Wednesday 17 May 2017

सुखैत पोखैर प्यासल गाम!

एहि बेर गाम में एकटा भातिजऽक उपनेन छल आ आफ़िस में सेहो ३-४ टा छुट्टी लगातार भेट रहल छल । बस फ़ेर की एकबैगे गाम जेबा क प्लान बनि गेल । प्लानो तेहन जे जूर-शीतल दिन सांझ तक गाम पहुंचितौं। मगध एक्स्प्रेस अपन आद्त अनुसार चारि घंटा बिलंब सं पटना पहुंचेलक । आब ओत से बरौनी के ट्रेन पकरबाक छल । गर्मी के दिन में सूर्यास्त किछ बिलंबे स होइ अछि, स्वाइत राजेन्द्र पूल पर जखन लगभग साढे छ: बजे पहुंचल छलहुं त सूर्यास्त क मनोरम दृश्य  दृष्टिगोचर भेल छल। ओई मनोरम छटा मे ३-४ टा छौंरा सब गंगा जी के बीच धार में चुभैक रह्ल छल। ई दृश्य देखय बला छल। मुदा इ कि! अचानक से ध्यान गेल जे गंगाजी त सूखि के आधा भ गेलिह आ पाईन क धार केवल पांजर धरि में बचल छल । आब ई स्थिति भयावह बुझना गेल। त एकर की मतलब जे सुखार अपनो गाम-घर दिस दस्तक द देने अछि ! जखन गाम पहुंचलौं त जूर-शीतलऽक कोनो नामो-निशान नै देखना गेल। यद्यपि गाम हम अन्हार भेला के बादे पहुंचल छलहुं ।

अगिला दिन भोरे भोर गाम दिस बिदा भेलहुं, बाट में भेंटनाहर लोक सब सं दुआ-सलामी लैत नदी कात पहुंचलहुं । मुदा देखै छी त ई की; नदी त अछिए नै! गामक बलान नदी सुखि क पीच रोड बनल अछि आ साइकिल, मोटरसाईकिल सभ ओई बाटे सरसरायल ऐ पार से ओइ पार भ रहल अछि। ध्यान गेल जे गामऽक मुखिया (जेकर जनेर-धैंचा के फ़सल नदी कात में लहलहायत छल) के अतिक्रमणक सीमा आउर अधिक बढि गेल अछि आ जत हरदम नदी के धार रहै छल तत्तौ मुखिया के फ़सल लागल छल। ओना फ़सलऽक हालत सेहो पिलपिल सन भेल छल । गाम सं नदी बिला जेनाइ मने कि जे मानु जेना कोनो सौभाग्यवती के सिहुंथ से सेनूर पोछि देनाई भेल!

मानै छी जे हम बेसी दिन गाम नै रहलहुं अछि, मुदा जतबे दिन रहलहुं अछि, ई नदी से एकटा लगाव रहल अछि। बाल्यावस्था में नदी नहाय के अपन उत्साह होय छ्ल, मां के मनो केला पर कहां मानै छलियै। आ गर्मी महिना में त बुझू जे जखने मोन होय तखने चैल दिय नहाय लेल, कोनो अंगा-गंजी लेबा के काजे नै, बस ककरो सं गमछा मांगू आ कूदि जाउ। जा कनि काल नदि में चुभकि ततबे काल में नदि कात के भांईटऽक गाछ पर पसरल गंजी-जंघिया सभ सुखि जाय छल । हं ई बात के अफ़सोस रहत जे हम हेलनाई नै सीख पेलहुं। यद्यपि गामक भैयारी सब थोरे-बहुत सीखेने छल मुदा कालांतर में सेहो बिसरि गेलहुं। ओना गाम-घर में धिया-पुता के दुपहर काल में नदी कात जाय लेल मना करल जाय छल, जै के लेल भूत सं ल के पंडूब्बी तक के डर देखायल जाय छल। नदी किनार में ओना माछ आ डोका पकरय के सेहो अनुभव रहल अछि। ऐ मामला में मीता भाईजी बड्ड तेज छलाह। बुझु से बंसी आ बोर के असल खेलाडी वैह छलाह आ हम सभ त स्टेपनी टाइप में संग लागल रहै छलहुं ।

खैर छोडू, हमहुं कहां पहुंच गेलहुं। हलुमान चौक पर पहुंचलहु त देखै छी जे छौंरा सभ के चौकडी जमल अछि। मीता भायजी सेहो छलाह। हम कहलियैन जे यौ मीता भायजी इ त जुलुम भ गेल। ओ सशंकित होइत बजलाह – जे से की? की भ गेलय? हम प्रतिउत्तर में बजलहुं जे "महराज गामऽक नदी बिला गेल आ अहां पुछै छी जे की भेल!" मुदा हुनकर रिस्पांस बड्ड सर्द छल। ओ बजलाह जे ई सब भगवानऽक माया अछि। देश-दुनिया में पाप बढि रहल अछि, तेकर दुष्परिणाम त एहने ने हेतै हौ। हम बजलहुं जे भायजी, तैयो गमैया के त अपन कर्तव्य करबाक चाही ने नदी के बचाब के लेल। सालों-साल नदी के तह गाद से भरि क उपर भेल जाय अछि, तै पर से नदी तट पर मुखिया के अतिक्रमण बढल जाय अछि। आई नदी सुईख गेल, सोचु जे ऐ संगे कतेको जलिय जीव सभ के त समूले नष्ट भ गेल हैत। क्षेत्रऽक जमीन में पानिऽक लेवल भी नीच्चां खसि परल हैतैक…हं, से त सत्ते. पहिने पचासे फ़ीट पर कल गडा जाय छल मुदा आब सै फ़ीट से कम में कहां नीक पाईन अबै छै – बीच में बात कटैत कनकिरबा बाजल । हम बात के आगा बढबैत बजलहुं जे देखु ई नदी में लोक सब नहाइ जाय छल माल-जाल के नहब आ पाईन पियाब लेल नदी ल जाय छल, मौगमेहर सब कपडा-लत्ता सभ टा त नदिये मे करै जाय छल ने यौ। त जै नदी सं एतेक उपकार भेटै अछि ओकरा लेल किछ त चिंतित होयबाक चाहि ने। एना जे नदी के भूमि के अतिक्रमण होयत रहतै, त निश्चिते ने नदी बिला जायत।

औ जी अहां शहर से आयल छि, ऐश-मौज में रहै छी तैं इ आदर्शवादी गप्प सब फ़ुरा रहल अछि। दिल्ली से ऐनिहार सब के एहिना गोल-गोल गप्प फ़ुराईत रहै छै। – ऐ बेर बीच में बात काटैत बंठाबबाजी बाजल ।

हम कनि व्यथित होयत कहलहुं जे हं शायद अहां ठीके कहै छि, हम पतित भेलहुं जे गामऽक चिन्ता केलहुं । ई गाम त जेना हमर अछिए नै। आ अहां कि जनै छि शहरऽक जिनगी के विषय में । पाईनऽक किल्लत आ ओकर मोल की होई अछि ई कोनो दिल्ली-बंबई बला से बढिया के बुझि सकै अछि! कालोनी सब में पाईन के लऽ कऽ झगडा-झंझट त डेली के खिस्सा रहै अछि, बात त मरै-मारय तक पहुंच जाय अछि। बडका कोठी आ फ़्लैट में रहऽ बला लोक सभ के सेहो सभ सुविधा त भेटै अछि मुदा पाईन हुनको नापि-जोखि क भेटै अछि आ ओकर बड्ड मोल चुकबय परै अछि। जे स्थिति अखन हम-गाम गमय दिस देख रहल छि, जौं लोक नै चेतल त भविष्य में एतुको स्थिति वैह  होबय वाला अछि।

खैर किछ काल गप्प-सरक्का मारलाक बाद हम गाम पर पहुंचलहुं आ नहाय के लेल बौआजी ईनार दिस बिदा होबैये बला छलहुं कि मां टोकलक जे कले पर नहा ले, बौआजी ईनारऽक पाईन कदुआह भ गेल छै। ओह! एकटा आउर अफ़सोचऽक गप्प। जहिया से हमर नदी नहेनाय छुटल छल गाम में हम बौआजीए ईनार पर नहाइत एलहुं अछि। बड्ड पवित्र आ शीतल पाईन होय छल ओहि ईनार के। गर्मी के  दूबज्जी दुपहरियो में एकदम शीतल पाईन। हमरा याद अछि जे बचपन में देखै छलहुं जे जूरशीतल दिन गौआं लोक सभ एकट्ठा भ के एहि ईनारऽक सफ़ाई करै छल, ढेकुल कसाई छल, नब रस्सी बान्हल जाय छल। रामनन्दन पंडितजी यजमानी में भेंटल एकटा नबका डोल बान्है छलाह। माने बच्चो सभ के लेल ई उत्सव के माहौल होय छल । मुदा आब…..!

गामऽक दोकान में आब कोल्ड-ड्रिंक संगे मिनरल वाटरऽक बोतल सेहो बिकाय लागल छल। किछु सम̨द्ध लोक के घर में २० लिटरा आरो-पाईनऽक बोतल सेहो किनाय लागल छल।

भोज-भात में अक्सरहां कोनो छोट बच्चा जेकरा परसऽ के शौक होई अछि मुदा ओकरा लुरिगर नै बुझल जाय अछि के पाईन परसय लेल द देल जाय अछि। कुम्हरम के भोज काल में गुरकेलवा पाईन परसै छल। हम टोन दैत बजलहुं – कि रे गुरकेलवा! तों पाईने परसै छैं । ओ बाजल- ईह भायजी ! सबसं महरग चीज त हमही परसै छी।
- से कोना रौ? हम पुछलियै
ओ बाजल जे भाईजी, भोजन त कतौ भेट जायत मुदा ई गर्मी में सभसं सोंहतगर चीज त ठंढा पाईने लगै छै यौ। गामऽक आधा कल त सुखा गेल अछि आ ईनार-नदी सब के हाल त अहां देखनेहे हेबै। तखन अहिं कहु जे हम की गलत बजलहुं?
एतनी गो गुरकेलवा एकटा गंभीर बात के बड्ड विनोदी भाव में बाजि गेल छल ।

पता लागल छल जे गामक चौधरी सरकार से सस्ता लोन ल के एकटा पोखैर खुनेला हन । हमरा प्रसन्नता भेल जे चलु नीके अछि जे एकटा पोखैर भेने किछ त राहत अछि आ ताजा माछ खाय लेल सेहो भेट जायत । मुदा मां से जखन चर्चा केलहुं त ओ बाजल जे एंह । ओ पोखैर में किछु अछियो! ओ त बहु पंचायत सदस्यऽक चुनाव जितलैन त जोगार से लोन पास करा लेलाह। बैंक के देखाब लेल खाईध खुना के मांईट सेहो बेच लेलाह आ लोनऽक पाई सूईद पर चढा क सूईद खा रहल छैथ। हम कहलहुं देखु त धंधा। सोझ रस्ता पर चलि क कियौ पाई कमाइये नै चाहै अछि, जै से लोक संगे समाजऽक सेहो भला होय।

बहिन एत गेलहुं त ओतौ वैह हाल देखय लेल भेंटल। कहियो ओकर गाम एहि बात लेल नामी छल जे ओई गाम में बहत्तर टा पोखैर। आगा-पाछां, एम्हर-ओम्हर जेम्हरे मुडी घुमाउ तेम्हरे छोट-पैघ पोखैर-डाबर देखाय परै छल। मुदा देखलौ जे ऐ बेर ओइ में स कतेको पोखैर-डाबर भैस गेल छल । बचलाहो में से बहुते रास जीर्ण अवस्था में छल। भाईजी(बहिन के भैंसुर) के बुझल छल जे हम माछऽक प्रेमी आदमी छी। जै बेर बहिन ओत जाय छलहुं, ओ कोनो ने कोनो पोखैर से माछ ल आबै छलाह । बेरूपहर जखन  भाईजी सकरी जाय लेल विदा भेलाह  हम पुछलियै जे भाईजी कतऽ जा रहल छी। बजलाह जे अबै छी सकरी से माछ नेने। हम बजलहुं जे किए गाम में ऐ बेर उपलब्ध नै अछि की? ओ बजलाह जे ओह! गामऽक पोखैर सब सुखल जा रहल अछि। आई-काइल्ह कतौ मछहर कहां भ रहल अछि। तैं ऐ बेर अहां के सकरीए के माछ खोआबै छी।

हमर एकटा मधुबनी के मित्र सं सूचना भेटल जे शहरऽक आस पास जे डाबर-पोखैर सभ छल जै में से कतेको में शहरऽक नाला सेहो बहै छल, ओकरा सभ के मुईन क ओय जगह पर मकान-दोकान सभ बनाओल जा रहल अछि। जै कारण भूजल स्तर में गिरावट के संगहि शहर में जलऽक निकासी के सेहो समस्या भ रहल अछि।

वापस घुरै काल ट्रैन में जखन एकटा महिला के पंद्रह टाका एमआरपी बला पाईनऽक बोतल के बीस टाका में बेचै बला भेंडर से ऐ बात के लेल जिरह करैत देखलहुं त इ बात सब एक-एक कय के मोन परै लागल। हम सोचै लगलहुं जे अपन देश में जे हजारो-हजार के संख्या में पोखैर-डाबर-दिग्घी सब छल या अछि से अचानक से त नै प्रकट भ गेल हेतै। एकर पाछां निश्चिते जौं बनबाब बला के इकाई छल हैत त बनाब बला सभ के दहाई छल हैत। आ ई ईकाई-दहाई सभ मिल क सैंकडा-हजार बैन गेल हेतै। पिछला किछु दस-बीस साल में विकासऽक नया पाठ पैढ गेल समाज ऐ इकाई, दहाई, सैंकडा, हजार के सोझे शून्य में पहुंचाब के काज कय रहल अछि। ऐ विरासत के सम्हार के चिंता नै समाज के भ रहल अछि आ नै सरकार के । आ जौं कतौ भऽओ रहल अछि त सरकार आ समाज में सामन्जस्ये नै बैस रहल अछि। हम इहो सोचय लगलहुं जे  जौं जिनगी में भगवती अवसर आ सामर्थ्य देलखिन त गाम में पांच कट्ठा जमीन कीन क ओतय एकटा पोखैर खुनायब आ ओहि में माछ पोसब। आब ट्रेनक गति संगे हम  यैह सभ योजनाऽक खाका खीच रहल छी।
 बस एतबे छल ई खिस्सा ।

1 comment:

  1. आब हमरहु बुझल भऽ गेल छे अहाँ केँ माछ बड़ नीक लागैत अछि । 🐟🦈🐬🐋🐳🐟

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