Tuesday 21 March 2017

रक्षिता (मैथिली लघु कथा)

आई रक्षिता भारतीय सेना के मेडिकल कोर्प में कमिशंड होबय जा छलिह । ऐ समारोह में हुनकर मां – पप्पा अर्थात रिद्धि आ रोहन सेहो आयल छलाह । रिद्धि के आई अपन बेटी के लेल किछु बेसिए दुलार आ फ़क्र बुझना जा रहल छल । समरोह में कुर्सी पर बैसल बैसल ओ पुरना खयाल में डूबि गेल छलिह ।
जखन पीजी - सुपर स्पेशलिटी के एंट्रेंस में रक्षिता नीक रैंक नेने छलिह तखन रोहन हुनका दिल्ली के एकटा जानल-मानल प्राईवेट मेडिकल इंस्टिच्युशन में प्रवेश लेब लेल कहने छलाह । ओ रक्षिता के बुझा रहल छलाह जे देखह बेटी ओ नामी कॉरपोरेट अस्पताल छै, नीक पाई भेटत, संगहि नाम आ शोहरत सेहो बढत त जिनगी ठाठ से कटत, तहि लेल कहै छि जे आर्मी अस्पताल में प्रवेश लेबय के जिद्द जुनि करू। ओतय अहां सं पहिनेहे बॉण्ड भरायल जायत आ पोस्ट डोक्टोरल (सुपर-स्पेशलटी) करय के बाद अहां के कैएक साल धरि सेना में जिवन घस पडत आ नै त लाखक लाख टका बॉन्ड  भरू ! मुदा रक्षिता कहां मानय वला छलिह, छुटिते ओ बजलिह: अहुं ने पप्पा किछु बाजि दैत छी! हमरा जतेक नीक एक्स्पोजर आ लर्निंग के सुविधा आर्मी अस्पताल में भेंटत ओहन सुविधा अहांक ओ कॉरपोरेट  अस्पताल में कतय सं भेटत! आ आर्मी अफ़सर के यूनिफ़ार्म देखने छी पप्पा कतेक चार्मिंग आ मस्त होई अछि ने, आ ओईपर सं आर्मी के रैंक पप्पा – सोचियौ जे डाक्टर के संगहि जौं हमरा कैप्टन , मेजर आ कर्नल रक्षिता रोहन के नाम सं पुकारल जायत त कत्तेक सोंहंतगर लगतै ने । आ अहां! ओना त टीवी डिबेट देख देख क हरदम सेना आ राष्ट्रवाद के जप करैत रहै छी आ आई जखन हम सेना के सेवा करय चाहै छी त अहां हमरा रोकि रहल छी! – इ सब गप्प ओ एक सुर में कहि गेल छलिह।

एत्तेक सब सुनला के बाद कहां रोहन हुनका रोकि सकल छलाह । आ फ़ाईनली ओ आर्मी अस्पताल में डीएनबी-प्लास्टीक सर्जरी प्रोग्राम में प्रवेश ल लेने छलिह। जिद्दीयो त ओ बहुत बडका छलिह । पीजी एडमिशन के टाईम पर सेहो रिद्धि हुनका सं कहने छलिह जे अहां लडकी छी अहि लेल लडकी बला कोनो स्पेशल्टी ल लिय – ओब्स गायनी, रेडियोलोजी या एहने सन कोनो मेडिकल स्पेशिलिटी ल लिय; कत्तौ, कोनो अस्पताल में आराम सं काज भेंट जायत  अ नै त अप्पन क्लिनिक सेहो खोलि सकै छी । फ़ेर विवाह दान भेला के बाद बर संगे एड्जस्ट्मेंट सेहो बनल रहत ।
"बर गेल अंगोर पर । हमरा त प्लास्टिक सर्जन बनै के अछि आ ओकरा लेल हमरा जनरल सर्जरी पढय के हेतै, त हम सर्जरी मे एडमिशन ल रहल छी बस । " – मां के बात के जवाब में ओ इ बात एक सुर में कहि गेल छलिह ।

रक्षिता बाल्यावस्थे सं  होनहार बच्ची छलिह आ एकर श्रेय वास्तव में रोहन के जाइ अछि ।  नेनपने सं ओकरा पढबै के जिम्मेवारी रोहन अपने सम्हारने छलाह ।  १०-१२ घंटा के ड्यूटी के बाद जखन ओ हारल थाकल घर आबै छहाल तखनो ओ  बड्ड लगन सं रक्षिता के बैसा क पढबै छलाह । हुनका पढबै खातिर समय निकालबा के चक्कर में कैएक बेर हुनका ऑफिस  में अपन अधिकारी से सेहो उलझय पडय छल । एहन स्थिति में कै बेर रिद्धि कहने छलिह जे कत्तौ ट्यूशन लगा दियौ, आई-कैल्ह बिना ट्यूशन के कहीं बच्चा पढलकै अछि, मुदा रोहन हुनकर गप्प कहियो नै सुनलाह ।  इंटर में गेला पर इ सब दास सर के संपर्क  में आयल छलाह, जे बड्ड योग्य शिक्षक छलाह, आ दास सर सेहो रक्षिता के पढबै में बहुत मेहनत केने छलाह, जेकर ई परिणाम छल जे रक्षिता एमबीबीएस के लेल सेलेक्ट भ गेल छलिह । जखन ओ दास सर सं गुरूदक्षिणा मांगय कहने छलिह त सर कहने छलाह जे "बेटी चिकित्सा मनुख क सेवा करय वला पेशा अछि, त जतेक भ सकै लोक सभ के सेवा करिह, यैह हमर दक्षिणा होयत । 
याद क पांइख लगा क रिद्धि अतित के गहराई में उतरय लागल छलिह । रोहन के संग हिनकर विवाह क कैएक वर्ष भ गेल छल मुदा हुनका कोनो संतान नै भेल छल । एक दिन अचानके स रोहन एकटा जन्मौटि नेना के कोरा मे नेने आयल छलाह आ ओकरा रिद्धि के कोरा मे राखि देने छलाह आ कहलाह जे "अपन बिटिया रानी"।
"हाय राम! इ केकर बच्चा उठा के नेने एलहु अछि?" रिद्धि रोहन से पुछने छलिह । रोहन उत्तर दैत कहने छलाह जे "हम अनाथालय में एकटा बच्चा लेल आवेदन केने छलहु, आई ओतय स खबर आयल छल जे एकटा जन्मौटी बच्चा के केयौ राइख गेल अछि अनाथालय में यदि आहां देखय चाहै छि त …….।" बस हम ओतय पहुंच गेलहुं आ एत्तेक सुन्नैर नेना के देख क झट हं कहि देलहुं आ सभटा फ़ोर्मलिटि पुरा कय क एकरा अहां लग नेने एलहु अछि।
"मुदा इ ककरो नाजाय बच्चा……"
"हा..हा..हा… बच्चा कोनो नाजायज नै होई अछि, नाजायज त ओकरा समाज बनबै अछि" रिद्धि के बात काटैत रोहन बजने छलाह, आ जवाब बे रिद्धि बस एतबे बजने छलिह जे "अहां एकर रक्षक भेलहु आ इ हमर रक्षिता अछि।"

अतितक गहराई में डूबल रिद्धि के कान में अचानक से रोहन के उ स्वर गूंजय लागल छल, आ हुनकर तन्द्रा तखन टूटल जब हुनका कान में रक्षिता के नाम गूंजल जे रक्षिता के कमिशनिंग आ बैज ओफ़ ओनर के लेल बजाबय लेल पुकारल गेल छल । रिद्धि के आंखि सं मोती जेका नोर टपकय लागल छल, कियेकि आई हुनकर बेटी एकटा आर्मी अफ़सर का एकटा कुशल प्लास्टिक सर्जन जे बनि गेल छलिह।

Saturday 18 March 2017

बात बिहार में आधुनिक चिकित्सा शिक्षा-व्यवस्था के स्थिति की:

बिहार में पटना मेडिकल कॉलेज के अलावा दरभंगा  मेडिकल कॉलेज की स्थापना भी आजादी से पहले अर्थात 1946  में की जा चुकी थी । वर्तमान में राज्य में एम्स पटना सहित कुल 14 संस्थान हैं जहां एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लगभग 1450 सीट उपलब्ध हैं अर्थात लगभग सत्तर हजार की जनसंख्या पर एक सीट।

इन 14 संस्थानों मे से दो की स्थापना जहां आजादी से पहले हो चुकी थी वहीं 12 मे से 5 (42%) की स्थापना पिछले दस वर्षों में नीतिश कुमार के शासन काल में हुई है। यद्यपि यह संख्या अपने आप मे अपर्याप्त है, और इन पांच में से एक(एम्स), भारत सरकार की संस्था है (जिसे पूर्व प्रधानमंत्री पं० अटल बिहारी बाजपेयी की देन कहा जाए), दो ट्रस्ट के अस्पताल हैं और अन्य दो, राज्य सरकार के अस्पताल । इनमे से बेतिया मेडिकल कालेज में छात्रों के लिए मूलभूत (मशीन और लैब) सुविधाओं के कमी की पोल-पट्टी कुछ माह पूर्व ही रवीश कुमार ने प्राईम टाइम में खोली थी ।

मीडिया के माध्यम से पता चला है कि राज्य सरकार, राज्य के पांच जिलों जिसमें बेगूसराय (मेरा ग̨ह जिला) और मधुबनी(जहां मेरा बचपन बीता है) भी शामिल है, में पांच नये मेडिकल कालेज खोलने वाली है और इसके लिए दो हजार करोड रूपए की मंजूरी दे दी गई है, यद्यपि इस विषय में राज्य सरकार से जानने की कोशिश की तो कोई जवाब नही मिला है ।

अब आते हैं बांकि के सात संस्थान पर, तो आजादी के बाद के 60 वर्षों में मेडिकल शिक्षा में राज्य सरकारों की यही उपलब्धि रही है! और इसमे भी लालू यादव के 15 वर्षॊं के राज को देखें तो उस दौरान एक भी संस्थान की स्थापना नहीं हुई। वैसे वर्तमान में उन्ही के पुत्र राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन के बैठे हैं; अत: उनके पास भी मौका है अपने माता-पिता के कर्महीनता (अथवा कहें की पाप) का प्रायश्चित राज्य में स्वास्थ्य शिक्षा व्यवस्था का विकास कर करें ।

राज्य के 14 संस्थानों में नौ राज्य सरकार के, एक केंद्र सरकार का एवं चार ट्रस्ट के संस्था हैं। मजेदार बात यह है कि राज्य में एक भी पूर्णत: निजी चिकित्सा संस्थान नहीं है (जिसके अपने नफ़ा-नुकसान है, जिसकी विवेचना फ़िर कभी), जैसा कि अन्य राज्यों मे देखने को मिलता है ।

राज्य में केवल पीएमसीएच और एम्स पटना ही ऐसी संस्थान है जहां एमबीबीएस की सौ से ज्यादा सीटें हैं ।

वर्तमान में जहां राज्य में करीब 1450 एमबीबीएस की सीटें है (जो कि स्वयं अपर्याप्त है) वहीं इसके मुकाबले स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की कुल 525 के लगभग सीटे हैं (डिप्लोमा/एमडी/ एमएस/डीएम/ऎमसीएच/डीएनबी सब मिलाकर के) जो की एमबीबीएस के सीटों के आधी से भी कम हैं । अर्थात राज्य में एमबीबीएस करने वाले आधे से अधिक चिकित्सक या तो स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल नहीं कर पाते या फ़िर इसके लिए राज्य से बाहर पलायन कर जाते हैं जो कि राज्य में विशेषज्ञों की कमी का प्रमुख कारण है । यदि आप राज्य के चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों और राज्य के सरकारी अस्पतालों/ निजी क्लिनिक मे कार्यरत चिकित्सकों के अकादमिक रिकार्ड को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये शिक्षक अपने ही संस्थान या राज्य के किसी अन्य संस्थान से स्नातकोत्तर हैं वहीं सरकारी अस्पतालो/निजी क्लिनिक में कार्यरत अधिकांश चिकित्सक राज्य के किसी संस्थान से एमबीबीएस या डिप्लोमा हैं जिन्हें स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल करने का अवसर नही मिल सका। यह एक स्वाभाविक बात है कि जो कोई भी पढाई के लिए कहीं और जाएगा, निश्चित ही बाद में वह कार्य भी उसी क्षेत्र में करने लगेगा। अत: राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए स्नातकोत्तर सीट बढ़ाना आवसश्यक है। जहां एमबीबीएस के लिए पांच नए संस्थान खोलने की घोषणा की गई है वहीं स्नातकोत्तर के सीटों के बढोतरी के लिए सरकार कुछ खास करती दिख नहीं रही है ।

कुल मिला के देखा जाए तो आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के व्यवस्था में फ़िलहाल तो राज्य सरकार काफ़ी पिछडी हुई दिख रही है, और इसे एक ठीक-ठाक स्तर तक पहूंचने के लिए अभी काफ़ी कुछ करने की जरूरत है ।

Saturday 4 March 2017

रक्षिता (कहानी)


आज रक्षिता भारतीय सेना के मेडिकल कॉर्प मे कमिशंड होने जा रही थी । इस समारोह में उसके माता-पिता अर्थात रिद्धि और रोहन भी आए हुए थे । रिद्धि को आज अपने बेटी के लिए ज्यादा ही प्यार और फ़क्र महसूस हो रहा था । समारोह में बैठे-बैठे ही वो पुराने खयालों में खो गई थी ।
जब पीजी-सुपर स्पेसियालिटी के एंट्रेंस में रक्षिता अच्छा रैंक लायी थी तो रोहन ने उसे दिल्ली के एक मशहुर प्राइवेट मेडिकल इन्स्टीच्युशन में प्रवेश लेने को कहा था । वो रक्षिता को समझा रहे थे बेटा कोर्पोरेट हॉस्पिटल  है, अच्छे पैसे मिलेंगे, नाम और शोहरत बढेगी तो लाईफ़ ठाठ से कटेंगे, क्यों आर्मी हॉस्पिटल में एडमिशन लेने का जिद्द कर रही हो; वहां वो तुमसे बोंड भरवाएंगे और पोस्ट-डोक्टोरल के बाद तुम्हे सेना में कई साल घीसने पडेंगे! पर वो कहां माननेवाली थी उसने कहा था आप भी न पापा, कुछ भी हां! केवल पैसा ही तो सबकुछ नहीं होता है न पापा। मुझे जितना बढिया एक्स्पोजर और लर्निग फ़ैसिलिटी आर्मी अस्पताल में मिलेगा वैसा आपके उस कोर्पोरेट अस्पताल में कहां मिलेगा, और आर्मी अफ़सर की युनिफ़ार्म देखी है आपने कितनी चार्मिंग और मस्त होती है न; और उसपर से आर्मी का रैंक पापा – सोचो जब मुझे पुकारा जाएगा कैप्टन, मेजर फ़िर कर्नल रक्षिता रोहन। वॉव! इट्स साऊन्ड प्रिटि एक्साईटींग ना । और आप वैसे तो टीवी डिबेट देख-देखकर  हरवक्त सेना और राष्ट्रवाद का राग अलापते रहते हो और जब मैं सेना की सेवा करना चाह रही हूं तो आप रोक रहे हो। इसलिए प्यारे पापा, मैं आर्मी अस्पताल में ही डीएनबी-प्लास्टिक सर्जरी करुँगी |
इतना सब सुनने के बाद कहां रोहन रोक सका था उसे । जिद्दी भी तो बहुत बडी थी । पीजी एडमिशन के वक्त भी रिद्धि ने उसे कहा था कि लडकी हो, लडकियों वाली कोई स्पेशल्टी ले लो – ओब्स गायनी, रेडियोलोजी या कोई मेडिकल सब्जेक्ट ले लो। किसी भी अस्पताल में काम मिल जायेगा या अपना क्लिनिक चला सकती हो, फ़िर शादी के बाद पति के साथ एडजस्ट्मेंट भी बना रहेगा।
"पति गया तेल लेने, मुझे प्लास्टीक सर्जन बनना है जिसके लिए मुझे जर्नल सर्जरी पढना होगा तो मैं सर्जरी में एडमिशन ले रही हूं बस ।" - मां के बात के उत्तर में उसने ये एक सांस में कहा था ।

रक्षिता बचपन से ही होनहार लडकी थी और इसके लिए रोहन को भी क्रेडिट जाता है, बचपन से ही उसको पढाने की जिम्मेवारी उसने ले रखी थी, १०-१२ घंटे की ड्य्टी के बाद वो हारा थका आता फ़िर भी वो रक्षिता को पढाता था। इसके लिए समय निकालने के लिए कई बार उसे ओफ़िस में बोस से उलझना भी   पडता था, रिद्धि तो कहती थी की ट्यूशन लगा दो कहीं, पर रोहन ने उसकी कभी नही सुनी। ग्यारहवीं में वो दास सर के संपर्क में आये थे, दास सर ने भी उसपर काफ़ी मेहनत किया था जिसका परिणाम था कि रक्षिता एमबीबीएस के लिए सेलेक्ट हो गई थी । उसने दास सर से गुरूदक्षिणा मांगने को कहा था तो सर ने कहा था – बेटा चिकित्सा मानव सेवा का पेशा है तो जितना हो सके मानव सेवा करना यही मेरी दक्षिणा होगी ।

यादों के उडान भरते भरते रिद्धि अतित की गहराईयों में उतरती जा रही थी । रोहन के साथ उसकी शादी को कई वर्ष हो गए थे पर उनके कोई संतान नही हुई थी । एकदिन अचानक रोहन एक नन्ही सी बच्ची को गोद में लिए हुए आया था और उसे रिद्धि के गोद में रख दिया था और कहा था "हमारी बिटिया रानी"। हाय राम ये किसका बच्चा उठा लाए हो जवाब में रिद्धि ने रोहन से पूछा था । रोहन ने जवाब दिया था "मैने अनाथालय में एक बच्चे के लिए अवेदन कर रखा था, आज उनका फ़ोन आया था कि एक नवजात बच्ची कोई रख गया है अनाथालय में यदि आप देखना चाहें तो…।" मै वहा गया तो इतनी प्यारी बच्ची देखकर झट हां कह दी और सारी फ़ोर्मालिटी पुरी कर इसे ले आया तुम्हारे पास।
पर ये किसी की नाजायज बच्चा…………
हा..हा..हा..हा.. बच्चा कोई भी  नाजायज नहीं होते हैं, नाजायज तो उसे समाज बना देती है – रिद्धि की बात बीच में ही काटते हुए रोहन ने कहा था और जवाब में रिद्धि ने बस इतना कहा था "आप इसके रक्षक हैं और ये हमारी रक्षिता" ।

अचानक से रोहन के वो शब्द उसके कानों में गूंजने लगे थे, और उसकी तंद्रा तब टूटी जब उसने सुना की कमिशनिंग और बैच ऑफ़ ऑनर के लिए रक्षिता का नाम पुकारा जा रहा था । उसकी आंखों से आंसूओं के मोती छलक पडे थे, क्योंकि आज उसकी बेटी एक आर्मी अफसर और एक कुशल प्लास्टीक सर्जन जो बन गई थी ।