Thursday 26 January 2017

ठिठुरता गणतंत्र

करने दो उनको मनमानी, कभी नहीं टोको रे
कुछ फिरंगी नस्लों के खातिर तुम, अपनो का पथ रोको रे|
कहते हैं गणतंत्र दिवस आई है बस आई है
कुछ चेहरों पे अट्टहास,बांकी पर मायूसी छाई है|
राजपथ पर लगा हुआ है संगीनों का मेला
चारों ओर भीड़ है किन्तु, गणतंत्र खड़ा है अकेला|
बनता हूँ भीड़ का अंग मैं भी पर, मेरी आवाज कहीं दब जाती है
इस तथाकथित लोकतंत्र में सुकून की, नींद नहीं आती है |
 फिर भी आशावान हूँ एकदिन सही वक्त आएगा
हर शोषित एकदिन इस मुल्क में सही न्याय पायेगा |

Sunday 8 January 2017

लप्रेक: गाँव का टूर (Gaon ka tour)

लडकी: हाय!
लडका: हेल्लो!
लडकी: अरे क्या हुआ मूड क्यूं आफ़ है?
लडका: अब क्या बताऊं, मकानमालिक ने रूम खाली करने की धमकी दे रखी है ।
लडकी: लेकिन क्यूं?
लडका: अरे कुछ नहीं बस किराया देने में थोरी देरी हो गई है । वो भी ऐसा नही है कि मेरे पास पैसे नहीं है, मेरे होम ट्यूशन वाले बच्चों के पेरेन्ट्स ने आनलाईन फ़ी ट्रांसफ़र कर दिया है, पर मकानमालिक को तो बस कैश चाहिए।
लडकी: हुंह! तो लगो फ़िर बैंक और एटीएम की लाईन में ।
लडका: २ घंटे एटीएम की लाईन में लगने से मैं दो घंटे बच्चों को पढाना बेहतर समझता हूं । और वैसे भी कुछ दिनो की ही तो बात है थोरा सब्र कर ले या फ़िर डिजिटल ट्रांसफ़र से पेमेंट ले ले। आखिर डिजिटल ट्रांसफ़र में बुराई क्या है ।
लडकी(व्यंगात्मक लहजे में): हां हां तुम जैसे दर्जनो किरायेदार से वो डिजिटल पेमेंट ले ले ताकि उसके आय का खुलासा हो जाए! खैर छोडो यार सब ठीक हो जाएगा ।चिल! दिल्ली दिलवालों का है यार।
लडका: शायद तुम सही कह रही हो, पर यहां के दुषित वातावरण में सबके दिल काले पर चुके हैं ।

लडकी(माहौल को हल्का बनाती हुई): अच्छा छोडो ये सब। ये बताओ कि तुम मुझे अपने गांव का टूर कब करवाओगे?
लडका: फ़िलहाल तो नहीं ।
लडकी: क्यॊं? तुम मुझे ले जाना ही नही चहते या लोग सवाल करेंगे  इस बात से घबरा रहे हो?
लडका: नहीं इनमे से कोई भी बात नहीं है।
लडकी: तो फ़िर क्या बात है ?
लडका: बत यह है कि मेरे घर में टायलेट नहीं है । वह लंबी सांस छोडते हुए बोला ।
लडकी: ओह! आइ एम सारी । मेरा मकसद तुम्हे हर्ट करने का नहीं था ।
लडका: मैं हर्ट नहीं हो रहा हूं । मैं अपनी सच्चाई को बेहतर समझता हूं । घर के सीमित आय में रोजमर्रा के खर्च के बीच कभी इसकी ऐसी जरूरत महसूस ही नहीं की गई । पिछले साल दीदी की शादी हुई, एक छॊटा सा पक्का मकान भी बन गया है । फ़िलहाल इन कामो के लिए लिए गए कर्ज उतारना और मेरी पढाई ही घर की प्राथमिकता है ।
लडकी: हुंह ! लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए टायलेट बनाने के लिए कई सरकारी योजनाएं भी तो चल रही हैं, तुम इसका लाभ क्यों नहीं उठाते ।
लडका: हा..हा..हा.हा। सरकारी योजनाओं का जितना बडा ऐलान होता है उसका छॊटा सा भाग ही जमीन पर उतरता है, और उसमे से भी बडा हिस्सा सशक्त और पहुंच वाले लोगों को मिल जाती है । हमारे यहां उन लोगो को भी टायलेट बनाने के लिए पैसे मिले हैं जिनके घरों में कारें खडी हैं, बस हम जैसों को ही नहीं मिला ।
लडकी: तो क्या इन योजनाओं का लाभ किसी गरीब को मिलता ही नहीं है!
लडका: नहीं ऐसा नहीं है । आज देश में गरीब होना उतनी बडी समस्या नहीं है जितनी बडी समस्या एक सवर्ण होते हुए गरीब होना होता है। बहुत से अनुसूचित जाति, पिछडी जाति वर्ग के भाई लोगों के घर सरकारी योजनाओं से टायलेट बने हैं ।

खैर जाने दो इन बातों को। मैं तुम्हे छठ में गांव ले चलुंगा ।
लडकी: छठ में क्यों? छठ में तो अभी १० महीने का समय है न!
लडका: वो इसलिए कि मैं हर महीने ढाई तीन हजार रूपए बचा रहा हूं और छठ तक मेरे घर टायलेट बन जाएगा और दूसरी बात कि मेरे गांव में घुमने और लोगों से मिलने के लिए छठ से बडा कोई समय हो ही नहीं सकता ।
वो विस्मय मिश्रित मुस्कान के साथ उसको देखने लगी । 

Sunday 1 January 2017

लप्रेक - लाजपत नगर मार्केट (Lajpat nagar market)

हैल्लो! हां कैसे हो?
ठीक हूं ।
अच्छा तुमने कहा था कि इतवार को तुम सेलेक्ट सिटी वोक घुमाने ले जाओगे सो मैं नहीं आ सकती, क्या तुम कल लाजपत नगर मार्केट ले चल सकते हो?
पर तुम्हारा बर्थडे तो इतवार को है न! और मेरी छुट्टी भी। कल तो मेरा आफ़िस रहेगा।
नहीं, इतवार को मेरे घर में कोई मेहमान आ रहे हैं, सो मैं नही अ सकती। तुम्हारा आफ़िस नेहरूप्लेस में ही तो है थोरी देर के लिए छुट्टी ले के भी तो आ सकते हो।
ओके ठीक है।
ठीक है, कल ग्यारह बजे हां । बाय।
(अगले दिन लाजपत नगर बस स्टाप पर)
ओह सारी। ज्यादा इंतजार तो नही करना पडा ना? उफ़्फ़ ! कितनी धूप है, मेरा तो आने का मन भी नही कर रहा था । अच्छा चलो जल्दि से रिक्शा ले लेते हैं ।
ओके।
चलो पहले कहीं बैठकर कुछ खाते हैं ।
अरे नहीं मैं घर से नस्ता कर के आई हूं। चलो पहले मेरा गिफ़्ट दिलाओ ।
ठीक है । चलते हैं ।
उस दूकान में चलते हैं वह लहंगा चुनरी और सूट की स्पेस्लिट दूकान है ।
(दूकान में पहूचते हैं)
भैया एक बढिया सूट दिखाओ ।
ये देखो अनरकली, ये पटियाला सूट, ये हिना सूट, ये चूड़ीदार, ये फ्रॉक सूट .....  
हां, ये बढिया है । तुम्हे कैसा लगा ।
तुम्हे अच्छा लगा तो बढिया ही होगा ।
अरे ये पर्पल वाला भी बहुत बढिया है, लेटेस्ट स्टाईल में ।
क्या मैं ये भी ले लूं ।
ठीक है ले लो ।
देख लो। फ़िर ये मत कहना कि पैसे खर्च करवा दिए ।
अरे भैयाजी का दिल बडा है पैसे की फ़िक्र क्या करना मैडम जी (दूकानदार उत्साहित करते हुए बोला )
कोई बात नही है ले लो । भैया ये कितने का है ? (वो बोला)
ये अनारकली वाला आठ हजार का और ये मोर्डन वाला चार हजार का ।
भैया डिस्काउंट कितना दोगे ? – डिस्काउटं कर के ही बोला है मैडमजी
(इधर ये दुकानदार से तोल-मोल करने लगी और वो मन ही मन पैसों का हिसाब लगाने लगा – जेब में करीब चार हजार हैं और डेबिट कार्ड में तेरह हजार! चलो डेबिट कार्ड से इज्जत तो बच जाएगी । बांकि आगे कैसे गुजारा करना है बाद में सोचेंगे)
पेमेंट कर के और दोनो कपडे पैक करवा के दोनो वहां से निकले ।
आगे बाजार में घूमते हुए वो बोली
सुनो एक बात कहूं ?
हां बोलो ।
अगले महिने मेरे भाई का बर्थडे है, उसके लिए एक शर्ट लेना है ।
ठीक है ले लो । वो बोला ।
दुकान से उसने एक शर्ट पसंद किया और दुकानदार से दाम पुछने लगी।
भैया ये शर्ट कितने की है ।
पांच सौ की ।
ठीक है, पैक कर दो । वो पेमेंट करते हुए बोला ।
एक तुम अपने लिए भी ले लो ना !
अरे नहीं रहने दो, पिछले महिने ही मैने दो शर्ट लिए थे (अपने हिल चुके बजट का अनुमान लगाते हुए उसने बहाना बनाया था )
ठीक है जैसी तुम्हारी इक्षा ।
आगे एक चश्मेवाला धूप चश्मा बेच रहा था ।
भैया ये कितने का है ।
तीन सौ का मैडमजी ।
अरे डेढ सौ का दोगे क्या (वो बोली)
नहीं! दो सौ लगेंगे ।
रहने दो यार (बीच में वो बोला)
अछा ले लो डेढ सौ का ही (चश्मेवाला बोला)
वो जानता था कि इस चश्मे की औकात सौ रूपए की भी नहीं है, पर वो इस वक्त अपनी रुसवाई नही चाहता था इसलिए चुपचाप चश्मेवाले को डेढ सौ रूपए थम्हा दिए ।
(अब उसे जोरों की भूख लग रही थी । आज घर से नास्ता कर के भी नहीं चला था। और खरीदारी के चक्कर में अब तक उससे फ़ुर्सत से कुछ बात भी तो नहीं कर पाया था! इसिलिए फ़िर से वो बोला:)
चलो चलकर कुछ खाते हैं और वहीं बैठकर गप्पे भी मारेंगे ।
अरे नहीं । मम्मी से दो घंटे का बोल के आई थी वो इंतजार कर रही होगी । अब हमें चलना चाहिए ।
अच्छा! ठीक है। वो बुझे मन से अपनी भूख और इच्छाओं को दबाते हुए बोला।
ओटो वाले भैया, गणेश नगर चलोगे क्या? हां हां अक्षर धाम मंदिर के नजदीक ही है ।
ढाई सौ लगेंगे मैडम ।
भैया दो सौ लगते हैं । दो सौ मे चल लो ठीक है । (औटो वाले लगभग धकियाते हुए बोली)
अरे सुनो । तुम्हारे पास दो हजार के छुट्टे हैं क्या मेरे पास दो हजार के ही नोट हैं ।
कोई बात नहीं मैं दे देता हूं , कहते हुए उसने दो सौ रुपए  औटो वाले को थम्हा दिए ।
अच्छा सुनो । अपनी शादी की बात घरवालों से कब करोगी उसने जाते जाते उससे पुछा ।
अरे इस बारे में बाद में बात करते हैं न । यह कहते कहते वो औटो में बैठ गई और औटो आगे बढ गया । वो औटो को जाते हुए देख रहा था जो धीरे-धीरे धुंधला होता हुआ आंखों से औझल हो गया था॥