बुझल जाय छल। आ ताहि पर से उप्पर से परसन जतेक लेल जाए तकर हिसाब नै। आ आब त एकटा सिंहारा के फ़ैशल आयल अछि। जे कहु, हमरा सन लोक के त एकटा सिंहारा से मोन छुछुआएले रहि जाय अछि। आ लालमोहन के की पुछल जाए। बरियाति सब में त गिनती के कोनो हिसाबे नै रहै छल। खौकार सब के बाजी लागय त सै, डेढ सै, दू सै टिका दैत छल। मुदा आबक जुग के की कही!"

ई बजैत ओ बैरा के चारि टा सिंहारा, २० टा लालमोहन आ दू कप चाह क आर्डर क देलखिन, आ व्यापार कुशल बैरा सेहो कुशलजी द्वारा कोनो संशोधन के इंतजार केने बिना आर्डर ल के निकलि गेल। पाँच मिनट बाद हिनकर सभक मेज पर सिंहारा आ लालमोहन के पथार लागि गेल छल।

कुशल जी नहु नहु चम्मच काँटा स तोरि तोरि सिन्हारा आ लालमोहन खाय लगलाह आ ओम्हर चौधरीजी बुलेट क गति से सिन्हारा आ लालमोहन के सद्गति देबय लगलाह। जा कुशलजी संग दैत २ टा सिन्हारा आ  २ टा लालमोहन खेलथिन्ह टा बचलाहा सबटा माल चौधरीजी के पेट में अपन जगह पाबि गेल छल। चाह क अंतिम चुस्की लैत चौधरीजी बजलाह "ईह! इ नास्ता की भेल बुझू जे भोजन भ गेल।"

"बेस तखन आज्ञा देल जाउ।" बैरा के बिल के बदला में पांच सौ के नोट पकराबैत कुशल जी बजलाह।
"हें.. हें ..हें ... हें आब त अपने घरे निकलबै की ने। हम सोचै छलहुँ जे एतेक दूर आयल छी आ आई संजोग बनल अछि त भौजियो से एकरत्ती भेंट भैये जैतै त ...हें.. हें ..हें ... हें।" इ बजैत चौधरीजी फेर सं बलहँसी हँसय लगलाह। आब ऐ ढिठाई पर कुशलजी की कहि सकै छलाह! तिरहुत्ताम के रक्ष रखैत मौन स्वीकृत्ति दैत चौधरी जी के संग क लेलैथ आ गाड़ी में बैस घरक बाट धेलाह।

घर पहुंचला पर चौधरीजी कुशलजी के कनियाँ 'चँदा दाई'  आ बुतरू सब के बीच रैम गेलाह आ तुरत्ते हुनका बीच में अपन वाक्-कुशलता के धाक जमा देलखिन।

गप्प-सप्प  एम्हर आम्हार से होयत माँछ क गप्प पर पहुँचल। चौधरीजी बजलाह "ईह! अहाँक  बगले में त छलेरा गाँव में बड़का मछहट्टा लगै अछि. बड़का-बड़का जिबैत रहु भेटै छै. चलु घुरि क अबैछि।" ई बजैत ओ कुशल जी के हाथ धेने बाहर जाय के उपक्रम करय लगलाह।

आब आगाँ के खिस्सा अहाँ अपनहुँ सोची सकै छि। अस्तु रात्रि पहर दिवगर माँछ-भात-दही-पापड के भोजन भेलै। भोरे कुशलजी के छए बजे से एकटा मीटिंग छल बिदेशी क्लाइंट संगे वीडियो कांफ्रेंसिंग पर। ओ पँचबज्जी भोरे ऑफिस निकली गेलाह आ एम्हर चौधरी जी आठ बजे तक चद्दर तानि क फोंफ कटैत रहलाह।

उठला पर चाह-चुक्का संगे फेर सं दमसगर नस्तो भेलै। चलै काल ओ कुशलजी के कनियाँ के कल जोरि के क्षमायाचना के भांगट पसारैत बजलाह "हें ..हें...हें... भौजी तखन आब आज्ञा देल जाउ। हमारा कारणे जे अहाँ सब के कष्ट भेल होयत तकरा लेल क्षमाप्रार्थी छि हें ..हें...हें..."

"नै नै ऐ में कष्ट के कोन गप्प छै। अतिथि सत्कार त हमर सबहक परम कर्तव्य थीक" ई बाजि चँदा दाई हिनका जेबाक आशा में केबार लग ठाढ़ भ गेल छलीह मुदा चौधरीजी एक बेर फेर किछु संकोच करैत आ बलहँसी हँसैत बजलाह "हें ..हें...हें...जै काज से नोयडा आयल रही तै में किछु पाई के खगता भ गेल। मैनेजर साहब अपनहि रहितैथ तखन त किछु बाते नै रहितै जतेक कहतियन पुराइये दितथिन मुदा ओ त भोरे भोर मीटिंग के लेल निकली गेल छैथ। से दूओ हजार टका जौं भ जैतै त ...."

चँदा दाई किछु धकमकाइत चौधरी जी के हाथ में एकटा दू हजरिया के नोट थम्हा देलीह।

सांझ में कुशलजी जखन आफिस से घुरलाह त चँदा दाई हिनका हाथ से मोबाइल छीन किछ करै लगलीह। कुशलजी के भेलैन जे हौब्बा! आब कोन काण्ड भ गेलै। कनिके काल में कनियाँ हिनका हाथ में मोबाइल दैत बजलीह "लिय अहाँक मोबाइल में फेसबुक इंस्टॉल क देलौं अछि ... आब अहि पर करैत रहु सोशल  नेटवर्किंग।"


इति श्री !
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Thursday 27 July 2017

चक्रफाँस (मैथिली खिस्सा )

दीपक बीसीए क के पूना के एकटा कंपनी में डाटा प्रोसेसर के पद पर काज करय छलाह । बीसीए कयलाक क बाद इ नौकडी हुनका कोनो अनेरहे भेंट गेल होय एहन बात नै छल, मुदा हुनकर लगन, प्रतिभा आ भाग्य बले हुनका ई नौकडी भेंट गेल छल अन्यथा हुनके कै टा संगी सभ एम्हरे-आम्हरे कय रहल छलाह। ओना जौं लंगोटिया दोस सब के बात करी त ओ सब हिनका स बढिये पोजिसन पर पहुंच गेल छलाह। रूपेश इलेक्ट्रोनिक इंजिनियरिंग क के इन्फ़ोसिस में छलाह त नंदन मैकेनिकल इंजिनियरिंग क के रिलायंस में । आषीश सेहो सरकारी बैंक में क्लर्क भ गेल छल । तखन इ छल जे दीपको ठीक-ठाक पोजिशन पकैड नेने छलाह । एही बीच में देशऽक युवा वर्ग सब में राष्ट्र्भक्ति के नया हरबिर्रो उठि गेल छल। इलेक्ट्रोनिक मिडिया से ल के सोशल मिडिया तक में विविध प्रकार के उत्तेजक फ़ोटो, विडियो आ लिंक साझा करय जाय लागल छल । कालेजऽक कैंटीन से ल क आफ़िसऽक कैंटीन तक बस एतबे बहस। सेना की कय रहल अछि पाकिस्तान की कय रहल अछि, अमुक ग्रुप के छात्र सब देशद्रोही थिकाह, अमुक क्षेत्र के लोक सब देशद्रोहि थिकाह, बस यैह सभ चर्चा। दीपक सन भावुक लोक के कखनो काल ई अतिश्योक्ति देख मोन आरिज भऽ जाय छल त कखनो के ओ भावुक भऽ अपने आपे के कोसऽ लागै छहाल। इंटर पास करय के बाद दीपक एनडीए के परीक्षा में बैसल छलाह। पहिल प्रयास में त नै भेलैन ,मुदा दोसर प्रयास में ओ लिखित परीक्षा पास कऽ गेल छलाह। मुदा जखन एसएसबी के लेल भोपाल गेल छलाह त ओत घोर निराशा हाथ लगलैन। गा̐व आ दरिभंगा में पढल लडका, नै अंग्रेजी बाजय में फ़र्राटेदार आ नै हिन्दी बाजय में ओ द̨ढता आ आत्मविश्वास! लिखित परीक्षा आ रिज्निंग राउंड तक त ठीके रहलैन मुदा जखन स्टोरी राईटिंग आ ग्रुप डिस्कसन राउंड आयल त हिनकर हाथ-पैर फ़ुलय लगलैन। अस्तु, ओ अगिला राउंड में नै पहुंच सकल छलाह।

अहिना एक बेर बिहार मे प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षक के भर्ती निकलल । हिनको कै टा संगी आ गौंआ सब फ़ोर्म भरलक। ओ सब हिनको उकसैलक जे तोहुं भैर लैह हौ मीता, भ गेलह त बुजह जे आरामऽक नौकडी भ जेत अपन प्रदेश में । बाबू सेहो सैह राग अलापै छलखिन्ह। बाबू बाजल छलखिन्ह जे जतेक पाई ओत दै छौ लगभग ततेक पाई त एत्तौ भेटिए जेतौ। दीपक उत्तर में बजने छलाह जे बाबू से त ठीक अछि मुदा एत्त हमरा आगा तेजी स उन्नति भेटत ओतय से बात नै ने रहतै यौ। ऐ पर बाबू बजलाह जे देखह ओतय जत्तेक खर्च छ गाम-घर मे ओकर अपेक्षा खर्च कत्तेक कम हेत सेहो ने सोचह। तैं एकबेर ट्राई करऽ मे कोनो हर्ज नै। एहि प्रकारऽक  घमर्थन के बीच दीपक के मोन मे एकबैगे एकटा सोच जगलैन। ओ सोचय लगलाह जे जौं हमरा मास्टरी में भ जाय त हमरा लेल इ एकटा अवसर हेतै अपना गाम-घर दिस के बच्चा के पढाबय-लिखाबय के । यदि हम अपन प्राप्त ग्यान आ अनुभव के उपयोग क के मेहनत से किछु धिया-पुता के पढाबय के प्रयास करब त निश्चिते प्राथमिक-माध्यमिक स्तर पर किछु बच्चा में ओ ग्यान आ आत्मविश्वास भैर सकै छी जैसे ओ आगा दुनिया में स्पर्धा क सकै। फ़ेर बाबूओ ठीके कहै छथिन जे भ सकै अछि जे वापस गामऽक रस्ता धेने हमर करियर ओ मोकाम हासिल नै क सकै जे पूना में रहि क अगिला १०-१५ साल  में हम प्राप्त क सकै छि मुदा गाम-घर में ओइ अनुसार खर्चो कम हेतै आ अपन क्षेत्र में रहय के आनन्द सेहो त भेटतै । यैह सब सोचि क दीपक अप्लाई क देलाह। भगवती के इक्षा एहेन भेलैन जे दीपक ओई परीक्षा में सेलेक्ट भऽ गेलाह आ हुनका ट्रेनिंग के लेल सरकारी पत्र प्राप्त भेलैन ।

 आब ऐ विषय पर लंगोटिया सब में ह्वाट्सएप ग्रुप में घमर्थन शुरू भेल । नंदन बजलाह जे बड्ड निक मिता जाउ जिब लिय अपन जिनगी….क लिय मजा । ऐ पर रूपेश बाजल छल जे एहेन कोन बडका नौकडी लागल छैन, से हमरा लेखे त ऐ मे ज्वाईन केने कैरियर ग्रोथ पर ब्रेक लागि जेतैन । दीपक संग दैत बजलाह जे हमरो येह चिन्ता अछि। उत्तर में नंदन फ़ेर बजलाह जे "यौ भाई ई कियेक नै बुझै छि जे कतबो अछि त अछि त ई सरकारिए नौकडी की ने । ऐ मे सेलरी से बेसी उपरी कमाई देखल जाई अछि। आब देखियौ ने आशीष भाई के छैन त क्लर्के के नौकडी ने यौ मुदा हुनका हमरा- अहां से बेसी तिलक भेटलैन अछि से किछु देखिए के भेटलैन अछि कि ने! औ दीपक मीता अहौक जैम क तिलक भेंटत, ज्वाई करू मास्टरी ।"
"हमरा तिलक-दहेज के कोनो लोभ नै अछि मुदा आशीष एहन कोन कमाई करै छथि बैंक में !" – दीपक बजलाह।

ऐ पर आशीष दार्शनिक के मुद्रा मे बजलाह जे बैंक लोक सभ के बकरी कीनय से ल के बकरी फ़ार्म खोलय तक के आ इंजिनियरिंग में नां लिखबय से ल के इंजिनियरिंग कालेज खोलय तक के लेल लोन दैत अछि। आ ऐ सभ प्रकारऽक लोन में बैंक अधिकारी-कर्मचारी सभ के ’कट’ फ़िक्स रहै अछि। अहिना अहौं के टिप दऽ दैत छी जे स्कूल में मिड डे मीळ से ल के भवन के रख-रखाव आ साईकिल वितरण से ल के स्कोलर्शिप वितरण तक में ’कट’ के जोगार रहै अछि आ बेसी हाथ-पर मारी त वोटर कार्ड से ल के राशन कार्ड आ स्वच्छ भारत से ल के इंदिरा आवास तक में ’कट’ भेटय के गुंजाइस रहै अछि। आ मास्टरी संग त अहां साईड बिजनेसो क सकै छी। एलआईसी एजेंट बनि जाउ, या लोन एजेंट या कोनो आन धंधा क लिय। बीच-बीच में स्कूल जाय हाजरी बना लिय आ हावा-पाईन लय आबु।

इ सब सुनि क दीपक व्यथित भाव स बजलाह जे हम ऐ प्रोफ़ेशन में इ सब गोरख-धंधा करय लेल नै जाय चाहै छी । हमर उद्देश्य अछि अपन क्षेत्र क बच्चा सब के नीक शिक्षा भेटै तय में हमर योगदान हो। तैं हम बस अपन आर्थिक भविष्य आ करियर ग्रोथ ल क आशंकित छी।

"तखन अहां बूडि छी" एहि बेर नंदन टोकलक । यौ भाय लोक एकटा काज छोडि क दोसर धरै अछि अपन प्रगति के लेल दू टा पाई बेसी कामाबी ताहि लेल आ कि अनेरहे ………
बीच में बात कटैत दीपक द्रिढता से बजलाह जे नंदन भाय, अहां जे व्हट्सएप से लय के फ़ेसबुक तक पर भरि दिन राष्ट्रभक्ति के राग अलापैत रहै छी से खाली अनका ज्ञान ठेलय लेल आ कि किछु अपनो अमल में लाबय लेल आ कि बस अपन कुंठा मिटब के लेल!
नंदन के समर्थन करैत रूपेश बजलाह जे दीपक भाय अहां अनेरे भावुक भ रहल छी। वास्तव में ई देशभक्ति, राष्ट्रवाद, ईमानदारी आदि शब्द नेता सभ के गरियाब लेल, कि समर्थन लेल आ कि अपन कुंठा मेटाब लेल, हवाबाजी लेल, दोसरा के परतार लेल प्रयुक्त होई अछि, मुदा वास्तविकता के धरातल पर अहां कोना क के अर्थ (धन) कमाबी यैह सबसं पैघ सोच होय अछि। अहांके समाज में इज्जत ऐ ल के नै भेंटत जे अहां कतेक शुद्ध आ समाजवादी आचरण रखै छी बल्कि ऐ से भेंटत जे अहां धन संचय करय में कतेक काबिल छी (चाहे ओकरा लेल जे तरीका अपनाबी)। आ देखु अहौं जे दुविधा में छी ओकर कारण करियर ग्रोथे त अछि ।

ऐ घमर्थन के बीच दीपक के मोन के दुविधा मेटा गेल छल ओ उत्तर दैत बजलाह "भ सकै अछि जे लोक हमरा बताहे क के बुझि लैथ मुदा आब हम इ नौकडी ज्वाईन करब आ ओहि उद्देश्य लेल करब जे हमर मोन में अछि। रहल बात अर्थोपार्जन के त किछु आर तरीका सेहो अपनायब जेना विद्यालय के बाद के समय में ट्युशन, छोट-मोट सोफ़्टवेयर/वेबसाईट/प्रोजेक्ट/डाटा-एन्ट्री वर्क आदि के कार्य करय के प्रयत्न सेहो रहत। जौं भगवति कऽ आशिर्वाद बनल रहलै त जिनगी ठीके-ठाक कटि जेतै ।"

दीपक के पोस्टिंग अपने जिला के एकटा आन प्रखंड के एकटा माध्यमिक विद्यालय में भ गेल छल ।  दीपक ओतबे उत्साह आ आशा के संग विद्यालय ज्वाईन केलाह जतेक उत्साह आ आशा सं कोनो सासु अपन नबकी कनिया के दुरागमन काल में परिछण करै छथि। मुदा किछुए दिन में दीपक के विद्यालय में पसरल अव्यवस्था के भान भ गेल। विद्यालय में अनुपस्थिति के मामिला में मास्टर आ विद्यार्थी में जेना कोनो अघोषित शर्त लागल होय! माने पचास प्रतिशत सं बेसी नै मास्टर के उपस्थिति रहै आ नै विद्यार्थी के । विद्यालय भवन के हाल सेहो तेहने सन भेल छल जेना कोनो स्त्री के, जिनकर वर बहुत दिन से बाहर कमाय लेल गेल होइथ आ सासुर में केयौ मानऽ बला नै होइन । शौचालय के नाम पर २ टा शौचालय टूटल-फ़ाटल गन्हाइत जैमे नाक नै देल जा सकै अछि आ दू टा मास्टर सब लेल कनि ठीक-ठाक अवस्था में जै में ताला मारल रहै छल । कियेकि आधा मास्टर सदिखन अनुपस्थिते रहै छलाह तैं किछु क्लास या त खालिए रहै छल अथवा दू टा तीन टा क्लास के एक्के संगे बैसा देल जाय छल । ई अव्यवस्था देख दीपक के मोन खिसिया गेलैन। ओ एकरा विषय में बिईओ साहेब के विस्तार पूर्वक लिखलाह आ हुनका से ऐ विषय में उचित कार्यवाही कर के निवेदन केलथिन्ह। किछु दिन बाद बिईओ साहब एलाह आ विद्यालय के निरिक्षण केलखिन। पूरा काल हेडमास्टर, किरानी आ लगुआ-भगुआ मास्टर सब हुनका घेरने रहलैन आ विद्यालय के अव्यवस्था के झांप के पूर्ण प्रयास केलाह ।

आब दीपक उम्मीद करै छलाह जे प्रखंड से किछु कार्यवाही हैतैक। मुदा एहन त किछु नै भेल परंच एक दिन मुखिया आ सरपंच पहुंचलाह स्कूल पर। पंहुचैत देरी दीपक के पुछारि भेलैन। दीपक आबि क हुनका सब के प्रणाम-पाती केलखिन्ह। मुदा प्रणाम के उत्तर देने बिना हुनका पर प्रश्न दागल गेल जे यौ दीपक बाबू! अहां एतय नौकडी करय लेल एलहु अछि कि राजनीति करै लेल? जं राजनीति करै के अछि त खुलि क बाजू आ नै त एम्हर-आम्हर के बात सब नै कैल करू । चुपचाप विद्यालय में आउ, समय बिताबु आ आराम से दरमाहा लेल करू बस।
"आ जौं दरमाहा कम बुझना जाय त टोली बना के सरकार के आगा धरना-प्रदर्शन करू" किरानी बाबू बीच में बात लोकैत व्यंगात्मक लहजा में बजलाह ।
दीपक उत्तर में कुछु नहीं बजलाह। हुनकर मोन बड्ड कुंठित आ व्यथित भ गेल छल ।

दीपक के मलिन मु̐ह देख के एक दिन मंडल सर पुछलखिन जे हौ दीपक, एना कियेक मोन मलिन केने छहक? सिनेहऽक छा̐ह भेटने दीपक के मोन द्रवित भ गेल। ओ बजलाह जे सर, हम अपन करियर आ महानगरऽक जीनगी छोडि क इ नौकडी पकड়ने छलहु̐ ई सोचि क जे अप्पन गाम-घर के धिया पुता सब के निक शिक्षा देबय में अपन योगदान करब। मुदा एत ओकरा लेल जे माहौल भेंट के चाहि से त अछिए नै, उल्टे धमकी भेटै अछि।

ऐ पर मंडल सर बजलाह "हौ कि करबह, इ समाजे एहने अछि। ई हेडमास्टर, किरानी, मुखिया, चपरासी, इ सभ एहि समाज के छैथ कि ने हो, कोनो लंदन से त आयल नै छैथ! तोरा कि लगै छ: जे इ जतेक गोरख-धंधा होय अछि से कि मुखिया-सरपंच के बुझल नै रहै छै। हौ, ऐ सब में ओकर सब के हिस्सा राखल रहै छै।"

मुदा सर ऐ विद्यालय में बच्चा त ग्रामीणे के ने पढै अछि, तखन लोक सब एहन चोर मुखिया-सरपंच के कियेक चुनै छथि! "हौ ई एकटा जटिल सिस्टम चक्र अछि जै में सबहक भागिदारी के तीली देखबह।" मंडल सर प्रतिउत्तर में बजलाह। "देख, ऐ विद्यालय में समाज के किछु एहनो सक्षम वर्ग के बुतरू सब के नामांकन भेल अछि जिनकर बुतरू सब वास्तव में कोनो पब्लिक स्कूल में पढि रहल अछि। मुदा सरकारी योजना के लाभ लेब हेतु ओ सब नामांकन एतहु करौने छथि। विद्यालय प्रशासन से हुनका ई लाभ भेटै छैन जे बिना विद्यालय एनहि हुनकर सब के हाजरी बनि जाय अछि आ सरकारी योजना सब के लाभ भेट जाय अछि। ताहि एवज में ओ सभ एहन चोर मुखिया-सरपंच के चुनै छथि। "

"मुदा एना करै के बजाय यदि ओ सक्षम लोक सब एत्तहि निक पढाई के लेल जे दवाब बनेथिन त कदाचित एत्तहु निक पढाई भेंट सकै छैन जै से ओ सभ पब्लिक स्कूल के महरग फ़ीस के चक्कर से सेहो बा̐चि सकै छैथ!" दीपक बजलाह।

मंडल सर एकटा गहिर सा̐स छोडैत बजलाह "ह̐। मुदा ऐ मे हुनका सब के एकटा भांगट ई बुझना जाय छैन जे फ़ंडऽक कमी स̐ सरकारी विद्यालय में ओ इंफ़्रास्ट्रक्चर आ सुविधा नै अछि जेकर दरकार अछि आ दोसर जे कदाचित इ मनोविचारधारा सेहो काज करै अछि जे तखन त हुनकर बच्चा संगे आनो (आर्थिक अक्षम) लोक सब के बच्चा सब सेहो आगु बढि जायत जे कदाचित इ वर्ग के पसंद नै छैन ।"

मुदा एहनो लोक सब के त समाज में कमी नै जिनका सब के सरकारी विद्यालय में निक शिक्षा भेंटय से लाभ होउ। से सब किये नै एहन मुखिया-सरपंच सब के विरोध करै छैथ? – दीपक पुछलाह।
"नाना प्रकार के दबाव, जागरूकता के कमी, रोटी-पानि में ओझरायल रहै के कारणे आ भ्रामक प्रचारतंत्र एकर कारण अछि" – मंडल सर बजलाह ।

ऐ प्रकारे किछुए मास में दीपक के ओय कुचक्रव्युह के जानकारी भ गेलैन जै में शिक्षा व्यवस्था(सिस्टम) ओझरायल छल । मुदा ऐ चक्रव्युह के तोडी कोना से कोनो मार्ग नै भेंटय छल।  कोनो आर सक्षम लोक के सहायता के उम्मिदो लगेता त मार्ग रोकय लेल कैएक टा जयद्रथ ठाढ भेल छल। छुट्टी में जखन ओ गाम गेलाह त अपन मोनऽक व्यथा बाबा के सुनेलखिन्ह। बाबा कहलखिन्ह जे बौआ जखन उखैर मे मु̐ह दैये देलह त मु̐सर स̐ किये घबराय छह। तों त बस अपन कर्तव्य करह, बा̐कि विधाता पर छोडि় दहक। मोन लगाक धिया-पुता के पढाबह लिखाबह। एहन त नै अछि जे तों किछु अजगुत देख रहल छह। हमरा पीढि स̐ ल के तोरा पीढि तक लोक सीमिते साधन में ने पढलक अछि हौ।

दीपक के बाबा के बात ज̐चि गेल । बस फ़ेर की ओ एम्हर-आम्हर के कुव्यवस्था के देखनाय छोडि क बच्चा सब के पढबै पर ध्यान देबय लगलाह। एक्स्ट्रा क्लास सेहो लेबय लगलाह। जल्दिए ओ छात्र सब आ किछु गार्जियन के बीच लोकप्रिय भ गेलाह। एम्हर ओ १५ अगस्त के अवसर पर छात्र सब के बीच छोट-मोट प्रतियोगिता के आयोजन के योजना बना रहल छलाह आ ओम्हर करमनेढ स्टाफ़ सब में खुसुर-फ़ुसुर चालु भ गेल छल। फ़ेर एकदिन दीपक जखन अपन योजना ल के हेडमास्टर लग पहु̐चलाह त हेडमास्टर बात कटैत बजलिह जे पहिने  इ कहु जे कि अहां विद्यालय के बाद ट्यूशन करै छी? जी ह̐।-दीपक उत्तर में बजलाह। त की अहांक नियमावली नै बुझल अछि?-हेडमास्ट्र बजलिह। 
जी बुझल अछि मुदा हम ई विद्यालय समय के बाद करै छी आ ऐ से विद्यालय में हमर शिक्षण पर कोनो प्रभाव नै पडैअछि, विद्यालय में सबस̐ बेसी क्लास हम लै छी ई विद्यालय के बच्चा-बचा जनै अछि। आ आन आन शिक्षक सभ त नै जानि कतेक तरहक व्यवसाय करै छैथ आ ओहो विद्यालय के समय में, आधा टाईम गैबे रहै छैथ। - दीपक आवेश में एक्कै सुर में बाजि गेलैथ।
"अहा̐ बेसी काबिल बनै छि की? लोक की करै अछि से देखनाहर अहां के? अप्पन काज करू, हमरा की करय के चाही से जुनि बताउ। बेसी उड়ब त लिखित में ग्यापन पकडा় देल जायत अहां के ।" – हेडमास्टर साहिबा झिड়की दैत बजलिह। 

दीपक उखरल मोन सं ओतय से घुरलाह।  हुनका हेडमास्टरो के गोरखधंधा बुझल छल। ओकर वर ठेकेदार अछि, आ विद्यालय के अधिकांश कार्य/आपूर्ति के ठेका ओकरे भेंटै अछि। मुखिया-नेता सब से सेहो संबंध। आ जे लोक समाजऽक लेल किछु काज करय चाहै अछि तेकरा ज्ञान देबय चललिह अछि!

अगिला दिन किरानी हिनका हाथ में एकटा आर्डर थम्हा देलैन जेकर अनुसार हिनका प्रखंड के कोनो योजना के कार्यान्वयन के लेल सर्वेक्षण के कार्य में लगा देल गेल छल। मतलब जे हिनका विद्यालय में छात्र के पढाबै के कार्य से हटाब के नया षडयंत्र रचि देल गेल छल। दीपक हाथ में आर्डर नेने ई नव-संघर्ष के विषय में सोचय लगलाह।


आब त इ समये बता सकै अछि जे दीपक व्यवस्था(सिस्टम) के ऐ चक्रफ़ा̐स स̐ बचि क निकैल पाबै छैथ की नै? 

Tuesday 18 July 2017

जन प्रतिनिधि


 
कहबै छि हम जनप्रतिनिधि
मुदा भेंटब नै हम कोनो विधि
मचल रहौ जनता में हाहाकार
रहै छि तैयो हम निर्विकार। 

किये सोची कोना जीबैत निर्धन
निमग्न छि बढाब में अप्पन धन
नै मतलब कतय भेल अन्याय
बस अप्पन पैर में नै फाटै बेमाय। 

सगर गाँव रहौ अन्हरिया में
बनल रहि हम बस ‘पावर हाउस’
छात्र सब भने होएत रहै फेल
किएक लेबै हम ककरो टेर?
 
ठप्प रहै रेल क यातायात
कहु ई भेल कोन बड़का बात!
लड़ै छि बड़का जुबानी जंग
बजबै छि ट्वीटर पर झाइल मृदंग। 

भेटै अछि जौं आलोचक लोक
झट द करै छि हुनका ब्लॉक
आयल कत्तेक सुन्नर बरसात
कवि लिखू अहूँ किछु रसगर बात। 

शहर तब्दील भेल नाला में
व्यस्त छि हम घोटाला में
शिक्षा-स्वास्थ्य बनि गेल अछि व्यापार
युवा भ रहल अछि बेरोजगार
मुदा हम मगन ई आशा में
विधाता करताह बेड़ा पार। 

शुरू करब सभटा अप्पन खेल
जखन आयत वोट लेबा के बेर
नै छोड़ने छि कोनो विकल्प
चुनत सब हमरे बेरम बेर।।

Saturday 17 June 2017

राजा खानदान (मैथिली कथा)

बात २००८ ईसवी के अछि। एक बेर हम अपन पिसियौत भैया-भौजी संगे दरिभंगा घुमय के योजना बनेलौं। भोरगरे उठि क नहा-सोना कऽ तीनु गोटे टेंपू से दरिभंगा के लेल बिदा भ गेलहुं। ओतय पहुंचि क सर्वप्रथम श्यामा माई के दर्शन केलहुं । श्रद्धालु हमर आ गृहणी भौजी के मोन दर्शन में भाव विभोर भ रहल छल, मुदा कामरेड भैया के ओहि दर्शन में दार्शनिक तेज प्रज्वलित भ गेल छलैन। ओतय से निकलला पर बाट में ओ बजलाह जे ईह, ऐ मंदिर प्रांगण के वातावरण बड्ड पवित्र अछि मुदा बुजह जे इहो जे छह से सामंतवादऽक प्रतीक छह। हम पुछलियैन जे से कोना यौ भायजी?
भायजी बजलाह जे देखह ई मंदिर जे अछि से महराज रामेश्वर सिंहऽक चिता पर बनायल गेल अछि। “हमर चितो पर लोक पूजा अर्चना करय” ई सामंती सोच नै अछि त की अछि?

हम बजलहुं जे ईह! अहुं भायजी कहां के लिक कहां भिडा दैत छी। ऐ पर भायजी बजलाह हौ हम ठीके कहैत छियह। एतबे में भौजी प्रांगण के सभटा छोट-नमहर मंदिर, गाछ-वृक्ष आदि के पूजा क के आबि गेलिह आ बजलिह जे आब चलै चलू आगा। हमरा श्यामा माई के प्रसाद ’लड्डू’ बड्ड पसिन्द छल हम बजलहुं जे भौजी प्रसाद त द दिय ने। तै पर ओ बजलिह जे एह एतेक दूर सपैर कऽ एलहुं अछि त सभटा मंदीर में पूजा-पाठ केला के बादे खायब। ऐ पर हम की बजितहुं जे आधाटा लड्डू त हम पंडितजी से मांगि क पहिनेहे खा नेने छी! चुपे रहय में भलाई बुझलहुं आ सभ गोटे आगा बढि गेलहुं । आगा मनोकामना मंदिर में पूजा करैत, लक्ष्मिश्वर निवास(संस्कृत विश्वविद्यालय), नरगौना पैलेस, मिथिला विश्वविद्यालय के कैंपस घुमैत, फ़ोटो खिंचबैत दरभंगा महराजऽक किला पहुंचलहुं जहां से आगा बढैत कंकाली मंदिर प्रांगण में जा पहुंचलहुं ।

ओतय श्यामा माई मंदिर प्रांगण सन चहल पहल नै छल, मुदा वातावरण ओतुको दिव्य बुझना गेल छल। एकटा छोट-छिन दोकान पर दू टा छैंडा प्रसाद बेच रहल छल । प्रसाद किनला के बाद मंदिर में ढुकलहुं त देखल जे मंदिर में त केयौ अछिए नै। तखने हमर नजैर एकटा पुरूष पर पडल, जिनकर उमैर गोटैक पचपन बरख हेतैन । गंजी-धोती पहिरने, माथ पर चानन ठोप, गौर वर्ण पर आर शोभा बढा रहल छलैन। गंजी-धोती कतौ-कतौ खोंचायल सन छल मुदा उज्जर बग-बग छल। हम पुछलियैन जे की यौ महराज अहिं पंडित जी छी ? ओ बजलाह जे छी त हमहुं पंडिते मुदा ऐ मंदिर के पुजारी नै छी । हम अपस्यांत हौइत बजलहुं जे की भ गेलै त। छी त अहां पंडिते ने से कनि हमरा सब के प्रसाद चढाब के अछि से अहां चढा ने दियौ।

ऐ पर ओ बजलाह जे बौआ चढा त हमहुं सकै छी मुदा “ककरो हक नै मारबाऽक चाही”। हमहुं राजे खानदान के छी, ऐ मंदिर के सेवा करैत एलहुं अछि। अहां सब पांच मिनट बैसै जाउ पुजारी जी आबि जेताह ।

बैसे के त पड.बे करितै, हम सब बैसियो गेलहुं, मुदा आसू भायजी त विशुद्ध पंचोभिया ब्राम्हण छलाह, गोटगर टीक-ठोप बला। ओ ओय ब्राम्हणदेव से शास्त्रार्थऽक मुद्रा में बजलाह जे औ जी अहां कोन राजा खानदानऽक छी । औइनवारि वंश के छि आ की खंडवाला वंश के छी। ओ बजलाह जे हम राजा महेश ठाकुरऽक वंशज छी। मुदा आसू भायजी एतबे से कहां मानय बला छलाह। ओ यक्ष जेना सवाल पर सवाल करैत गेलाह आ ओ ब्राम्हणदेव युधिष्ठिर जेना सभटा सवालऽक यथोचित जवाब दैत गेलाह। ऐ तरहे लगभग आधा-पौन घंटा बीत गेल छल। अंततोगत्वा आसू भायजी हुनका से बजलाह जे अच्छा चलू राजा महेश ठाकुरऽक खानदान के वंशावली बताउ त। ओ पंडितजी, रटाओल सुग्गा जेना धुरझार बाजय लगलाह राजा महेश ठाकुर, राजा गोपाल ठाकुर, राजा परमानंद ठाकुर, राजा सुभंकर ठाकुर, राजा पुरषोत्तम ठाकुर, नारायण ठाकुर, सुन्दर ठाकुर, महिनाथ ठाकुर, निरपत ठाकुर, रघु सिंह, बिष्णु सिंह, नरेन्द्र सिंह, प्रताप सिंह, माधो सिंह, छत्र सिंह बहादुर, रुद्र सिंह बहादुर, महेश्वर सिंह बहादुर, लक्षमेश्वर सिंह बहादुर, रामेश्वर सिंह, कामेश्वर सिंह................एक स्वरे ई नाम-पाठ सुनि क हमरा नजैर के सामने ओ वंशव×क्षऽक चित्र नाचै लागल जे हम दरिभंगा के म्युजियम में एकबेर देखने रहि।

ऐ उत्तर के सुनला के बाद आसू भायजी ठीक ओहिना आस्वस्त भेलाह जेना अर्जुन के द्वारा अपन दसो टा नाम बतौला पर ’उत्तर’ विश्वस्त भेल छलाह जे किन्नर वेशधारी हुनकर सारथी आन केयौ ने ’अर्जुने’ थिकाह।

एही बीच में घंटी डोलबैत संठी सन कायाबला पुजारीजी सेहो आबि गेल छलाह। हम सब भगवती के दर्शन केलहुं, भौजी पूजा केलिह आ पुजारीजी प्रसाद चढौलाह, दान-दक्षिणा दैत हम सब ओत से विदा भेलहुं आ कि पाछां से ओ ब्रामणश्रेष्ठ टोकलाह जे “हे बाउ, हमरो किछु देने जाउ, दू दिन से हम भोजन नै केलहुं अछि”।



ऐ पर हम कनि विस्मयित भेल छलहुं। ता भौजी प्रसाद बला डिब्बा से ४ टा लड्डू निकालि क हुनका हाथ में थम्हा देलखिन आ हमहु अपन पर्स से एकटा दसटकिया निकालि कऽ हुनका हाथ के थम्हा देलियैन। ऐ के बाद ओ हमरा सब के खूब रास आशीर्वाद दैत विदा केलाह। ओतय से विदा होइत हमरा मोन मे दू टा बात गूंज लागल छल – “हमहु राजे खानदान के छी”, “ककरो हक नै मार्ऽ के चाही” ।

Wednesday 17 May 2017

सुखैत पोखैर प्यासल गाम!

एहि बेर गाम में एकटा भातिजऽक उपनेन छल आ आफ़िस में सेहो ३-४ टा छुट्टी लगातार भेट रहल छल । बस फ़ेर की एकबैगे गाम जेबा क प्लान बनि गेल । प्लानो तेहन जे जूर-शीतल दिन सांझ तक गाम पहुंचितौं। मगध एक्स्प्रेस अपन आद्त अनुसार चारि घंटा बिलंब सं पटना पहुंचेलक । आब ओत से बरौनी के ट्रेन पकरबाक छल । गर्मी के दिन में सूर्यास्त किछ बिलंबे स होइ अछि, स्वाइत राजेन्द्र पूल पर जखन लगभग साढे छ: बजे पहुंचल छलहुं त सूर्यास्त क मनोरम दृश्य  दृष्टिगोचर भेल छल। ओई मनोरम छटा मे ३-४ टा छौंरा सब गंगा जी के बीच धार में चुभैक रह्ल छल। ई दृश्य देखय बला छल। मुदा इ कि! अचानक से ध्यान गेल जे गंगाजी त सूखि के आधा भ गेलिह आ पाईन क धार केवल पांजर धरि में बचल छल । आब ई स्थिति भयावह बुझना गेल। त एकर की मतलब जे सुखार अपनो गाम-घर दिस दस्तक द देने अछि ! जखन गाम पहुंचलौं त जूर-शीतलऽक कोनो नामो-निशान नै देखना गेल। यद्यपि गाम हम अन्हार भेला के बादे पहुंचल छलहुं ।

अगिला दिन भोरे भोर गाम दिस बिदा भेलहुं, बाट में भेंटनाहर लोक सब सं दुआ-सलामी लैत नदी कात पहुंचलहुं । मुदा देखै छी त ई की; नदी त अछिए नै! गामक बलान नदी सुखि क पीच रोड बनल अछि आ साइकिल, मोटरसाईकिल सभ ओई बाटे सरसरायल ऐ पार से ओइ पार भ रहल अछि। ध्यान गेल जे गामऽक मुखिया (जेकर जनेर-धैंचा के फ़सल नदी कात में लहलहायत छल) के अतिक्रमणक सीमा आउर अधिक बढि गेल अछि आ जत हरदम नदी के धार रहै छल तत्तौ मुखिया के फ़सल लागल छल। ओना फ़सलऽक हालत सेहो पिलपिल सन भेल छल । गाम सं नदी बिला जेनाइ मने कि जे मानु जेना कोनो सौभाग्यवती के सिहुंथ से सेनूर पोछि देनाई भेल!

मानै छी जे हम बेसी दिन गाम नै रहलहुं अछि, मुदा जतबे दिन रहलहुं अछि, ई नदी से एकटा लगाव रहल अछि। बाल्यावस्था में नदी नहाय के अपन उत्साह होय छ्ल, मां के मनो केला पर कहां मानै छलियै। आ गर्मी महिना में त बुझू जे जखने मोन होय तखने चैल दिय नहाय लेल, कोनो अंगा-गंजी लेबा के काजे नै, बस ककरो सं गमछा मांगू आ कूदि जाउ। जा कनि काल नदि में चुभकि ततबे काल में नदि कात के भांईटऽक गाछ पर पसरल गंजी-जंघिया सभ सुखि जाय छल । हं ई बात के अफ़सोस रहत जे हम हेलनाई नै सीख पेलहुं। यद्यपि गामक भैयारी सब थोरे-बहुत सीखेने छल मुदा कालांतर में सेहो बिसरि गेलहुं। ओना गाम-घर में धिया-पुता के दुपहर काल में नदी कात जाय लेल मना करल जाय छल, जै के लेल भूत सं ल के पंडूब्बी तक के डर देखायल जाय छल। नदी किनार में ओना माछ आ डोका पकरय के सेहो अनुभव रहल अछि। ऐ मामला में मीता भाईजी बड्ड तेज छलाह। बुझु से बंसी आ बोर के असल खेलाडी वैह छलाह आ हम सभ त स्टेपनी टाइप में संग लागल रहै छलहुं ।

खैर छोडू, हमहुं कहां पहुंच गेलहुं। हलुमान चौक पर पहुंचलहु त देखै छी जे छौंरा सभ के चौकडी जमल अछि। मीता भायजी सेहो छलाह। हम कहलियैन जे यौ मीता भायजी इ त जुलुम भ गेल। ओ सशंकित होइत बजलाह – जे से की? की भ गेलय? हम प्रतिउत्तर में बजलहुं जे "महराज गामऽक नदी बिला गेल आ अहां पुछै छी जे की भेल!" मुदा हुनकर रिस्पांस बड्ड सर्द छल। ओ बजलाह जे ई सब भगवानऽक माया अछि। देश-दुनिया में पाप बढि रहल अछि, तेकर दुष्परिणाम त एहने ने हेतै हौ। हम बजलहुं जे भायजी, तैयो गमैया के त अपन कर्तव्य करबाक चाही ने नदी के बचाब के लेल। सालों-साल नदी के तह गाद से भरि क उपर भेल जाय अछि, तै पर से नदी तट पर मुखिया के अतिक्रमण बढल जाय अछि। आई नदी सुईख गेल, सोचु जे ऐ संगे कतेको जलिय जीव सभ के त समूले नष्ट भ गेल हैत। क्षेत्रऽक जमीन में पानिऽक लेवल भी नीच्चां खसि परल हैतैक…हं, से त सत्ते. पहिने पचासे फ़ीट पर कल गडा जाय छल मुदा आब सै फ़ीट से कम में कहां नीक पाईन अबै छै – बीच में बात कटैत कनकिरबा बाजल । हम बात के आगा बढबैत बजलहुं जे देखु ई नदी में लोक सब नहाइ जाय छल माल-जाल के नहब आ पाईन पियाब लेल नदी ल जाय छल, मौगमेहर सब कपडा-लत्ता सभ टा त नदिये मे करै जाय छल ने यौ। त जै नदी सं एतेक उपकार भेटै अछि ओकरा लेल किछ त चिंतित होयबाक चाहि ने। एना जे नदी के भूमि के अतिक्रमण होयत रहतै, त निश्चिते ने नदी बिला जायत।

औ जी अहां शहर से आयल छि, ऐश-मौज में रहै छी तैं इ आदर्शवादी गप्प सब फ़ुरा रहल अछि। दिल्ली से ऐनिहार सब के एहिना गोल-गोल गप्प फ़ुराईत रहै छै। – ऐ बेर बीच में बात काटैत बंठाबबाजी बाजल ।

हम कनि व्यथित होयत कहलहुं जे हं शायद अहां ठीके कहै छि, हम पतित भेलहुं जे गामऽक चिन्ता केलहुं । ई गाम त जेना हमर अछिए नै। आ अहां कि जनै छि शहरऽक जिनगी के विषय में । पाईनऽक किल्लत आ ओकर मोल की होई अछि ई कोनो दिल्ली-बंबई बला से बढिया के बुझि सकै अछि! कालोनी सब में पाईन के लऽ कऽ झगडा-झंझट त डेली के खिस्सा रहै अछि, बात त मरै-मारय तक पहुंच जाय अछि। बडका कोठी आ फ़्लैट में रहऽ बला लोक सभ के सेहो सभ सुविधा त भेटै अछि मुदा पाईन हुनको नापि-जोखि क भेटै अछि आ ओकर बड्ड मोल चुकबय परै अछि। जे स्थिति अखन हम-गाम गमय दिस देख रहल छि, जौं लोक नै चेतल त भविष्य में एतुको स्थिति वैह  होबय वाला अछि।

खैर किछ काल गप्प-सरक्का मारलाक बाद हम गाम पर पहुंचलहुं आ नहाय के लेल बौआजी ईनार दिस बिदा होबैये बला छलहुं कि मां टोकलक जे कले पर नहा ले, बौआजी ईनारऽक पाईन कदुआह भ गेल छै। ओह! एकटा आउर अफ़सोचऽक गप्प। जहिया से हमर नदी नहेनाय छुटल छल गाम में हम बौआजीए ईनार पर नहाइत एलहुं अछि। बड्ड पवित्र आ शीतल पाईन होय छल ओहि ईनार के। गर्मी के  दूबज्जी दुपहरियो में एकदम शीतल पाईन। हमरा याद अछि जे बचपन में देखै छलहुं जे जूरशीतल दिन गौआं लोक सभ एकट्ठा भ के एहि ईनारऽक सफ़ाई करै छल, ढेकुल कसाई छल, नब रस्सी बान्हल जाय छल। रामनन्दन पंडितजी यजमानी में भेंटल एकटा नबका डोल बान्है छलाह। माने बच्चो सभ के लेल ई उत्सव के माहौल होय छल । मुदा आब…..!

गामऽक दोकान में आब कोल्ड-ड्रिंक संगे मिनरल वाटरऽक बोतल सेहो बिकाय लागल छल। किछु सम̨द्ध लोक के घर में २० लिटरा आरो-पाईनऽक बोतल सेहो किनाय लागल छल।

भोज-भात में अक्सरहां कोनो छोट बच्चा जेकरा परसऽ के शौक होई अछि मुदा ओकरा लुरिगर नै बुझल जाय अछि के पाईन परसय लेल द देल जाय अछि। कुम्हरम के भोज काल में गुरकेलवा पाईन परसै छल। हम टोन दैत बजलहुं – कि रे गुरकेलवा! तों पाईने परसै छैं । ओ बाजल- ईह भायजी ! सबसं महरग चीज त हमही परसै छी।
- से कोना रौ? हम पुछलियै
ओ बाजल जे भाईजी, भोजन त कतौ भेट जायत मुदा ई गर्मी में सभसं सोंहतगर चीज त ठंढा पाईने लगै छै यौ। गामऽक आधा कल त सुखा गेल अछि आ ईनार-नदी सब के हाल त अहां देखनेहे हेबै। तखन अहिं कहु जे हम की गलत बजलहुं?
एतनी गो गुरकेलवा एकटा गंभीर बात के बड्ड विनोदी भाव में बाजि गेल छल ।

पता लागल छल जे गामक चौधरी सरकार से सस्ता लोन ल के एकटा पोखैर खुनेला हन । हमरा प्रसन्नता भेल जे चलु नीके अछि जे एकटा पोखैर भेने किछ त राहत अछि आ ताजा माछ खाय लेल सेहो भेट जायत । मुदा मां से जखन चर्चा केलहुं त ओ बाजल जे एंह । ओ पोखैर में किछु अछियो! ओ त बहु पंचायत सदस्यऽक चुनाव जितलैन त जोगार से लोन पास करा लेलाह। बैंक के देखाब लेल खाईध खुना के मांईट सेहो बेच लेलाह आ लोनऽक पाई सूईद पर चढा क सूईद खा रहल छैथ। हम कहलहुं देखु त धंधा। सोझ रस्ता पर चलि क कियौ पाई कमाइये नै चाहै अछि, जै से लोक संगे समाजऽक सेहो भला होय।

बहिन एत गेलहुं त ओतौ वैह हाल देखय लेल भेंटल। कहियो ओकर गाम एहि बात लेल नामी छल जे ओई गाम में बहत्तर टा पोखैर। आगा-पाछां, एम्हर-ओम्हर जेम्हरे मुडी घुमाउ तेम्हरे छोट-पैघ पोखैर-डाबर देखाय परै छल। मुदा देखलौ जे ऐ बेर ओइ में स कतेको पोखैर-डाबर भैस गेल छल । बचलाहो में से बहुते रास जीर्ण अवस्था में छल। भाईजी(बहिन के भैंसुर) के बुझल छल जे हम माछऽक प्रेमी आदमी छी। जै बेर बहिन ओत जाय छलहुं, ओ कोनो ने कोनो पोखैर से माछ ल आबै छलाह । बेरूपहर जखन  भाईजी सकरी जाय लेल विदा भेलाह  हम पुछलियै जे भाईजी कतऽ जा रहल छी। बजलाह जे अबै छी सकरी से माछ नेने। हम बजलहुं जे किए गाम में ऐ बेर उपलब्ध नै अछि की? ओ बजलाह जे ओह! गामऽक पोखैर सब सुखल जा रहल अछि। आई-काइल्ह कतौ मछहर कहां भ रहल अछि। तैं ऐ बेर अहां के सकरीए के माछ खोआबै छी।

हमर एकटा मधुबनी के मित्र सं सूचना भेटल जे शहरऽक आस पास जे डाबर-पोखैर सभ छल जै में से कतेको में शहरऽक नाला सेहो बहै छल, ओकरा सभ के मुईन क ओय जगह पर मकान-दोकान सभ बनाओल जा रहल अछि। जै कारण भूजल स्तर में गिरावट के संगहि शहर में जलऽक निकासी के सेहो समस्या भ रहल अछि।

वापस घुरै काल ट्रैन में जखन एकटा महिला के पंद्रह टाका एमआरपी बला पाईनऽक बोतल के बीस टाका में बेचै बला भेंडर से ऐ बात के लेल जिरह करैत देखलहुं त इ बात सब एक-एक कय के मोन परै लागल। हम सोचै लगलहुं जे अपन देश में जे हजारो-हजार के संख्या में पोखैर-डाबर-दिग्घी सब छल या अछि से अचानक से त नै प्रकट भ गेल हेतै। एकर पाछां निश्चिते जौं बनबाब बला के इकाई छल हैत त बनाब बला सभ के दहाई छल हैत। आ ई ईकाई-दहाई सभ मिल क सैंकडा-हजार बैन गेल हेतै। पिछला किछु दस-बीस साल में विकासऽक नया पाठ पैढ गेल समाज ऐ इकाई, दहाई, सैंकडा, हजार के सोझे शून्य में पहुंचाब के काज कय रहल अछि। ऐ विरासत के सम्हार के चिंता नै समाज के भ रहल अछि आ नै सरकार के । आ जौं कतौ भऽओ रहल अछि त सरकार आ समाज में सामन्जस्ये नै बैस रहल अछि। हम इहो सोचय लगलहुं जे  जौं जिनगी में भगवती अवसर आ सामर्थ्य देलखिन त गाम में पांच कट्ठा जमीन कीन क ओतय एकटा पोखैर खुनायब आ ओहि में माछ पोसब। आब ट्रेनक गति संगे हम  यैह सभ योजनाऽक खाका खीच रहल छी।
 बस एतबे छल ई खिस्सा ।

Tuesday 11 April 2017

अरजल जमीन (मैथिली कथा )

"की भेल यौ, कोनो निदान भेटल कि नै?" लालकाकी लालकक्का के दुआरि पर कपार धऽ कऽ बैसल देख के बजलिह।

कहां कोनो बात बनल, ओ त  अडल अछि जे नै अहांक के त पाई देबैये पड़त नै त ई जमीन हम आन ककरो हाथे बेच देब आ अहां के बेदखल होबय पड़त।

आ पंच सब कि बाजल? 
पंच सभ की बाजत, कहै ये जे अहां लग पाई देबाक कोनो सबूत नै अछि , नै अहां के नाम सं जमीन लिखायल गेल अछि त इ बात कोना मानल जाय जे अहां ई पांच कट्ठा जमीन कीनने छि! बेस त किछ बीच के रस्ता निकालल जा सकै अछि । आब देखियौ जे काइल्ह कि फ़ैसला होई अछि।

बात इ छल जे करीब पच्चीस-तीस बरष पहिने लालकक्का अपन्न मेहनत आ श्रम के कमाई सं पांच कट्ठा घरारी के जमीन गामक जमीनदार ’सेठजी’ से कीनने छलाह । ओइ टाइम में जवान जुआन छलाह, कलकत्ता के एकटा मील में नौकरी करै छलाह, किछु पाई भेलैन त माय कहलखिन जे एकटा घरारी के जमीन कीन ले। बेस त किछु जमा कैल आ किछु ईपीएफ़ के पाई निकाईल के इ सेठजी से पांच कट्ठा घरारी के जमीन कीन नेने छलाह. मुदा भांगट एतबे रहि गेल छल जे ओ जमाना शुद्धा लोक सभ के जमाना छल, लिखा-परही, कागज-पत्तर गाम घर में कहां होई छल ओइ टाईम में ! बस मुंहक आश्वासन चलै छल । से लालकक्का के इ घरारी के दखल त भेंट गेल छल मुदा जमीन के रजिस्ट्री नै भेल छल। इ गप्प सब लालकाकी के बुझलो नै छल। के ओई जमाना में इ गप सब अपन नबकनियां के बतबै छल! बेस लालकक्का धीरे-धीरे ओय बंसबिट्टी के उपटेलाह, आ किछेक साल में एकटा छोट छिन पक्का के घर बना लेलाह. ओई टाईम में गाम में गोटैके घर पक्का के बनल छल, तखन लालकक्का के नाम सेहो बजै छल गाम में । बाद में जुआनी गेलैन आ काजो छुटलैन, आ ओ गाम धेलाह। गाम में कोनो बेसी खेत पथार त छलैन ने जे ओहि में लागल रहितैथ, तखन कोहुना समय कैटिये रहल छल ।ओना लालकक्का के इ व्यक्तिगत विचार छल जे लोक  के जीवन में तीन टा कर्म पूरा करबा के रहै अछि – घर बनेनाई, बेटी बियाह आ बेटा के अपन पैर पर ठारह रहै योग्य बनेनाई । से लाल कक्का इ तीनो काज सं निश्चिंत भ गेल छलाह आ कखनो गाम में त कखनो बेटा लग में जीवन बिताबय लगलाह। 

मुदा किछु दिन पहिने एकटा एहन बम फ़ूटल जै कारणे लालकक्का के अपन अरजल घरारी हाथ सं निकलैत बुझना गेलैन । जेना होमय लगलैन जे जीवन में किछु नै केलहुं। बात इ भेल छल जे अचानके से गाम में बात ई उठल  जे हिनकर घरारी के जमीन त हिनका नाम पर अछिए नै। सेठजी के मुईला उपरांत इ जमीन हुनकर बडका बेटा के नाम पर चढा देल गेल छल आ आई सेठजी के मुईला के कतेक बरष उपरांत जमीनदारजी इ जमीन ककरो आन के बेचय के बात कय रहल छलाह। लालकक्का के जखन ई खबर दलालबौआ द्वारा लगलैन ओ जमीनदारजी लग जाय कहलखिन जे औ जमीनदारजी! ई कि अन्याय करै छि। इ घरारी हम अहांक बाबूजी से किनने छलहुं चारि हजार कट्ठा के भाव से बीस हजार रूपया में से अहुं के बुझल अछि, अहां के सामने पैसा गिन के देने छलहुं। कतेको बरष से एहि घरारी पर घर बना के वास कय रहल छि, से ओय समय में त लीखा परही भेल नै छल, आब अहां करै चाहै छि त इ जमीन हमरा नामे लिखियौ। इ बात पर जमीनदारजी भौं चढा के बजलाह जे देखू अहां दूइए कट्टा के पाई देने रही आ बांकि के तीन कट्टा में एहिना बास क रहल छी, से जौं यदि अहां सभटा जमीन लिखबऽ चाहै छि त लाख रूपए कट्ठा के दर से तीन लाख टाका लागत आ नै जौं अहां लग पांच कट्ठा जमीन कीनय के कोनो सबूत अछि त से बताबु। एतेक घुड़की लालकक्का सन शुद्धा लोक के विचलित करय लेल बहुत छल । तथापि ओ हिम्मत कऽ के बजलाह जे यौ श्रीमान एना कोना अहां बाजि रहल छि अहांके सामनेहे हम अहां बाबू से ई जमीन कीनने छलहुं आ कतेको बरष सं एतय रहै छि, आई सं पहिने त अहां किछु नै बजलहुं । बीच में दलालबौआ बजलाह जे  कक्का अहां लग लेन-देन के कोनो सबूत कोनो कागज ऐछ कि? यदि नै अछि त फ़ेर त पंचैति करा क जे निर्णय होय अछि से स्वीकार करय परत अन्यथा अहां के ओइ जमीन से बेदखल होबय परत ।

काल्हि भेने पंचैति बैसल – पंचैति कि बुझु, दलालबौआ, जमीदारबाबू, आ दू-चारि टा लगुआ-भगुआ । पंचैति में जमीनदारबाबू तीन लाख टका के मांग रखलैथ, लालकक्का सेहो अपन पक्ष रखलैथ। अंतत: ई निर्णय भेल जे लाल कक्का या त दू कट्ठा जमीन जै पर घर बनल अछि से सोझा जमीनदारबाबू से लिखा लियैथ आ नै जौं पांचो कट्ठा के घरारी चाहिएन त डेढ लाख टाका (जमीनदारबाबू द्वारा प्रस्तावित मूल्य के आधा) जमीनदारबाबू के देबय परतैन ।

लालकक्का कहियो सपनो में नै सोचने छलाह जे हुनका संगे एहनो कपट भ सकै अछि । मुदा आब कोनो चारा नै रहि गेल छल । बेटा के जौं इ बात कहलखिन त ओकर रिस्पोंस ठंढा छल. पहिने त अफ़सोच केलक जे बाबूजी अहां आई धरि ई बात नै मां लग बजने छलहु नै हमरा सभ लग। फ़ेर कहलक जे दूइए कट्ठा लिखा ने लिय, घरारी ल के की करब, हमरो सभ के कियौ  गाम में नै रह दै चाहै अछि आ साल में किछुए दिन लेल त गाम जाय छी। मुदा लालकक्का के लेल ओ जमीन कोनो धिया-पुता से कम छल की ! अपन पसीना के कमाय से अरजल घरारी। ओ निर्णय केलाह जे डेढ लाख टाका दऽ के पांचो कट्ठा लिखबा लेब। लिखबाय सेहो पचास-साठि  हजार टाका लगिए जाएत। माने जे आब सवाल छल दू लाख टाका के जोगार के । किछु पाई एम्हर-आम्हर से कर्ज लेलैथ । बांकि के लेल बेटा के कहलखिन त ओ कहलक ठीक छै अहां ओकर अकाउंट नं० भेजु हम दस-पन्द्रहदिन मे कतौ से जोगार क के ट्रांसफ़र क दैत छि। लाल कक्का जखन जमीनदारबाबू लग अकाउंट नं० मांगय गेलाह त एकटा नबे ताल शुरू भ गेल । जमीनदारबाबू कहलाह जे पाई त अहांके सभटा नकदे देबय परत से अहां अपना अकाउंट पर मंगबा लिय आ हमरा बैंक से निकालि क दऽ देब।

लाल कक्का सभटा गप्प बेटा के कहलखिन। बेटा कहलक जे नै ई ठीक नै अछि, ओ कैश में पाई ल के ब्लैकमनी बनबै चाहै अछि से अहां मना क दियौ। आ ओनाहुं जौं आइ अहां से पाई ल लेत आ पहिनेहे जेना मुकैर जायत तखन की करबै? से अहां साफ़ कहि दियौ जे जौं पाई बैंक के मार्फ़त लेताह त ठीक नै त हम नकद नै देब।

लालकक्का के  इ बुरहारी में एहन उपद्रव भेल छल दिमाग अहिना सनकल छल, तै पर से अपन अरजल जमीन हाथ से निकलि जाय के डर। तहि लेल शायद हुनका बेटा के इ आदर्शवादी बात निक नै लागल छल। उल्टा-सीधा सोचय लगलाह । भेलैन जे छौंडा  कहिं टारि त नै रहल अछि।

फ़ेर ध्यान पड़लैन अपन एफ़डी दऽ। करीब डेढ लाख हेतै। बड्ड जतन सं जमा क के रखने छलाह। कोनो मनोरथ लेल। पता नै शायद पोता के उपनयन लेल की अपने श्राद्ध लेल आ कि अपना बाद लालकाकी लेल से हुनकर मोने जनैत हेतैन कि लालेलाकी के।
एकाएक निर्णय केलैथ आ लालकाकी के कहलखिन जे एकटा काज करू – पेटी से हमर एफ़डी के कागज सभ निकालू त । लालकाकी उद्देश्य बुझैत कहलखिन जे धैर्य धरू ने, कंटीर कहलक अछि ने जे जमीनदारबाबू के अकाउंट नं० पठा देब लेल ओ पाई भेज देत, से कहै त ओ सहिए अछि कि ने – ईमानदारी के पैसा कमसेकम ईमानदारी से जमीनदरबा के भेटै ने, एकबार फ़ेर जाउ ओकरा से मांगियौ अकाउंट नं०, जौं पाई के ओकरा बेगरता छै त देबे करत ने।
हं! हम भरोसा कऽ के पछताय छी आ आब बेटा ईमानदारी देखा रहल अछि, ओहो पछतायत बाद में। यै, आब सज्जन आ ईमानदार लोक के जुग रहलै अछि! देखलियै नै कोना जमीन लेल दरिभंगा में एकटा के आगि लगा के मारि देलकै। ई लोभी आ बैमान दुनिया के कोनो ठेकान नै। तैं निकालू झट द कागज सब, आईए बैंक भ आबि।

आब एतेक सुनला के बाद लाल काकी की जवाब दऽ सकै छलिह । हुनका लग एतेक गहनो त नै छ्ल जे आवेश दैत कहितथि जे "त बेस इ गहने बेच दिय"। बस चुपचाप पेटी खोलि क कागज निकालै लगलिह।

Tuesday 21 March 2017

रक्षिता (मैथिली लघु कथा)

आई रक्षिता भारतीय सेना के मेडिकल कोर्प में कमिशंड होबय जा छलिह । ऐ समारोह में हुनकर मां – पप्पा अर्थात रिद्धि आ रोहन सेहो आयल छलाह । रिद्धि के आई अपन बेटी के लेल किछु बेसिए दुलार आ फ़क्र बुझना जा रहल छल । समरोह में कुर्सी पर बैसल बैसल ओ पुरना खयाल में डूबि गेल छलिह ।
जखन पीजी - सुपर स्पेशलिटी के एंट्रेंस में रक्षिता नीक रैंक नेने छलिह तखन रोहन हुनका दिल्ली के एकटा जानल-मानल प्राईवेट मेडिकल इंस्टिच्युशन में प्रवेश लेब लेल कहने छलाह । ओ रक्षिता के बुझा रहल छलाह जे देखह बेटी ओ नामी कॉरपोरेट अस्पताल छै, नीक पाई भेटत, संगहि नाम आ शोहरत सेहो बढत त जिनगी ठाठ से कटत, तहि लेल कहै छि जे आर्मी अस्पताल में प्रवेश लेबय के जिद्द जुनि करू। ओतय अहां सं पहिनेहे बॉण्ड भरायल जायत आ पोस्ट डोक्टोरल (सुपर-स्पेशलटी) करय के बाद अहां के कैएक साल धरि सेना में जिवन घस पडत आ नै त लाखक लाख टका बॉन्ड  भरू ! मुदा रक्षिता कहां मानय वला छलिह, छुटिते ओ बजलिह: अहुं ने पप्पा किछु बाजि दैत छी! हमरा जतेक नीक एक्स्पोजर आ लर्निंग के सुविधा आर्मी अस्पताल में भेंटत ओहन सुविधा अहांक ओ कॉरपोरेट  अस्पताल में कतय सं भेटत! आ आर्मी अफ़सर के यूनिफ़ार्म देखने छी पप्पा कतेक चार्मिंग आ मस्त होई अछि ने, आ ओईपर सं आर्मी के रैंक पप्पा – सोचियौ जे डाक्टर के संगहि जौं हमरा कैप्टन , मेजर आ कर्नल रक्षिता रोहन के नाम सं पुकारल जायत त कत्तेक सोंहंतगर लगतै ने । आ अहां! ओना त टीवी डिबेट देख देख क हरदम सेना आ राष्ट्रवाद के जप करैत रहै छी आ आई जखन हम सेना के सेवा करय चाहै छी त अहां हमरा रोकि रहल छी! – इ सब गप्प ओ एक सुर में कहि गेल छलिह।

एत्तेक सब सुनला के बाद कहां रोहन हुनका रोकि सकल छलाह । आ फ़ाईनली ओ आर्मी अस्पताल में डीएनबी-प्लास्टीक सर्जरी प्रोग्राम में प्रवेश ल लेने छलिह। जिद्दीयो त ओ बहुत बडका छलिह । पीजी एडमिशन के टाईम पर सेहो रिद्धि हुनका सं कहने छलिह जे अहां लडकी छी अहि लेल लडकी बला कोनो स्पेशल्टी ल लिय – ओब्स गायनी, रेडियोलोजी या एहने सन कोनो मेडिकल स्पेशिलिटी ल लिय; कत्तौ, कोनो अस्पताल में आराम सं काज भेंट जायत  अ नै त अप्पन क्लिनिक सेहो खोलि सकै छी । फ़ेर विवाह दान भेला के बाद बर संगे एड्जस्ट्मेंट सेहो बनल रहत ।
"बर गेल अंगोर पर । हमरा त प्लास्टिक सर्जन बनै के अछि आ ओकरा लेल हमरा जनरल सर्जरी पढय के हेतै, त हम सर्जरी मे एडमिशन ल रहल छी बस । " – मां के बात के जवाब में ओ इ बात एक सुर में कहि गेल छलिह ।

रक्षिता बाल्यावस्थे सं  होनहार बच्ची छलिह आ एकर श्रेय वास्तव में रोहन के जाइ अछि ।  नेनपने सं ओकरा पढबै के जिम्मेवारी रोहन अपने सम्हारने छलाह ।  १०-१२ घंटा के ड्यूटी के बाद जखन ओ हारल थाकल घर आबै छहाल तखनो ओ  बड्ड लगन सं रक्षिता के बैसा क पढबै छलाह । हुनका पढबै खातिर समय निकालबा के चक्कर में कैएक बेर हुनका ऑफिस  में अपन अधिकारी से सेहो उलझय पडय छल । एहन स्थिति में कै बेर रिद्धि कहने छलिह जे कत्तौ ट्यूशन लगा दियौ, आई-कैल्ह बिना ट्यूशन के कहीं बच्चा पढलकै अछि, मुदा रोहन हुनकर गप्प कहियो नै सुनलाह ।  इंटर में गेला पर इ सब दास सर के संपर्क  में आयल छलाह, जे बड्ड योग्य शिक्षक छलाह, आ दास सर सेहो रक्षिता के पढबै में बहुत मेहनत केने छलाह, जेकर ई परिणाम छल जे रक्षिता एमबीबीएस के लेल सेलेक्ट भ गेल छलिह । जखन ओ दास सर सं गुरूदक्षिणा मांगय कहने छलिह त सर कहने छलाह जे "बेटी चिकित्सा मनुख क सेवा करय वला पेशा अछि, त जतेक भ सकै लोक सभ के सेवा करिह, यैह हमर दक्षिणा होयत । 
याद क पांइख लगा क रिद्धि अतित के गहराई में उतरय लागल छलिह । रोहन के संग हिनकर विवाह क कैएक वर्ष भ गेल छल मुदा हुनका कोनो संतान नै भेल छल । एक दिन अचानके स रोहन एकटा जन्मौटि नेना के कोरा मे नेने आयल छलाह आ ओकरा रिद्धि के कोरा मे राखि देने छलाह आ कहलाह जे "अपन बिटिया रानी"।
"हाय राम! इ केकर बच्चा उठा के नेने एलहु अछि?" रिद्धि रोहन से पुछने छलिह । रोहन उत्तर दैत कहने छलाह जे "हम अनाथालय में एकटा बच्चा लेल आवेदन केने छलहु, आई ओतय स खबर आयल छल जे एकटा जन्मौटी बच्चा के केयौ राइख गेल अछि अनाथालय में यदि आहां देखय चाहै छि त …….।" बस हम ओतय पहुंच गेलहुं आ एत्तेक सुन्नैर नेना के देख क झट हं कहि देलहुं आ सभटा फ़ोर्मलिटि पुरा कय क एकरा अहां लग नेने एलहु अछि।
"मुदा इ ककरो नाजाय बच्चा……"
"हा..हा..हा… बच्चा कोनो नाजायज नै होई अछि, नाजायज त ओकरा समाज बनबै अछि" रिद्धि के बात काटैत रोहन बजने छलाह, आ जवाब बे रिद्धि बस एतबे बजने छलिह जे "अहां एकर रक्षक भेलहु आ इ हमर रक्षिता अछि।"

अतितक गहराई में डूबल रिद्धि के कान में अचानक से रोहन के उ स्वर गूंजय लागल छल, आ हुनकर तन्द्रा तखन टूटल जब हुनका कान में रक्षिता के नाम गूंजल जे रक्षिता के कमिशनिंग आ बैज ओफ़ ओनर के लेल बजाबय लेल पुकारल गेल छल । रिद्धि के आंखि सं मोती जेका नोर टपकय लागल छल, कियेकि आई हुनकर बेटी एकटा आर्मी अफ़सर का एकटा कुशल प्लास्टिक सर्जन जे बनि गेल छलिह।