Saturday 18 March 2017

बात बिहार में आधुनिक चिकित्सा शिक्षा-व्यवस्था के स्थिति की:

बिहार में पटना मेडिकल कॉलेज के अलावा दरभंगा  मेडिकल कॉलेज की स्थापना भी आजादी से पहले अर्थात 1946  में की जा चुकी थी । वर्तमान में राज्य में एम्स पटना सहित कुल 14 संस्थान हैं जहां एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लगभग 1450 सीट उपलब्ध हैं अर्थात लगभग सत्तर हजार की जनसंख्या पर एक सीट।

इन 14 संस्थानों मे से दो की स्थापना जहां आजादी से पहले हो चुकी थी वहीं 12 मे से 5 (42%) की स्थापना पिछले दस वर्षों में नीतिश कुमार के शासन काल में हुई है। यद्यपि यह संख्या अपने आप मे अपर्याप्त है, और इन पांच में से एक(एम्स), भारत सरकार की संस्था है (जिसे पूर्व प्रधानमंत्री पं० अटल बिहारी बाजपेयी की देन कहा जाए), दो ट्रस्ट के अस्पताल हैं और अन्य दो, राज्य सरकार के अस्पताल । इनमे से बेतिया मेडिकल कालेज में छात्रों के लिए मूलभूत (मशीन और लैब) सुविधाओं के कमी की पोल-पट्टी कुछ माह पूर्व ही रवीश कुमार ने प्राईम टाइम में खोली थी ।

मीडिया के माध्यम से पता चला है कि राज्य सरकार, राज्य के पांच जिलों जिसमें बेगूसराय (मेरा ग̨ह जिला) और मधुबनी(जहां मेरा बचपन बीता है) भी शामिल है, में पांच नये मेडिकल कालेज खोलने वाली है और इसके लिए दो हजार करोड रूपए की मंजूरी दे दी गई है, यद्यपि इस विषय में राज्य सरकार से जानने की कोशिश की तो कोई जवाब नही मिला है ।

अब आते हैं बांकि के सात संस्थान पर, तो आजादी के बाद के 60 वर्षों में मेडिकल शिक्षा में राज्य सरकारों की यही उपलब्धि रही है! और इसमे भी लालू यादव के 15 वर्षॊं के राज को देखें तो उस दौरान एक भी संस्थान की स्थापना नहीं हुई। वैसे वर्तमान में उन्ही के पुत्र राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन के बैठे हैं; अत: उनके पास भी मौका है अपने माता-पिता के कर्महीनता (अथवा कहें की पाप) का प्रायश्चित राज्य में स्वास्थ्य शिक्षा व्यवस्था का विकास कर करें ।

राज्य के 14 संस्थानों में नौ राज्य सरकार के, एक केंद्र सरकार का एवं चार ट्रस्ट के संस्था हैं। मजेदार बात यह है कि राज्य में एक भी पूर्णत: निजी चिकित्सा संस्थान नहीं है (जिसके अपने नफ़ा-नुकसान है, जिसकी विवेचना फ़िर कभी), जैसा कि अन्य राज्यों मे देखने को मिलता है ।

राज्य में केवल पीएमसीएच और एम्स पटना ही ऐसी संस्थान है जहां एमबीबीएस की सौ से ज्यादा सीटें हैं ।

वर्तमान में जहां राज्य में करीब 1450 एमबीबीएस की सीटें है (जो कि स्वयं अपर्याप्त है) वहीं इसके मुकाबले स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की कुल 525 के लगभग सीटे हैं (डिप्लोमा/एमडी/ एमएस/डीएम/ऎमसीएच/डीएनबी सब मिलाकर के) जो की एमबीबीएस के सीटों के आधी से भी कम हैं । अर्थात राज्य में एमबीबीएस करने वाले आधे से अधिक चिकित्सक या तो स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल नहीं कर पाते या फ़िर इसके लिए राज्य से बाहर पलायन कर जाते हैं जो कि राज्य में विशेषज्ञों की कमी का प्रमुख कारण है । यदि आप राज्य के चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों और राज्य के सरकारी अस्पतालों/ निजी क्लिनिक मे कार्यरत चिकित्सकों के अकादमिक रिकार्ड को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ये शिक्षक अपने ही संस्थान या राज्य के किसी अन्य संस्थान से स्नातकोत्तर हैं वहीं सरकारी अस्पतालो/निजी क्लिनिक में कार्यरत अधिकांश चिकित्सक राज्य के किसी संस्थान से एमबीबीएस या डिप्लोमा हैं जिन्हें स्नातकोत्तर विशेषज्ञता हासिल करने का अवसर नही मिल सका। यह एक स्वाभाविक बात है कि जो कोई भी पढाई के लिए कहीं और जाएगा, निश्चित ही बाद में वह कार्य भी उसी क्षेत्र में करने लगेगा। अत: राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञों की संख्या बढ़ाने के लिए स्नातकोत्तर सीट बढ़ाना आवसश्यक है। जहां एमबीबीएस के लिए पांच नए संस्थान खोलने की घोषणा की गई है वहीं स्नातकोत्तर के सीटों के बढोतरी के लिए सरकार कुछ खास करती दिख नहीं रही है ।

कुल मिला के देखा जाए तो आधुनिक चिकित्सा शिक्षा के व्यवस्था में फ़िलहाल तो राज्य सरकार काफ़ी पिछडी हुई दिख रही है, और इसे एक ठीक-ठाक स्तर तक पहूंचने के लिए अभी काफ़ी कुछ करने की जरूरत है ।

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