बात २००८ ईसवी के अछि। एक बेर हम अपन पिसियौत
भैया-भौजी संगे दरिभंगा घुमय के योजना बनेलौं। भोरगरे उठि क नहा-सोना कऽ तीनु गोटे
टेंपू से दरिभंगा के लेल बिदा भ गेलहुं। ओतय पहुंचि क सर्वप्रथम श्यामा माई के दर्शन
केलहुं । श्रद्धालु हमर आ गृहणी भौजी के मोन दर्शन
में भाव विभोर भ रहल छल, मुदा कामरेड भैया के ओहि दर्शन में दार्शनिक तेज
प्रज्वलित भ गेल छलैन। ओतय से निकलला पर बाट में ओ बजलाह जे ईह, ऐ मंदिर प्रांगण
के वातावरण बड्ड पवित्र अछि मुदा बुजह जे इहो जे छह से सामंतवादऽक प्रतीक छह। हम
पुछलियैन जे से कोना यौ भायजी?
भायजी बजलाह जे देखह ई
मंदिर जे अछि से महराज रामेश्वर सिंहऽक चिता पर बनायल गेल अछि। “हमर चितो पर लोक
पूजा अर्चना करय” ई सामंती सोच नै अछि त की अछि?
हम बजलहुं जे ईह! अहुं
भायजी कहां के लिक कहां भिडा दैत छी। ऐ पर भायजी बजलाह हौ हम ठीके कहैत छियह। एतबे
में भौजी प्रांगण के सभटा छोट-नमहर मंदिर, गाछ-वृक्ष आदि के
पूजा क के आबि गेलिह आ बजलिह जे आब चलै चलू आगा। हमरा श्यामा माई के प्रसाद ’लड्डू’
बड्ड पसिन्द छल हम बजलहुं जे भौजी प्रसाद त द दिय ने। तै पर ओ बजलिह जे एह एतेक दूर
सपैर कऽ एलहुं अछि त सभटा मंदीर में पूजा-पाठ केला के बादे खायब। ऐ पर हम की
बजितहुं जे आधाटा लड्डू त हम पंडितजी से मांगि क पहिनेहे खा नेने छी! चुपे रहय में
भलाई बुझलहुं आ सभ गोटे आगा बढि गेलहुं । आगा मनोकामना मंदिर में पूजा करैत, लक्ष्मिश्वर
निवास(संस्कृत विश्वविद्यालय), नरगौना पैलेस, मिथिला विश्वविद्यालय के
कैंपस घुमैत, फ़ोटो खिंचबैत दरभंगा महराजऽक किला पहुंचलहुं जहां से आगा बढैत कंकाली
मंदिर प्रांगण में जा पहुंचलहुं ।
ओतय श्यामा माई मंदिर
प्रांगण सन चहल पहल नै छल, मुदा वातावरण ओतुको दिव्य बुझना गेल छल। एकटा छोट-छिन
दोकान पर दू टा छैंडा प्रसाद बेच रहल छल । प्रसाद किनला के बाद मंदिर में ढुकलहुं
त देखल जे मंदिर में त केयौ अछिए नै। तखने हमर नजैर एकटा पुरूष पर पडल, जिनकर उमैर
गोटैक पचपन बरख हेतैन । गंजी-धोती पहिरने, माथ पर चानन ठोप, गौर वर्ण पर आर शोभा
बढा रहल छलैन। गंजी-धोती कतौ-कतौ खोंचायल सन छल मुदा उज्जर बग-बग छल। हम पुछलियैन
जे की यौ महराज अहिं पंडित जी छी ? ओ बजलाह जे छी त हमहुं पंडिते मुदा ऐ मंदिर के
पुजारी नै छी । हम अपस्यांत हौइत बजलहुं जे की भ गेलै त। छी त अहां पंडिते ने से
कनि हमरा सब के प्रसाद चढाब के अछि से अहां चढा ने दियौ।
ऐ पर ओ बजलाह जे बौआ
चढा त हमहुं सकै छी मुदा “ककरो हक नै मारबाऽक चाही”। हमहुं राजे खानदान के छी, ऐ
मंदिर के सेवा करैत एलहुं अछि। अहां सब पांच मिनट बैसै जाउ पुजारी जी आबि जेताह ।
बैसे के त पड.बे
करितै, हम सब बैसियो गेलहुं, मुदा आसू भायजी त विशुद्ध पंचोभिया ब्राम्हण छलाह,
गोटगर टीक-ठोप बला। ओ ओय ब्राम्हणदेव से शास्त्रार्थऽक मुद्रा में बजलाह जे औ जी
अहां कोन राजा खानदानऽक छी । औइनवारि वंश के छि आ की खंडवाला वंश के छी। ओ बजलाह
जे हम राजा महेश ठाकुरऽक वंशज छी। मुदा आसू भायजी एतबे से कहां मानय बला छलाह। ओ
यक्ष जेना सवाल पर सवाल करैत गेलाह आ ओ ब्राम्हणदेव युधिष्ठिर जेना सभटा सवालऽक
यथोचित जवाब दैत गेलाह। ऐ तरहे लगभग आधा-पौन घंटा बीत गेल छल। अंततोगत्वा आसू
भायजी हुनका से बजलाह जे अच्छा चलू राजा महेश ठाकुरऽक खानदान के वंशावली बताउ त। ओ
पंडितजी, रटाओल सुग्गा जेना धुरझार बाजय लगलाह राजा महेश ठाकुर, राजा गोपाल ठाकुर,
राजा परमानंद ठाकुर, राजा सुभंकर ठाकुर, राजा पुरषोत्तम ठाकुर, नारायण ठाकुर,
सुन्दर ठाकुर, महिनाथ ठाकुर, निरपत ठाकुर, रघु सिंह, बिष्णु सिंह, नरेन्द्र सिंह,
प्रताप सिंह, माधो सिंह, छत्र सिंह बहादुर, रुद्र सिंह बहादुर, महेश्वर सिंह
बहादुर, लक्षमेश्वर सिंह बहादुर, रामेश्वर सिंह, कामेश्वर सिंह................एक
स्वरे ई नाम-पाठ सुनि क हमरा नजैर के सामने ओ वंशव×क्षऽक चित्र नाचै लागल जे हम दरिभंगा के म्युजियम में एकबेर देखने रहि।
ऐ उत्तर के सुनला के
बाद आसू भायजी ठीक ओहिना आस्वस्त भेलाह जेना अर्जुन के द्वारा अपन दसो टा नाम
बतौला पर ’उत्तर’ विश्वस्त भेल छलाह जे किन्नर वेशधारी हुनकर सारथी आन केयौ ने
’अर्जुने’ थिकाह।
एही बीच में घंटी
डोलबैत संठी सन कायाबला पुजारीजी सेहो आबि गेल छलाह। हम सब भगवती के दर्शन केलहुं,
भौजी पूजा केलिह आ पुजारीजी प्रसाद चढौलाह, दान-दक्षिणा दैत हम सब ओत से विदा
भेलहुं आ कि पाछां से ओ ब्रामणश्रेष्ठ टोकलाह जे “हे बाउ, हमरो किछु देने जाउ, दू
दिन से हम भोजन नै केलहुं अछि”।
ऐ पर हम कनि विस्मयित
भेल छलहुं। ता भौजी प्रसाद बला डिब्बा से ४ टा लड्डू निकालि क हुनका हाथ में थम्हा
देलखिन आ हमहु अपन पर्स से एकटा दसटकिया निकालि कऽ हुनका हाथ के थम्हा देलियैन। ऐ
के बाद ओ हमरा सब के खूब रास आशीर्वाद दैत विदा केलाह। ओतय से विदा होइत हमरा मोन
मे दू टा बात गूंज लागल छल – “हमहु राजे खानदान के छी”, “ककरो हक नै मार्ऽ के चाही”
।
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