Sunday 22 April 2018

मैथिली कथा में स्त्री (Female characters in Maithili Literature)

उपरोक्त विषय पर चर्चा केनाय एत्तेक हल्लुक बात नै अछि, तथापि हम जे किछु लेखक केर रचना पढलहु अछि ओय माह्क स्त्री पात्र वा नायिका क भूमिका के विवेचना के प्रयत्न क रहल छि।

सर्वप्रथम हम यात्री बाबा के उपन्यास ’पारो’ के नायिका पार्वती उर्फ़ पारो केर चर्चा कय रहल छी। पारो के पहिल परिचय पाच छ: वर्षिय, श्याम वर्णिय बुचिया के रूप मे कैल गेल अछि, आ कथा के मार्मिक अन्त १७-१८ वर्षक पारो के अकाल मृत्यु क घटना के संदर्भ स होय अछि। मैथिली कथा मे स्त्री पात्र सब मे पारो के चरित्र एकटा एहन चरित्र अछि जे पाठक के हृ्दय स्थली में भावना के तीव्र प्रवाह त लैए आबै अछि संगहि मिथिला क्षेत्र में ७०-८०-९०के दशक में(आ संभवत: किछु एखनो) स्त्री जीवन के दशा के कैएक टा परत खोलि के राखि दैत अछि। २-४ घंटा में पारो सन नायिका के नेन्पन केर खेलौर स ल के किशोरी पारो के चमत्कृ्त क दै बला बुद्धि, विवेक, मर्यादा के निभाब वाली धिया आ अंतत: समाजक दोष के कारणे अपरिपक्ब अवस्था में अकाल मृ्त्यु के वरण करैत पारो के झलक कोनो चलचित्र जेका पाठक के आखि के आगा एक के बाद एक क के निकलि जाय अछि।
पारो नेनपने स चंचल छलीह आ किशोरावस्था में पहुचैत पहुचैत लोक व्यवहार आ ग्यान मे पारंगत भ गेलि। कथावाचक कहै छैथ जे ओ पारो से १-२ वर्षक जेठ छलाह मुदा तैयो लोक व्यवहार के जे बात हुनका इंटर में गेला पर बुझ एलैन से पारो ओहि बयस में बुझै छलीह जखन कथावाचक आठमी में छलाह। ऐ प्रकारे यात्रीजी ई बात के इंगित करै छैथ जे मिथिला के नारी में मानसिक परिपक्वता बहुत जल्दी आबि जाय अछि। पारो पढ्बा लिखबा, कथा-कविता में सेहो बेस तेज छलीह, स्वाईत हिनकर पिताजी हिनका खूब पढैबा के इच्छा रखै छलाह, मुदा से हिनकर माय के पसिन्न नै छल। ई मैथिल समाज के एकटा आर चरित्र चित्रण अछि जेकरा यात्रीजी ऐ कथा में खोलि क देखेलथिन्ह अछि। ई चरित्र कमोबेस आजुक मैथिल समाज में सेहो व्याप्त अछि, स्वाइत मिथिला क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर कदाचित सगर देश में सभस निम्न स्तर पर अछि। औपचारिक शिक्षा नैहो भेंटला पर पारो रामायण, गीता, अमरकोष, हितोपदेश आदि ग्रंथ के घोषि लैत छथिन।
प्रेम विवाह आ विवाह स पूर्व अपन जिवनसंगी के निक से जानि लै के इच्छा आ ऐ से जुडल दिवास्वप्न सेहो पारो के मोन मे उचरै छैन्ह आ एकरा ओ कथावाचक के जाहिर सेहो कर छथिन जे “बिरजू भैया, भाइये-बहिन में ज बिआह दान होयतैक त कतेक दिव होयतै। कत’ कहादन अनठिया के जे लोक उठा ल अबै अछि से कोन बुधियारी!” किशोरी पारो के मोन मे पुरुष जाति के प्रति जे आशंका छल से ओकर लिखल कविता के ऐ लाइन में सेहो व्यक्त होय अछि:
सखी हम करमहीन
कोन विधि खेपब दिन
कोन विधि खेपब राति
निट्ठुर पुरूख क जाति
कोन विधि काटभ काल
हैत हमर की हाल।
परिस्थिति के मारल पारो के विवाह किशोरावसथे में अपना सं दुना उमिर के दुत्ति वर स भ जाय अछि। कथा के अंत होय अछि शारिरिक रूप स अपरिपक्व पारो के प्रसव के कारण भेल अकाल मृत्यु स। इ भाग पढैत काल पाठक के कोंरह फ़ाटि जाय से स्वभाविक अछि। ऐ प्रकारे देखल जाय त पारो एकटा तेजस्विनि मिथिलानी छथि जे मैथिल समाज में व्याप्त दोष के कारण जिबैत अपन अभिलाषा के समेट क रखै छथिन आ अंतत: अकाल मृ्त्यु के प्राप्त हौय छथिन।
आब अबै छी प्रो० हरिमोहन झा के रचना पर। ओना त हिनकर कथा-उपन्यास सब में नाना प्रकार के स्त्री पात्र सब भरल परल अछि, मुदा हम एतय हिनकर उपन्यास कन्यादान आ द्विरागमन के पात्र बुच्ची दाई आ मिस बिजली बोस के चर्चा क रहल छि। बुच्ची दाई के चरित्र जत अपन समय के मैथिल समाजक स्त्री क वास्तविकता अछि त मिस बिजली कदाचित ओ चरित्र अछि जेहन लेखक मैथिल स्त्री के भविष्य देखय चाहै छलाह। बुच्ची दाई एकटा एहन अबोध बालिका के चरित्र अछि जिनका मानसिक आ शारिरिक परिपक्वता से पहिनेहे बिआह क देल जाय छैन्ह आ ताहि कारणे ऐ संबंध के बुझ आ निभाब मे ओ अक्षम छलीह।  मुदा रूप आ गुण स पूर्ण बुचिया समय बितला पर आ सिखौला पढौला पर आधुनिकता के लिबास ओढि लै अछि। मिस बिजली बोस काशी विश्वविद्यालय में पढै वाली ओ कन्या छलीह जे कुशाग्र बुद्धि के संगे ठाय पर ठाय बाजय के कौशल सेहो राखै छलीह आ एहि कौशल के बले सीसी मिश्र के दर्प चुड-चुड करै छथिन आ हुनका हुनकर गलति के एहसाह दियाबै छथिन।

दू टा पुरूष लेखक के बाद दू टा स्त्री लेखक के रचना में स्त्री पात्रक चर्चा करै चाहै छी। सर्वप्रथम लिली रे के कथा उपसंहार के नायिका ’अपर्णा’ के चर्चा क रहल छी। लिली रे अपन विभिन्न रचना में स्त्री पात्र के मार्फ़त ऐ बात के उल्लेख कएने छथि जे मैथिल समाज स्त्री के विवाह, प्रेम-संबंध आदि के ल क अनुदार रहल अछि आ औखन तक अनुदार अछि। जे महिला वर्ग पितृ्सत्तात्मक समाज मे युग युग स सीदित आ प्रताडि.त होइत रहल छथि, सेहो वर्ग अपन समाजक दोसर सदस्य के प्रति अनुदार बनल रहलीह, सहानुभुति के अभाव रहलनि। शिक्षित आ आधुनिक मानल जाय बला समाजक पुरूष वर्गक मानसिकता में परिवर्तन नै आयल। ’अपर्णा’ के चरित्र एहि अन्तरविरोधक मर्मस्पर्शी उद्घाटन अछि। अपर्णा के प्रति हुनक बहिनोइ विनयक आचरण भावनात्मक नहि, शोषणात्मक छैन। ओ डाक्टरी के प्रवेश परीक्षाक मार्गदर्शनक नाम्पर अपर्णाके अपन मोह जाल में फ़ासि लैत छथि। अपर्णा के बहिन वसुधा के आचरण इर्ष्याभाव स भरल अछि ओ अपन पति के लंपटता के दोष नै दैत अछि, अपर्णा के दोषी मानैत अछि। ओ अपर्णा के तेज से जरैत अछि। पित्ति लग शिकायत क अपन छोट बहिन के प्रति घरक सदस्य में घृणा घनिभूत क दैत अछि। घौल भेल पिता अपर्णा के दंडित करबाक हेतु कठोरतम निर्णय करैत हुनकर पढाई छोरा एकटा मजदूर संगे साहि दैत छथिन। अपर्णा डाक्टर नै बनि सकलि मुदा अपन परिश्रम आ विद्या के बल पर सासुर के खूब सुखी-सम्पन्न बना दैत छथिन। मुदा विडंबना अछि जे अपर्णहिक परिश्रम स गिरथाइनि बनलि ननदि सब सब सेहो हुनकर कुचेष्टा करै अछि। अपर्णा त्यागमयि छथि, सेवाभावि छथि, सहानुभूतिशील छथि, अपन मोनक व्यथा कौखन प्रकट नै होमय दै छथिन। सबस बढि के धैर्य आ स्वाभिमान छैक। इ स्वाभिमान पतिक देहावसानक जिग्यासा मे आएल पिता के कहल वचन में (’एहिठाम हमरा सब मानैत अछि। अहास बहुत बेसी!’) सेहो स्पष्ट अछि।
अंतिम स्त्री चरित्र जेकर हम चर्चा एखन क रहल छि ओ अछि डा० शेफ़ालिका वर्मा के कथा ’मुक्ति’ के नायिका ’मेहा’। मेहा कोमल सदृ्श्य भाव वाली तेजस्विनी कन्या छथिन जिनका समाजक देखावटी उत्थान आ इळिटनेश नै पसिन्न छैन्ह। ओ अपन मा के महिला-मुक्ति आंदोलन आ ओय स जुड.ल सदस्या सब के आलोचक छथिन जे महिला-मुक्ति के नाम पर बड.का बड.का जुलूस त निकालै छथिन मुदा ई बात के अन्तर्बोध नै छैन जे महिला के मुक्ति चाहि कथि स। ओ अब अपनहि जानैत या अन्जान मे नारी के प्रतारणा के बढावा दै बला काज करै छथिन। एहि क्रम मे मेहा के विवाह एकटा प्रोफ़ेसर साहब से होय बला रहै छैन जे वास्तव मे पकरौआ विवाह छल आ तेकर बदला लै लेल प्रोफ़ेसर साहब मेहा संग हुनक पांच टा सखि के सिनुरदान क दैत छथिन। मुदा तेजस्विनि मेहा ऐ विकट परिस्थिति के अपन कुशाग्रता आ तेज से स्म्हारि लैत छथिन, ओ ऐ विवाह के अमान्य साबित क दैत छथिन आ प्रोफ़ेसर साहब के मुक्त करैत बजै छथिन जे “हम एहि विवाह के नै मानैत छी आ नै हमर संगी मानत। हम सब एत्तेक गेल-गुजरल नै छी । नारी के नियति मात्र विवाह छैक मुदा हम एकरा नै मानैत छी। विवाह स्त्री पुरूषक समर्पण थिक। जे बलजोरी देल जाय आ जे एक्कहि संगे पाच गोटे के देल जाय ओ सिन्दूर धर्मक दृ्ष्टिए मान भ जाए मुदा हम कहियो नै मनब।
प्रोफ़ेसर साहब मेहा के ऐ तर्क-वितर्क से अवाक भ गेल। ओ एकटा अग्यात सम्मोहन स आविष्ट भ मेहा से अपन अपराध लेल क्षमा मांगैत छथिन आ हुनका अपन जीवन संगिनि बनाब के वचन दैथ छथिन।
एहि प्रकारे हम देखैत छि जे जत पुरूष लेखक सब स्त्री पात्र के द्वारा समाज मे स्त्री के अवस्था आ हुनका प्रति व्याप्त कुप्रथा पर चोट करै छथिन ओतय महिला लेखिका स्त्री समाजुक स्थिति के सुक्ष्म विवेचना करैत छथिन।

एकटा जन्मेजय कथा (व्यंग) - Ek Janmejay Katha(Maithili)

ओना महाभारतs सबटा कथा सब युग के लेल प्रासंगिक रहल अछि, एहि क्रम में राजा जन्मेजयक एकटा कथा सेहो आजुक समय के हिसाब सं खूब प्रासंगिक अछि.

राजा जन्मेजय अर्जुन के पोता राजा परीक्षित के बेटा उत्तराधिकारी छलाह. एक बेर राजा परीक्षित कलयुगक प्रभाव सं ग्रस्त s मरल सांप केर माला बनाय ऋषि शमीक के गर में s हुनकर अपमान देलखिन. अपमान सं ऋषि के बेटा श्रृंगी पित्तिया गेलाह. पित्ते आमिल पिने छलाह अपन बाबू के अपमानक बदला लेबय के ठानि नेने छलाह. एहि के लेल नागराज तक्षक के बजाय, राजा परीक्षित के ठिकाना लगाबय के सुपारी देलखिन. बस तखन की अर्जुन सं पराजित अपमानित तक्षक एहने मौक़ा के बाट जोहैत छलाह, स्वाइत सुपारी उठब में कोनो कौताही नै रखलाह सही मौक़ा पाबि परीक्षित के 'मर्डर' देलाह. परीक्षित केर मर्डर के बाद हुनकर बेटा जन्मेजय गद्दी पर बैसलाह. बापक ह्त्या के सभटा पिहानी जानलाक बाद हिनका मोन  में बदलाक भावना प्रज्ज्वलित गेलैन तक्षक सहित सभटा नाग के समूल नष्ट करै के ठानि लेलैथ के लेल सर्प यज्ञ करेलैथ मुदा 'मर्डर' के मास्टरमाइंड यानी ऋषि श्रृंगी के छोड़ि देलखिन.

"आब एकटा 'बाबा' से के पंगा लै! बदले लै के छैक तक्षके सं लैत छी ओकर समूल नाश दैत छी." ( सकै अछि एहने किछु विचार हुनका मोन में आयल हेतैन, यद्यपि तरहक बात महाभारत में आधिकारिक रूप सं कतौ ने देखलहुँ पढ़लहुँ अछि).

हं भेल एना की सर्प यज्ञ में एक-एक के सभटा निर्दोष सांप सब खासि खसि भस्म होमय लागल. ओकरा सब के पतो नै छल जे ओकर सब के दोष की छैक जेकर सजा ओकरा सब के भेंट रहल छल. खैर. हजारो-लाख सांप के मुइला के बाद जखन तक्षक केर पारि एलै तखन पता नै कुन देवता-पित्तर से सेटिंग के आस्तिक नामक एकटा ब्राम्हण के भेज के सर्प यज्ञ रुकवा देलक तक्षक केर जान बचि गेल. कहल जाय छैक जे एकर बाद जन्मेजय तक्षक दुनू बर्षो-बरख जिबैत रहलाह अपन-अपन राज-पाट के भोग केलाह. कहाँदैन कहल जायछि जे तक्षक केर बाद में इन्द्रक दरबार में सेहो बड्ड निक पैठ बनि गेल छल. तरहे देखल जाय मास्टरमाइंड ऋषि श्रृंगी, एक्सीक्यूटर तक्षक बदला लै पर उतारू जन्मेजय के किछु नै भेल मुदा सब प्रक्रिया में मारल गेल बेचारा हजारो-लाख निर्दोष सांप सभ जेकर एकमात्र अपराध जे तक्षक के समुदाय से छलाह.

उपसंहार: आजुक समय में एहि कथा के प्रासंगिता चिन्हियौ विचार करियौ, अहाँ बुद्धिजीवी छी